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लेपप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
४१६
अंकोलके बीजोंको मकोयके रसमें पीसकर अलसी, कलौंजी, मोथा, सरसों, नागरमोथा, लेप करनेसे खाज नष्ट होकर शरीरका वर्ण सुन्दर दारुहल्दी, चिरायता, मूर्वा, आककी जड़ और हो जाता है।
। हल्दी, इनके समान भाग चूर्णको एकत्र मिलाकर (८८७२) अङ्कोल्लकादियोगः पानी में पीसकर शरीर पर लेप करनेते बालकोंका
(ग. नि. । कुष्ठा. ३६) ज्वर नष्ट होता है। अङ्कोलः करवीरमूलमुशलीधत्तरपत्रं जटा ।
(८८७५) अपामार्गपत्रलेपः शिगुर्लाङ्गलिका च कुष्ठतुलसीमूलं च बीजा
(वै. म. र. । पट. १६)
नि च । भृढेरण्डगजार्कपत्रसहितं युक्तं तथा सर्षपै- अपामार्गदकालेपः सद्यो बध्नाति शोणितम् । देहश्वित्रहरं सकाञ्जिकमिदं तक्रेण सञ्चूर्णितम ॥ अतिप्रवृत्तमप्याशु सेतुबन्ध इवोदकम् ॥ ____ अंकोलकी जड़, कनेरकी जड़, मूसली, धतू- अपामार्ग (चिरचिटे)के पत्तोंको पीसकर लेप रेके पत्ते, जटामांसी, सहजनेकी छाल, लांगली करनेसे ( शस्त्राघातादिका) बहता हुवा रक्त तुरन्त (कलियारी) की जड़; कूठ, तुलसीकी जड़, तुल- बन्द हो जाता है। सीके बीज, भंगरा, अरण्डके पत्ते, गजपीपल, आकके पत्ते और सरसों समान भाग लेकर चूर्ण बनावें।
___ (८८७६) अपामार्गभस्मयोगः इसे कांजी या तक्रमें पीसकर लेप करनेसे श्वित्र
(वै. म. र. । पटल ११) नष्ट हो जाता है।
प्रलेपासिध्मयात्यस्तमपामार्गस्य भस्मना । (८८७३) अजापुरीषादियोगः कवलन यथा पाप चन्द्रशेखरभस्मना । (वै. म. र. । पटल १७)
अपामार्ग (चिरचिटे ) की भस्मका लेप कर अजापुरीपवल्मीकमृदश्वत्थजलैः कृतः। नेसे सिम्म नष्ट हो जाता है। प्रलेपः पातयत्याशु चर्मकीलं दशाहतः ।। (८८७७) अपामार्गादिलेपः ___बकरीकी मांगनी और बल्मीक (बांबी)की
( रसे. चि. म. । अ. ९) मिट्टी बराबर बराबर लेकर घोड़ेके मूत्रमें पीसकर लेप करनेसे दश दिनमें चर्मकील नष्ट हो जाती है। अपामागेस्य पञ्चाङ्गं कदलीद्रवसंयतम् । (८८७४) अतस्पादिलेपः
पुटदग्धं च गोमूत्रैर्लेपनं दद्रुनाशनम् ।। (यो. त. । त. ७७ ) ___अपामार्ग (चिरचिटे)के पंचागको केलेके रसके अतसीकारवीमुस्तासर्षपैः सपयोधरैः । । साथ हाण्डीमें बन्द करके भस्म करें। इस भस्मको दारूभूनिम्बमहिरिदाभिश्च लेपकः ॥ गोमूत्रमें पीसकर लेप करनेसे दाद नष्ट हो ज्वरं निहन्ति बालस्य महान्तमपि वासरैः ।। जाता है।
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