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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[आकारादि
अमलतासके पत्तोंको सरसों के तेल में भूनकर । अरुचि, हृद्रोग, गुल्म, अर्श, उदररोग, कास, श्वास भात या दालके साथ खाने से आमवातका नाश | और ज्वरका नाश होता है। होता है।
(९०६२-६५) आर्द्रकयोगः गुड़के साथ अदरक खानेसे वायुका नाश (ग. नि. । अजीर्णा.)
होता है; बल और अग्निकी वृद्धि होती है तथा
वायु और मल स्वमार्गमें प्रवृत्त होते हैं । यह भोजनाने सदा पथ्यं जिहाकण्ठ विशोधनम् ।
प्रयोग नेत्रोके लिये भी हितकारक है। अग्निसन्दीपनं हृधं लवणाकभक्षणम् ।।
(९०६६-६७) आर्द्रकविधिः शोफहद्रोगगुल्मार्थो विबन्धानाहनाशनम् । (ग. नि. । वाजीकरणा. ; यो. र. । अरोचका. ) दीपनं कफहृद्रुच्यं हर्षणं लवणार्द्रकम् ॥
धौत खण्डितमाकं च सलिलैः क्षिप्तं सुतप्ते घृते शोफारोचकहृद्रोगगुल्माशांस्युदराणि च ।।
सिन्धृत्यं मरिचं मुजीरयुगलं चूर्णीकृतं प्रक्षिपेत् । कासं श्वास ज्वरं हन्यात्सहसा मधुनाऽऽर्द्रकम् ॥
चूर्ण भृष्टचणोद्भवं च वितुषं हिङ्ग्याज्यधूपं दहे
" दित्थं दोषविहीनमार्द्रवरं सुस्वादुसंजायते ॥ गुडाकं वातहरं चक्षुष्यं बलवर्धनम् । । कायाग्निजननं चैव वातवर्होनुलोमनम् ॥ तिन्तिण्यामफलानि लाजसलिले संस्थाप्य तत्राक
भोजन के पहिले सेंधा नमक लगाकर अदरक यामैकं विधृतं च तत्र नितरां रतं भवेत्स्वाद तत्। खाना सदैव हितकारी है। इससे जिवा और कण्ठ
___अदरकके टुकड़े करके उन्हें धोकर गरम शुद्ध होता तथा अग्नि दीप्त होती है । यह हृदयके
धीमें डाल दें और फिर उसमें सेंधा नमक, काली
धीमे हाल में और लिये भी हितकारी है।
मिर्च, जीरा और काला जीरा; इनका चूर्ण उचित ___
मात्रामें मिला दें तथा एक चमचे में भुने हुवे छिलके ____ अदरकमें सेंधा नमक मिलाकर सेवन करनेसे
रहित चनों का या जौका चूर्ण, हींग और घी डाल शोथ, हृदोग, गुल्म, अर्श, मलमूत्र वायु आदिका
कर उसे आग पर रखकर गर्म करें और उससे अवरोध, आनाह और कफका नाश होता तथा उपरोक्त अदरकको बघार दें । इस विधिसे अदरक अग्नि दीप्त होती और रुचि बढ़ती है।
| निषि और सुस्वादु हो जाता है । __
.. शहद के साथ अदरक सेवन करनेसे शोथ, चूर्ण भृष्टयवोद्भवमिति पाठान्तरम्
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