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घृतमकरणम् ]
परिशिष्ट
४११
(८८४९) अमृताद्यं घृतम् रक्तपित्त, श्वास, खांसी, क्षतक्षीणता, दाह और
शोथका नाश होता है। (व. से. । राजयक्ष्मा.)
(मात्रा-१ से २ तोले तक।) गुडूची शारिवा ह्रस्वा पञ्चमूली बला पम् । (८८५०) अशोकघृतम् समूलपत्रशाखन्तु पृथग्दशपलानि च ।।
(वा. भ. । चि. अ. । ३ कासा. ) जलद्रोणे विपक्तव्यं यावत्पादावशेषितम् । अशोकवीजक्षवकजन्तुघ्नाअनपद्मकैः । पिप्पली चन्दनं लोभ्रं हीवेरोशीरपर्पटम् ।। सविडेश्च घृतं सिद्धं तच्चूगै वा घृतप्लुतम् ।। पाठाभूनिम्बयष्टया त्रायन्ती नीलमुत्पलम् । लिह्यात्पयश्चानु पिबेदाज कासादिपीडितः ॥ मुस्तकेन्द्रयवाः शुण्ठी कटुकं सदुरालभम् ॥ । अशोकके बीज, काली सरसों, वायबिडंग, त्वकपत्रं दशमूलश्च कल्कैरर्धपलभिषक् । सुरमा, पाक और बिड नमक; इनके कल्कसे सिद्ध अजाक्षीरेण तत्तल्यं घृतपस्थं विपाचयेत् ॥ वृत पीने या इनके चूर्णको घीके साथ चाटकर हन्ति यक्ष्माणमत्युग्रं रक्तपित्तं त्रिदोषजम् ।। ऊपरसे बकरीका दूध पोनेसे कासका नाश होता है। श्वासकासक्षतक्षीणदाहशोथरुजापहम् ॥ (कल्क १० तोले, घो १ सेर, पानी ४ सेर ।) क्वाथ-गिलोय, सारिवा, लघु पंचमूल
(मात्रा-१ से २ तोले तक ।) (शालपर्णी, पृष्ठपर्णी, कटेली, बड़ी कटेली, गोखरू),
(८८५१) अश्वगन्धावृतम् (१) बला (खरैटी)का पंचांग और बासा (अडूसा) का
(ग. नि. । वन्ध्या . ५) पंचांग ५०-५० तोले लेकर सबको कूट कर ३२ अश्वगन्धाकपायेण मृदाग्निपरिसाधितम् । सेर पानीमें पकायें और ८ सेर रहने पर छान लें। : ऋतुकाले पिवेद्वन्ध्या गर्भसन्धानकं घृतम् ॥
२ सेर असगन्धको कूटकर १६ सेर पानीमें कल्क–पीपल, सफेद चन्दन, लोध, सुगन्ध
। पकायें जब ४ सेर पानी शेष रहे तो छानकर उसमें बाला, खस, पित्तपापड़ा, पाटा, चिरायता, मुलैठी, ।
। १ सेर घी मिलाकर पकायें। त्रायमाणा, नीलोत्पल. नागरमोथा, इन्द्रजौ, सोंठ,
ऋतु कालमें इसे सेवन करनेसे बन्ध्या स्त्री कुटकी, धमासा, दालचीनी, तेजपात और दशमूल;
गर्भ धारण करलेती है। प्रत्येकका चूर्ण २॥२॥ तोले लेकर सबको पानी ।
(मात्रा-२ से ४ तोले तक।) के साथ पीस लें।
(८८५२) अश्वगन्धावृतम् (२) २ सेर घीमें उपरोक्त क्वाथ, कल्क और २ (ग. नि. । वातव्या. १९; च. द. ; भै. र. ; वृ. सेर बकरीका दूध मिलाकर मंदाग्नि पर पकावें । मा. : व. से. । वातव्या.; यो. चि. म. । अ. ५) जब पानी जल जाए तो धीको छान लें।
अश्वगन्धाकषायेण कल्कैः क्षीरचतुर्गुणम् । इसके सेवनसे अत्युन राजयक्ष्मा, त्रिदोषज घृतं पक्वं तु वातघ्नं वृष्यं मांसविवर्धनम् ॥
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