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अकारादि-चूर्ण
(२५)
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त्रिफला नागरं चैव श्लक्ष्णचूर्णानि कारयेत् । । काञ्जिकेन तु तत्पेयं विडालपदमात्रकम् । मस्त्वारनालतक्रेण पयोमांसरसेन वा ॥ आमवाते प्रवृद्धे च योगोयममृतोपमः॥ आमवातं निहन्त्याशु श्वयधुं सन्धिसंस्थितम् ॥ गोरखमुण्डी, गोखरु, वरुणाकी जड़, गिलोय ___ गोरख मुण्डी, गोखरु, गिलोय, विधारा, | और सोंठ प्रत्येक सम भाग लेकर चूर्ण बनाषे । पिप्पली, निसोत, नागरमोथा, बरना, सांठीकी जड, गुण-प्रबल आमवात (गठिया)को आराम त्रिफला और सोंठ । इन सबका महीन चूर्ण करके करता है । मात्रा-१। तोला । अनुपान-~-काजी । मस्तु, आरनाल, छाछ, दूध या मांसरसके साथ यह योग अमृतके समान गुणकारी है । सेवन करनेसे आमवात और सन्धिगतशोथको शीघ्र आराम होता है।
[८३] अविपत्तिकर चूर्णम् [८१] अलम्बुषादि चूर्ण (२)
(वं. से.; धन्व, भै. र; रसे. चि; रसे. सा. सं. अम्ल.) (भा० प्र०, म० ख० आ० वा०)
त्रिकटु त्रिफला मुस्तं विडश्चैव विङ्गकम् । अलम्बुपागोक्षुरकं त्रिफला नागरामृताः।
एला पत्रश्च सर्वाणि समभागानि कारयेत् ।। यथोत्तरं भागवृद्धथा श्यामाचूर्णं च तत्समम् ॥
यावन्त्येतानि सर्वाणि लवङ्गं तत्समं भवेत् । पिवेन्मस्तसुरातक्रकाजिकोष्णोदकेन वा। सर्वचूर्णाद्विगुणितं त्रिवृच्चूणे तु कारयेत् ॥
आमवातं जयत्याशु सशोथं वातशोणितम ॥ यावन्त्येतानि सर्वाणि तावती शर्करा भवेत् । त्रिकजानूरुसन्धिस्थं ज्वरारोचकनाशनम् ॥
सर्वमेकीकृतं पात्रे स्निग्धे चैव निधापयेत् ॥ अलम्बुषादिकंचूर्ण रोगानीकविनाशनम् ।
भोजनादौ ततो भक्षेन्मासाष्टकमिदं शुभम् । हरीतक्यक्षधात्रीभिः प्रसिद्धा त्रिफला क्रमात् ।
शीततोयानुपानं च नारिकेलोदकं तथा ।। प्रत्येकं तेन वा युञ्ज्याद् भागद्वचा यथोत्तरम| ततो यथेष्टमाहारं कुर्यात्क्षीरोदनं च वै । गोरखमुंडी १ भाग, गोखरू २ भाग, हरड
अम्लपित्तं हरत्याशु शूलदुर्नामनाशनम् ॥ ३ भाग, बहेडा ४ भाग, आमला ५ भाग, सोंठ | प्रमेहां विंशतिश्चैव मूत्रघातं तथाश्मरीम् । ६ भाग, गिलोय ७ भाग, और निसोत २८ भाग। | अवित्तिकर चूर्णमगस्त्यमुनिभाषितम् ॥ इस चूर्णको मस्तु, सुरा, तक्र, कांजी अथवा गरम त्रिकुटा, त्रिफला, नागरमोथा, बिड नमक, पानीके साथ पीनेसे आमबात तथा शोथ युक्त | बायबिडंग, इलायची, तेजपात, सब समान भाग, वातरक्त, त्रिक, जानु, उरु और संधियोंमें स्थित वायु लवंग सबके बराबर, और इस सब चूर्णसे दो गुनी तथा ज्वर और अरुचिका नाश होता है। यह निसोत तथा इन सबके बराबर चीनी । सबका चूर्ण अलम्बुषादि चूर्ण रोग सनूहों कानाश करता है। करके चिकने बरतन में भरकर रक्खें । फिर भोजन
[८२] अलम्बुषादि चूर्णम् (३) । के पहिले ठंडे पानी या नारियलके पानीके साथ
(भा० प्र०, म० ख० आ० वा०) ८ माषा खाना चाहिए। फिर यथेष्ट दूध चावल अलम्बुषा गोक्षुरकं मूलं वरुणकस्य च। का आहार करे । इसके सेवनसे अम्लपित्त, शूल, गुडूची नागरं चेति समभागानि कारयेत् ॥ बवासीर, बीस प्रकारका प्रमेह, मूत्राघात, और
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