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तैलपकरणम् ]
- परिशिष्ट
४१५
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अतीस, हींग, सौंफ, दालचीनी, सब्जी और (८८६१) अरिमेदाद्यं तैलम् काली मच ; इनके कल्क तथा शुक्त *'चुक्र) के ( भै. र. ; धन्य. । मुखरोगा., च. द. ; यो. र. साथ सिद्ध तैल कानमें डालनेसे कर्णस्राव, और वृ. मा.। मुख. ; शा. ध.। खं. २ अ. ९ ; ग. कर्णनादका नाश होता है।
नि. । तैला. ; यो. त.। त. ६९ (फरक–२० तोले, शुक्त ८ सेर, तेल अरिमेदत्वपलशतमभिनवमापोथ्य २ सेर।)
खण्डशः कृत्वा। (८८५९) अपामार्गमूलतैलम् तोयाढकैश्चतुर्भिनिःकाथ्य चतुर्थशेषेण ॥ (रा. मा. । व्रणा. २५)
काथेन तेन मतिमान् तैलस्या ढकं शनैर्विपचेत् तिलतैलमपामार्गमूलेनाम्भोन्वितेन यत् ।
कल्कैरक्षसमांशैर्मभिष्टालोध्रमधुकानाम् ।। सिद्धं तत्स्वेदितः शस्त्रघातो न कुरुते व्यथाम् ॥
अरिमेदखदिरकटफललाक्षान्यग्रोधमुस्तासूक्ष्मैला१ सेर तिलके तैलमें ४ सेर पानी और १० तोले अपामार्गकी जड़का कल्क मिलाकर पकावें।
कर्पूरागुरुपद्मकलवङ्गकक्कोलजातीफलानाम् ॥ इस तेलसे स्वेदित करनेसे शस्त्राघातमें पीड़ा | पत्तङ्गगारकवराङ्गगजकुसुमघातकानाञ्च । नहीं होती।
सिद्धं भिषग्विदध्यादिदं मुखोत्थेषु रोगेषु ॥ (८८६०) अपामार्गादितैलम् परिशीर्णदन्तविद्रधिशौषिरशीताददन्तहर्षेषु । (धन्व. । शिरोरोगा. ; व. से. ; च. द. ; वृ. | कृमिदन्तदालनचलितादृष्टमांसावशीर्णेषु । मा. । शिरोरोगा.)
मुखदौर्गन्धयेषु कार्य प्रागुक्तेष्वामयेषु तैलमिदम् अपामार्गफलव्योपनिशाक्षवकराम?ः।
___क्वाथ-~अरिमेद (दुर्गंधित खदिर ) की सविडङ्गे धृतं मत्रे तलं नस्यं कृमीन् जयेत ।। छाल ६। सेर लेकर कूटकर ३२ सेर पानीमें पकावें
कल्क-अपामार्ग (चिरचिटे) के बीज, सोंठ, और ८ सेर पानी रहने पर छान लें । काली मिर्च, पीपल, हल्दी, नकछिकनी, हींग और कल्क-मजीठ, लोध, मुलैठी, अरिमेद छाल, बायबिडंग; सबका चूर्ण २॥-२॥ तोले लेकर |
खैर छाल, कायफल, लाख, बड़की छाल, नागरएकत्र मिलाकर पानीके साथ पीस लें।
मोथा, छोटी इलायची, कपूर, अगर, पनाक, लौंग, २ सेर तिलके तेलमें यह कल्क और ८ सेर
कंकोल, जायफल, पतङ्गकी लकड़ी, गेरु, दालचीनी, गोमूत्र मिलाकर पकावें।
नागकेसर और धायके फूल; इनका चूर्ण ११-१॥ इसकी नस्य लेनेसे कृमिजन्य शिरोरोग नष्ट
तोला लेकर सबको एकत्र मिलाकर पानीके साथ होता है।
पीस लें। ___ * शुक्त निर्माण विधि प्रथम भागके परि- ४ सेर तिलके तेलमें उपरोक्त क्वाथ और भाषा प्रकरणमें देखिये।
| कल्क मिलाकर मन्दाग्नि पर पाक करें।
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