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चूर्णप्रकरणम् ]
परिशिष्ट (९११०) उर्वारुबीजादियोगः (१) | (९११२) उशीरादिचूर्णम् ( यो. र. । उदावर्ता.)
(यो. र. । मूत्राघाता.) उर्वारुबीजं तोयेन पिवेद्वा लवणान्वितम् ।।
| उशीरं वालकं पत्रं कुष्ठं धात्री च मौसली ।
एला हरेणुकं द्राक्षाकुङ्कुमं नागकेसरम् ॥ पञ्चमूलीशृतं क्षीरं द्राक्षारसमथापि वा ।।
पद्मकेसरकन्दं च कर्पूरं चन्दनद्वयम् । ककड़ीके बीजोंको पीसकर सेंधा नमक मिला
व्योषं मधुकलाजाश्च अश्वगन्धा शतावरी ॥ कर पानीके साथ पोनेसे या पञ्चमूल (लघु पंचमूल)
गोक्षुरं कर्कटाख्यं च जातीकङ्कोलचोरकम् । से सिद्ध दूध पीनेसे अथवा द्राक्ष (अंगूर) का रस
एतानि समभागानि द्विगुणाऽमृतशर्करा ॥ पीनेसे उदावर्त नष्ट होता है ।।
मत्स्यण्डिकामधुभ्यां च पातरेव बुभुक्षितः । ( मात्रा-१ से २ तोला)
क्षयं च रक्तपित्तं च पाददाहममृग्दरम् ॥ ( यह योग मूत्रावरोध-जन्य उदावर्त में | मूत्राघातं मूत्रकृच्छं रक्तस्रावं च नाशयेत् । मूत्र खोलने के लिये उपयोगी है। ) अशीतिं वातजारोगान्विशेषान्मेहनुत्परम् ।। ((९१११) उर्वारुबीजादियोगः (२) खस, सुगन्धबाला, तेजपात, कूठ, आमला, ( यो. र. । मूत्रकृच्छा.)
मूसली, इलायची, रेणुका, मुनक्का, केसर, नाग.
केसर, कमलकेसर, कमलकन्द, कपूर, सफेदचन्दन, उर्वारुवीज मधुकं सदावि
लालचन्दन, सेांठ, मिर्च, पीपल, मुलैठी, धानकी पित्ते पिवेत्तण्डुलधावनेन ।
खील, असगंध, शतावर, गोखरु, काकड़ासिंगी, दार्वी तथैवाऽऽमलकीरसेन
जावित्री, कंकोल और चोरक समान भाग लेकर समाक्षिकां पित्तकृतेऽथकृच्छ्रे ॥ चूर्ण बनावें और उत्तम खांड (अथवा खांड और
ककड़ीके बीज, मुलैठी और दारुहल्दी समान धी) सबसे २ गुनी लेकर उसमें मिला दें। भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
__ इसे प्रातःकाल भूख लगने पर राब और इसे चावलेोके धोवनके साथ पीनेसे अथवा | शहदमें मिलाकर सेवन करनेसे क्षय, रक्तपित्त, दारुहल्दीके चूर्ण को आमलेके उसमें मिलाकर उसमें । पाददाह, रक्तप्रदर, मूत्राघात, मूत्रकृच्छ्, रक्तस्राव शहद डालकर पीनेसे पित्तज मूत्रकृच्छ्र नष्ट और ८० प्रकारके वातज रोग एवं विशेषतः प्रमेह होता है।
का नाश होता है। (मात्रा-३ माशे । )
(मात्रा---१ तोला।) इति उकारादिचूर्णप्रकरणम्
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