________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२६)
भारत-मैपन्य-रत्नाकर
-
पथरीका नाश होता है । यह अविपत्तिकर चूर्ण । रानाकटुकरोहिण्या जीवन्ती कुष्ठकं तथा । अगस्त मुनिका निर्दिष्ट किया हुआ है। | प्रायः कर्षमितं चूर्ण चूर्णन समशर्करा॥
[८४] अश्वगन्धादि चूर्णम् (१) प्रातः काले त्विदं चूर्ण जलेनोष्णेन सेवयेत् ।
- (शा० ध० म० खं० अ० ६) घातपित्तक्षये चैव अजागोघृत संयुतम् ॥ अश्वगन्धा दशपला तन्मात्रो वृद्धदारुकः।। श्लेष्मक्षये क्षौद्रयुक्तं नवनीतेन मेहजित् । चूर्णीकृत्योभयं विद्वान् घृतभांडे निधापयेत् ॥ शिरोभ्रमणपित्तार्ने गोक्षुरेण समन्वितम् ॥ कर्फकं पयसा पीत्वा नारीभिनैव तृप्यति । क्षतक्षीणे च देहेच विशेषवलवर्द्धनम् । अगत्वा प्रमदा भूयाद् वलिपलितवर्जितः॥ | मेदोदरं च मन्दाग्नि कुक्षिशूलोदरापहम् ॥ __ असगन्ध ५० तोला और विधारा ५० अनुपानविशेपेण सर्वरोगहरं परम् ।। तोला इन दोनोंका चूर्ण करके चिकने बर्तनमें असगन्ध ५० तोला, सोंठ २५ तोला, पीपल रक्खे । मात्रा-१।। तोला अनुपान दूध । १२॥ तोला, काली मिर्च ६। तौला, चातुर्जात,
गुण-पौष्टिक और वाजीकरण है। इसको | दालचीनी, भारंगी, तालीसपत्र, कपूरकचरी, सफेद सेवन करनेके साथ यदि ब्रह्मचर्यका पालन किया जीरा, बकायन, जटामांसी, कंकोल, नागरमोथा, जाय तो बलिपलित रोग नष्ट होता है। | रास्ना, कुटकी, जीवंती, कूठ प्रत्येक १। तोला । [८५] अश्वगन्धादि चूर्णम् (२) । सबका चूर्ण करके चूर्णके बराबर शर्करा मिलावे । (वं. से. रसाय. अ.)
साधारण अनुपान-गरम पानी । वातज और अश्वगन्धातसी शुंठी निर्गुण्डी मागधी तथा। पित्तज क्षयमें बकरी या गायके धीके साथ, कफज षड्वापराजितं चैव समभागानि कारयेत ॥ क्षयमें मधुके साथ और प्रमेहमें नौनी धीके साथ कर्फकं भक्षयेन्नित्यं पयसान्नं पिबेदनु । । | खाना चाहिए । पित्त रोगोंमें और शिरके घूमने सन्धिवातं निहन्याशु साध्यासाध्यं न संशयः॥
(चक्कर) में गोखरूके पानीके साथ सेवन करना रसायनमिदंप्रोक्तं वलीपलितनाशनम् ॥
| चाहिए । यह चूर्ण क्षत, क्षीण, मेदोदर, मन्दाग्नि, ___ असगन्ध, अलसी, सोंठ, निर्गुण्डी, पीपल, |
| शूल आदिका नाश करता है एवं बलवर्द्धक है । यह
" अपराजिता । सब समान भाग । गुण-रसायन, चूर्ण अनुपान भेदसे बहुतसे रोगोंको नाश करता है। पौष्टिक, सन्धिवात (गठिया) और वलिपलित नाशक [८७] अश्वगन्धादि चूर्णम् (४) है । मात्रा-११ तोला । अनुपान दूध ।
(वृ. नि. र.) [८६] अश्वगन्धादि चूर्णम् (३) अश्वगन्धामृताभीरुदशमूली बलाद्वयम् ।
(वृ. नि. र. यो. र. क्ष. चि०) पुष्करातिवला हन्ति क्षयं क्षीररसाशिनः ।। अश्वगन्धादशपलं तदधं नागरान्वितम् । ____ असगन्ध, गिलोय, शतावर, दशमूल, बला, तदर्धकणसंयुक्तं मरीचं च चतुर्थकम् ॥ अतिबला और पोखरमूळ इनका चूर्ण सेवन करने चातुर्जातं वराङ्गं च भाङ्गी तालीसपत्रकम् । और दूधादि पथ्य आहार खानेसे क्षयका नाश कचूराजाजि कैटयं मांसी ककोलमुस्तकम् ॥ होता है।
For Private And Personal Use Only