________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
४१२
भारत - भैषज्य रत्नाकरः
असगन्धके क्वाथ और कल्क तथा चार गुने दूधके साथ सिद्ध घृत वातव्याधिको नष्ट करता है। तथा इसके सेवन से वीर्य और मांसकी वृद्धि होती है।
www.kobatirth.org
( असगन्धका क्वाथ ८ सेर, असगन्धका कल्क २० तोले, दूध ८ सेर, घी २ सेर । ) ( मात्रा - २ से ४ तोले तक । ) (८८५३) अष्टाङ्गमङ्गलघृतम् (अष्टाङ्गघृतम् )
( व. से. ; धन्व. ; २. २. | वाजीकरणा . ) मण्डूकीं सवचां सशङ्ख
कुसुमां सब्रह्मसौवर्चलाम् |
Trisanaat शतावर -
तां ब्राह्मीं गुडूचीं तथा ॥ पिष्ट्रांशैः पलिकैरिमाति
विधिवद्रव्याणि मस्रावणम् ।
सर्पिषस्थमथान
पयसां युक्तिं पचेत्पाचनम् ।
नाम्नाष्टाङ्गमिदं विदेहरचितं ख्यातं पिवेो घृतम् । लोकस्य सहस्रमेक दिवसेनैवाखिलं धारयेत् ॥
अक्षीणाप्रतिहीनवाणि मधुस्पष्टाभदायी सदा । oth शुक्रबृहस्पतीसम
नृणां पूज्यश्च नित्यं सदा ॥
कल्क- मण्डूकपर्णी, बच, शंखपुष्पी, ब्रह्मसुवर्चा (हुलहुल), चौंटली, वेतवती (सफेद कोयल), शतावर, ब्राह्मी, और गिलोय ५-५ तोले लेकर पानी के साथ पीस लें ।
इत्यकारादिघृतप्रकरणम्
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२ सेर घीमें यह कल्क और ८ सेर दूध मिलाकर मंदाग्नि पर पकावें । जब दूध जल जाय तो घीको छान लें।
इसे सेवन करने से स्मरणशक्ति इतनी तीव्र हो जाती है कि १ दिनमें हजार इलोक याद हो जाते हैं एवं वाणी मधुर और स्पष्ट होती है ।
-10++--
[ अकारादि
अथाकारादि-तैलप्रकरणम्
For Private And Personal Use Only
(८८५४) अगुर्वादितैलम्
काबृहतीशा लिपर्णीपृश्निपर्णीमाषपर्णीमुद्रपर्णी
( च. सं. । चि. अ. ३ ज्वरा. )
| गोक्षुरकैरण्डशोभा जनकवरुणार्क चिरिबिखतिव
अगुरुकुष्ठतगरपत्रनलदशैलेयकध्यामकहरे- कशटी पुष्करमूलगण्डीरोरुबूकप राक्षीवाश्मन्तणुकास्थौणेयकक्षेमिकैलावराङ्गदलपुरतमालपत्र- कशिग्रुमातुलुङ्गमूषकपर्णीपीलुपर्णी तिलपर्णीमेषभूतीकरोहिषसरलसलकी देवदार्वग्निमन्यबिल्व- शृङ्गीहिंस्रादन्तशठैरावतकभल्लातकास्फोतककास्यांना काश्मर्यपलापुनर्नवावृश्चीरकण्टकारि ण्डीर। त्मगुप्ताका काण्डैपी काकरअधान्यकाजमोदा