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चूर्णप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
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(९२५१) कल्याणक्षारः । भल्लातकेङ्गुदीवैजयन्तीकदलीवर्षाभूट्टीवेरक्षुर
( वा. भ. । त्रि. अ. ८ ! केन्द्रवारुणीश्वेतमोक्षकाशोका इत्येवं वर्गसमूत्रिकटु त्रिपटु श्रेष्ठा दन्त्यरुष्करचित्रकम् । लपत्रशाखपामाहृत्य लवणेन सह संसृष्टं पूर्व जर्जरं स्नेहमूत्राक्तमन्तधूम विपाचयेत् ॥ वदग्ध्वा क्षारकल्पेन परिस्राव्य विपचेदेतत्म. शरावसन्धौ मुल्लिते क्षारः कल्याणकाहयः। तिवापश्चात्र हिङ्ग्वादिभिः पिप्पल्यादिभिर्वा स पीनः सर्पिषा युक्तो ना. वा स्निग्धभोः इत्येतत्कल्याणकलवर्ण वातरोगेषु गुल्मप्लीहामि
जिना पङ्गाजीर्णार्थोऽरोचकानिां कासादिभिरूपउदावविवन्धार्थी गुरुपाण्डूदरकृमीन् । दुतानां चोपदिशन्ति पनभोजनेष्विति ।। मूत्रसङ्गागरीश कहद्रोगग्रहणीपदान् ॥
मजीठ, पलाश (क), कुड़ा, बेल, आक, मेहप्लीहरुजानाहश्वासकासांश्च नाशयेत ॥ थूहर, अपामार्ग (चिचिटा ), पाढल, पारिभद्र
सोंठ, मिर्च, पीपल, सेंधा नमक, विड लवण, ! , फरहद या नीम ), नादेवी (नागरमोया या काचलवण, हा, हडा, आमला, दन्तीमूल, भिलावा ॐ रण्ड ), पीपल, सुगन्धि शाली धान, नूवो, अडूसा और चीतामूल समान भाग लेकर चूर्ण करके उसे । (बासा), करज, नाटा करञ्ज, कटेली, बड़ी कटेली, घोसे चिकना करें और फिर उसमें थोडा गोमूत्र | भिलावा, इंगुदी, अरनी, केला, पुनर्नवा (बिसमिलाकर हाण्डीमें बन्द करके इस प्रकार भस्म करें खपरा ), सुगन्धवाला, तालमखाना, इन्द्रायण कि उसका युवां बाहर न निकले । तदनन्तर सफेद आउ, मोखावृक्ष और अशोक; इनके हरे हाहा तल होने पर उसमेंमे भस्मको निकाल (ताजे) मूल, पत्र और शाखा लेकर कूटकर उसमें कर पोस में । इसका नाम कल्याणक क्षार है। सबके बराबर सेंधा नमक मिलाकर हांडीमें बन्द
इसे घी में मिलाकर पीने या भातके साथ करके फण्डोंकी अग्निमें भस्म करें और राखको खाने और स्निग्धाहार करनेसे उदावर्त, विबन्ध, : निकाल कर क्षार निमाग विधिस पानाम पालकर अर्श, गुल्म, पाण्डु, उदररोग, कृमिरोग, मूत्राघात, स्वच्छ जल टपका लें। तदनन्तर इसे पकाकर अश्मरि, शोथ. हृद्रोग, ग्रहणी, प्रमेह, प्लीहा, पेटका । गाढ़ा करें और पाकके अन्तमें हिंग्यादि गण या अफारा, स्वास और कासका नाश होता है। पिप्पल्यादि गण का चूर्ण मिला दें। ( मात्रा-१॥-५ पाशा ।)
इसके सेवनसे वातव्याधि, गुल्म, प्लीहा, अग्नि१९२५२) कल्याणलवणम् (१) मांद्य, अजीर्ण, अर्श, अरुचि और. कासादिका । सुश्रुत सं. । चिकि. अ. ४ वातव्या.) । नाश होता है।
गण्डीरपलाशकुटजबिल्वास्नापामार्ग- इसे भोजनके साथ खिलाना या अन्य समय पाटलापारिभद्रकनादेवीकृष्णागन्धानीयनिर्द- पानीमें मिलाकर पिलाना चाहिये । हन्यटरूषकमक्तमालकपूतिकहतीकण्टकारिका (मात्रा-१ माशा ।)
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