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भारत-भैषज्य-रत्नाकर
अफारा, मूत्रकृच्छ, पथरी, पृष्ठ पार्श्व, उरू, जांध , लोहा, तिल, त्रिकुटा, प्रत्येक ३-तोला, तथा उदरशूल आदि अनेक रोगोंका नाश करते हैं। सोनामवी सब के समान, इनको शहद में मिलाइसका लगातार सेवन करने से पलित रोग का | कर मोदक बनावे इनसे पाण्डु रोग का नाश होता है। नाश होता है तथा यह उत्तम रसायन है। [११३] अभया वटी (रसे. चि. म.) । [१११] अभयामोदक (१) (वृ. यो. त.) | अभया मरिचं कृष्णा टङ्कणश्च समांसकम् । त्रिपलममयाफलानां पलत्रयं
सर्वचूर्णसमं चैव दद्यात्कानकजं फलम् ॥ त्रिकटुकात्पलं मूलात् । स्नुहीक्षीरैवटीकार्या यथा स्विन्नकलायवत् । दीप्यक चविका चित्रक
वटी द्वयं शिवामेकां पिष्ट्वाचोष्णाम्बुना पिवेत्॥ विडंगवृक्षाम्लसैन्धवार्धपलैः ॥ उष्णा विरेचयेदेषा शीते स्वास्थ्यमुपैति च। स्वपौलाकर्षेत्रिभिर्युतं
जीर्णज्वरं पाण्डुरोगं प्लीहाष्ठीलोदराणि च ॥ चूर्णित सूक्ष्मम् ।
रक्तपित्ताम्ल पित्तादि सर्वाजीर्ण विनाशयेत् ।। त्रिंशत्पलगुडसहितास्त्वक्षमितास्तस्य
हरीतकी, काली मिर्च, पीपल, शुद्धसुहागा सब मोदकाः कार्याः।
समान भाग, शुद्धजमाल गोटा सबके समान । थोहअभयावटका नाम्ना
रके दूधकी भावना देकर भीगी हुई मटरके बराबर प्लीहार्यो गुल्म जठरहराः। गोली बनावे । २ गोली और १ हैडका चूर्ण ऊष्ण पांडवामयिकामलिनां मन्दाग्निनां | पानीके साथ खानेसे विरेचन होता है और शीतल च सर्वदा शस्ताः ॥
जल पीनेसे विरेचन रुक जाता है । इनके सेवनसे हैड़ १५ तोला, त्रिकुटा १५ तोला, पीपला | सब जीर्णज्वर, पाण्डु, प्लीहा, उदररोग, रक्त पित्त, मूल ५ तोला, अजवायन २॥ तोला, चव्य, चीता, | अम्लपित्त, पित्ताजीर्णादिक रोगोंका नाश होता है। घाय बिडंग, इमली और सैन्धव प्रत्येक २॥ तोला [११४] अभ्रकहरीतकी (र. रा. सु.) दालचीनी, तेजपात, इलायची प्रत्येक २॥ तोला मृताभ्रकं पलं विशन्मृतलोहस्य पञ्चकम् । सबका महीन चूर्ण करके १ सेर ७० तोला गुड़के गन्धकस्य पलं पश्च त्रिभिर्द्विगुणमाक्षिकम् ।। साथ ११-१॥ तोलाके मोदक बनावे । यह मोदक पध्याशतपलं योज्यं धात्रीपलशनद्वयम् । तिल्ली, बवासीर, गुल्म, उदररोग, पाण्डु और | सर्वमेका तच्चूर्ण जम्बीरैमर्दयेद्दिनम् ॥ मन्दाग्नि आदि में हितकर है।
भृङ्गी पुनर्नवादावैः पातालगरुडाकुलैः । [११२] अभयामोदक (२) .भल्लातबन्हिकोराटेहेस्तिशुण्डी त लागली ।।
(वृ. नि. र. भा. ५ पा. चि.) क्षीरिणी जलकुम्भी च प्रत्येकं प्रत्यहं द्रवैः । अयस्तिलयूषणकोलभागः
भावयेन्मर्दयेदित्थं मध्वाज्याभ्यां विलोलयेत्।। सर्वैः समं माक्षिकधातुचूर्णम् । स्निग्धभाण्डे स्थितं खादेन्नित्यं निष्कद्वयं द्वयम् । तैर्मोदका क्षौद्रयुतो हि भक्तः | सिद्धसावरयोगोऽयं त्रिदोषाआँसि नाशयेत् ॥ पाण्ड्वामये दूरगतेऽपि शस्तः ॥
अभ्रक भस्म १। सेर, लोह भस्म २५ तोला,
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