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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०) भारत-भैषज्य-रत्नाकर - - त्रिकुटा, और हल्दी प्रत्येक २॥ तोला सब को , की भावना देकर मरिचके बराबर गोलियां बनावे । महीन करके मानकन्द, घण्टाकरण और त्रिफला | ये गोलियां अग्निमांध के लिये उपयोगी हैं। * के रस की भावना देकर १६-१६ रत्तीभर की १९९] अग्नि दीपनी वटी (र. रा. सु.) गोलियां बनावे । अग्निगर्भा नामकीये गोलियां तिल्ली, गन्धकं मरिचं शुंठी सैन्धवं यवजं तथा। गुल्म, उदररोग, शूल, जिगर, अष्ठीला, कामला, निम्बूरसेन षटिका घणमात्रानिदीपनी॥ हलीमक, पाण्डु, कृमि और कुष्ठ का नाश करती शुद्ध गन्धक, काली मिर्च, सोंठ, सेंधा नमक हैं। लवंग के साथ सेवन करने से अत्यन्त अग्नि तथा यवक्षार । सबको महीन कर नींबू के रस की वृद्धि करती हैं । अफारा, खांसी, अण, विस्फोटक, भावना देकर चने के बराबर गोलियां बनावे । ये तथा श्लेष्मज संग्रहणी का नाश करती हैं। गोलियां अग्नि दीपक हैं। [९७] अग्नि जननी वटी [१००] अगस्ति मोदक (र. र. स. अ. १६) (यो. र. अग्नि, चि) कणनागरगन्धकपारदकं हरीतकीनां त्रिपलं त्रीण्याम्राणि कटुत्रिकम् ॥ गरलं मरिचं समभागयुतम् । | त्वपत्रकं धार्धपलं गुडस्याष्टपलं मतम् । लकुचस्य रसैश्चणकममिता अगस्ति मोदकानेतान् कल्पितान्परिभक्षयेत् ।। गुटिका जनयत्यचिरादनलम् ॥ | शोफार्थीग्रहणीदोषकासोदावर्तनाशनाम् ॥ पीपल, सोंठ, शुद्ध गंधक, शुद्ध पारद, शुद्ध हैड १५ तोला, त्रिकुटा १५ तोला, दालविष, और काली मिर्च सब समान भाग लेकर, चीनी और तेजपात २॥२॥ तोला और गुड़ लकुच (वढल) के रस की भावना देकर चने के आधासेर । विधिवत मोदक बना कर सेवन करने से बराबरा गोलियां बनावे । इन गोलियों के सेवन से सूजन, बवासीर, ग्रहणी, खांसी और उदावर्त का शीघ्र ही अग्नि दीप्त होती है। नाश होता है। [९८] अग्नितुण्डी बटी (भै. र. अ. मां) १०१] अगस्तिषटी (व. नि. र. शूला.) शुद्धसूतं विषं गन्धमजमोदा फलत्रयम् । दशाम्रक हैमवतीसमेतं सर्जिक्षारं यवक्षारं वहिसैन्धवजीरकम् ।। स्त्रिनं तुषोदे विषतिन्दुवीजान् । सौवर्चल विडङ्गानि सामुद्रं टङ्कणं समम् ।। कबुत्रिक क्षारयुगं त्रिदीप्यं विषमुष्टिं सर्वतुल्यं जम्बीराम्लेन मर्दयेत् ॥ कृमिनहिंगु त्रिपटु त्रिविल्वम् ।। मरिचाभा वटी खादेदग्निमान्यप्रशांतये ।। पृथक्प्लुते जम्भजलै वटीय शुद्ध पारद, शुद्ध विष, शुद्ध गंधक, अजमोद, मगस्त्यपूर्वा बदरप्रमाणा । त्रिफला,सज्जीखार,यवक्षार, चीता, सेंधानमक, जीरा, शूलानि गुल्मकृमिमन्दवह्निसौंचल नमक, बायबिडंग, सामुद्र लवण और शुद्ध प्लीहामवाताञ्जयति प्रसय ॥ सुहागा सब समान भाग लेवें तथा कुचला सब वच ५० तोला, कुचला ५० तोला, दोनोंको के बराबर ले सब को महीन करके जम्बीरी नींबू बहनों के कमि रोग के लिये अकसीर है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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