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अकारादि-गुटिका
(२९)
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अथ अकारादिगुटिका प्रकरणम् । उदावर्तगुल्मरोगोदरामयविनाशनम् । [९४] अङ्कोट वटक ( भा. प्र. अति.) | खस, सुगन्धबाला, नागरमोथा, दालचीनी, पलमकोटमूलस्य पाठां दार्वी च तत्समाम् ।
| तेजपात नागकेशर, सफ़ेदजीरा, कालाजीरा,काकड़ापिष्ट्वा तण्डुलतोयेन वटकानक्षसम्मितान् ॥
सींगी, कायफल, पोखरमूल, कपूरकचरी, त्रिकुटा, छायाशुष्कांश्च तान्कुर्यात् तेष्वेकं तण्डुलाम्बुना।
बेलगिरी, धनियां, जायफल, लवंग, कपूर, कांतलोहपेपयित्वा प्रदद्यात्तं पानाय गदिने भिषक् ॥
भस्म, शिलाजीत, बंसलोचन, इलायची के बीज, वातपित्तकफोद्भूतान् द्वन्दजान् सान्निपातिकान्
जटामांसी, रास्ना, तगर, मजीठ, अतिबला, अभ्रकहन्यात् सर्वानतीसारान् वटकोऽयं प्रयोजितः ॥
न भस्म, मुरामांसी और बङ्गभस्म । सब समान भाग अंकोट (ढेरावृक्ष)की जड़, पाठा और दारु
और सब के बरावर मेथी और फिर सब चूर्ण से हल्दी, प्रत्येक एक एक पल, । सब को चावलों के
आधी भांग लेकर चीनी और शहद के साथ मोदक पानी में पीसकर १। तोला प्रमाण वटक बनावे और
बनावे । प्रातः काल १। तोला मोदक शीतल जल छाया में सुखा कर रखे फिर चावलों के पानी के
या बकरी के दूध के साथ खाने से प्रबल ग्रहणी, साथ पीस कर सेवन करे। ये वटक वातज,
श्वास, खांसी, आमवात, मन्दाग्नि, जीर्णज्वर, पित्तज, कफज, और सान्निपातिक आदि सब
विषमज्वर, विबंध, अफारा, शूल, जिगर, तिल्ली,
अठारह प्रकारके कुष्ठ, उदावर्त और गुल्मादि उदर प्रकार के अतिसारों का नाश करते हैं।
रोगोंका नाश करता है। [९५] अग्निकुमार मोदक (भा. प्र. अति.)
[९६] अग्निगर्भा वटिका (र. र. प्ली. चि.) उशीरं वालकं मुस्तं त्वक्पत्रं नागकेशरं ।।
शुद्धं रसं पलं ग्राह्यं गन्धकं द्विपलं भवेत् । जीरद्वयश्च शृंगी च कटफलं पुष्करं शटी॥ लौह टडू वचाकुष्ठं रामठं त्रिकटुं निशाम् ॥ त्रिकटु बिल्वक धान्यं जातीफललवंगकम् ।
रसा भागमानेन सर्वमेकत्र कारयेत् । कर्पूरं कान्तलौहश्च शैलजं वंशलोचना ॥
माणौल्वघण्टकर्णानां त्रिफलानां रसेन च ॥ एलाबीजं जटामांसी रास्ना तगरपादुकम् ।
रक्तीषोडशमानेन वटिका परिनिर्मिता । समङ्गातिवला चादं मुरा वङ्गं तथैव च ॥ अग्निगर्भयमुदिता प्लीहगुल्मोदरापहा ॥ अस्य चूर्ण समा मेथी चूर्णा, विजयारजः ।
शूलनी यकृतं हन्यादष्ठीलां कामलानि च । शर्करा मधुसंयुक्तं मोदकं परिकल्पयेत् ॥
हलीमकंच पाण्डुत्वं कृमिकुष्ठविनाशिनी ॥ कमेकं प्रमाणन्तु भक्षयेत्प्रातरुत्थितः। चंद्रनाथेन गदिता रसमङ्गलभूषिता ॥ शीततोयानुपानेन आजेन पयसाथवा ॥ लवंगयोगे कर्तव्या महाग्निदायिनी मता ॥ ग्रहणी दुस्तरां हन्ति श्वासं कासमतीव च । । आनाहकासशमनी व्रणविस्फोटनाशिनी।
आमवातमग्निमान्धं जीर्णश्च विषम ज्वरम् ॥ | संग्रहग्रहणी हन्याच्छेलष्म दोषोद्भवामपि ॥ विबन्धानाहशूलं च यकृत्प्लीहोदराणि च । शुद्ध पारद ५ तोला, शुद्ध गंधक १० तोला इन्त्यष्टादशकुष्ठानि ग्रहणीदोषनाशनम् ॥ लोहभस्म, सुहागे की खील, बच, फूठ, हींग,
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