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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छेपपकरणम् ] परिशिष्ट (९१६६) एरण्डादिलेपः (२) । कतैले विनिक्षिप्य झुष्णं कृत्वा विलेपयेत् । ( ग. नि. । श्वयध्व. ३३) अवश्यं पुंस्त्वमाप्नोति षण्डत्वं तस्य नश्यति ॥ परण्डो मघ द्राक्षा वाजिगन्धा पनवा। शीतं वारि न सेवेत मैथुनं चापि वर्जयेत् ॥ शुष्कमूलकसंयुक्ता वातशोथपलेपनम् ॥ इलायची, जावत्री, सफेद कनेरकी जड़, सेंभ | लकी छाल और अफीम ६-६ माशे लेकर सबको अरण्डमूल, मूलैठी, द्राक्षा, असगंध, पुनर्नवा, (बिसखपरा )की जड़ और सूखी मूली; इनके समान बारीक पीस लें और १ तोला तेल में मिलाकर गर्म करके शिश्न पर लेप करें। (ऊपरसे पान लपेट भाग मिलित चूर्णको (पानीमें ) पीसकर लेप करनेसे वातज शोथ नष्ट होता है। कर कच्चे सूतसे बांध दें। रोज़ इसी प्रकार २१ दिन लेप करें। ) शिश्न पर शीतल जल न लगने (९१६७) एलादिलेपः (१) दें और मैथुनसे परहेज करें। (व. से. । कुष्ठा. ; यो. र. । कुष्ठा. ; यो. । इससे नपुंस्कता अवश्य नष्ट हो जाती है । त. । त. ६२) (९१६९) एलादिलेपः (३) एलाकुष्ठविडङ्गानि शताहा चित्रको वचा । (ग. नि. । उपदंशा. ८) दन्तीरसाअनश्चैभिलेपः कुष्ठविनाशनः ॥ एला दारुहरिद्रा च शकनाभीरसाधनम् । इलायची, कूठ, बायबिडंग, सोया, चीता, बच लाक्षागोमयनिष्पीडस्तैलं क्षौद्रं घृतं पयः ।। ( पाठान्तरके अनुसार खरेटीकी जड़), दन्तीमूल | एभिः सुपिष्टैस्तैलांशरुपदंशं प्रलेपयेत् । और रसौत; इनके समान भाग लित चूर्णको व्रणाश्च तेन शाम्यन्ति श्वयधुर्दाह एव च ॥ (पानीमें) पीसकर लेप करने से कुष्ठ नष्ट होता है। इलायची, दारुहल्दी, शंखनाभि, रसौत, और (९१६८) एलादिलेपः (२) लाख; इनका बारीक चूर्ण तथा गायके गोबरका (न. मृ. । त. ६) | रस, तेल, शहद, घी और दूध समान भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर खूब खरल करें और फिर एलाफलं जातिकोशं मूलं कर्वीरज सितम् । औषधके ऊपर जो स्नेह आ जाय उसे पृथक् कर शाल्मलीत्वचमादाय स्वाफुकं षट् च मापकम् ॥ लें। इसका लेप करनेसे उपदंशके व्रण, शोथ और १ बला इति पाठान्तरम् | दाहका नाश होता है। इति एकागदिलेपमकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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