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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [अकारादि (८९७८) अमर कलानिधि रमः भावयेच त्रिफलाकन्यका । (र. प्र. सु. । अ. ८ , र. चं.) वन्हिशिग्रुजरसैश्च सप्तधा ॥ मुक्ताफलं विद्रुमकं रसेन्द्र जायते इह रसोऽमृतश्रवा । गन्धं समांशानि ततो विदध्यात् । शुष्कपाण्डुविनिवृत्तिदायकः ॥ नदीजपरस्य रसेन मर्दितं द्रामयुग्मपरिमाणतस्त्विमं । गोलं हि कृत्वा वसनेन वेष्टयेत् ॥ __ लेहयेत घृतमाक्षिकान्वितम् ।। मृदासलिप्त परिशोषितं च पथ्यमत्र परिभावितं पुरा। तच्छरावके सम्पुटयेच्च वहौ। ___ यत्तदेव विवय॑वर्जितम् ॥ चूर्णीकृतं वल्लमितं च भक्षित शोफपाण्डुविनिवृत्तिदो भवेत् । स्याद्रोगराजस्य निकृन्तनं हि ॥ सेवितस्तु यवबिम्बिकाद्रवैः ॥ मोती भस्म, प्रवाल भस्म,' शुद्ध पारद और नागराहजयपालकैः समं । शुद्ध गंधक समान भाग लेकर प्रथम पारे गंधककी वचिदुग्धपचितेन सर्पिषा ।। तक्रभक्तमिह भोजयेदिति । कजली बनावें और फिर उसमें अन्य औषधियां मिलाकर जंबीरी नीबूके रसमें घोट कर सबका एक स्निग्धमन्नमतिनूतनं त्यजेत् ॥ गोला बनावें और उसे कपड़ेमें लपेटकर उस पर अभ्रक भस्म १ भाग, पारद भस्म २ भाग, शुद्ध गंधक ३ भाग, लोहभस्म ४ भाग और मूसली मिट्टीका लेप करदें तथा (सुखाकर) शराव स-पुटमें ५ भाग लेकर सबको एकत्र खरल करें और फिर बन्द करके पुट लगादें। तदनन्तर उसके स्वांग १-१ दिन सेंमलकी जड़के रस तथा गिलोयके शीतल होने पर औषधको निकालकर पीस लें। क्याथ में घोटें एवं त्रिफलाके क्वाथ, अद्रकके रस, • मात्रा-२ रत्तो। घृतकुमारीके रस, चीतामूलके क्वाथ और सहजनेकी यह रस राजयक्ष्माको नष्ट करता है। छालके रसकी ७-७ भावना दें। इसके सेवनसे शुष्क पाण्डुका नाश होता है। (८९७९) अमृतश्रवा रसः मात्रा-२ द्राम (र. चं.। पाण्डा.) इसे घी और शहदके साथ सेवन करना चाहिये। अभ्रभस्म रसभस्म गन्धकं । जौके काथ और कन्दूरीके रसके साथ सेवन लोहभस्म मुसली विदृद्धितः ॥ करनेसे यह शोथ और पाण्डुको नष्ट करता है। शाल्मलीजरसतो गुडूचिका-। इसे खानेके पश्चात् सोंठ, जमालगोटा और कायतश्च परिमर्दयेदिनम् ॥ सेहुंड (थूहर)के दूधके साथ सिद्ध घृत पीना चाहिये। पथ्य-तक भात । अपथ्य- स्निग्ध पदार्थ ? र. चं. में विद्रुम का अभाव है । और नवीन अन्न । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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