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कषायप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
३६३
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जलम् ।
(८७८५) अपामार्गरसयोगः गिलोय, कदम्ब वृक्षकी छाल, नीमकी छाल (व. से. ; धन्व. । वणा.: रा. मा. । ब्रणा. २५) और अर्जुन वृक्षकी छाल समान भाग लेकर क्वाथ अपामार्गस्य संसिक्तं पत्रोत्थेन रसेन वा। बनावें । सद्योत्रणेषु रक्तन्तु प्रवृत्तं परितिष्ठति ॥ __इसमें सेंधा नमक मिलाकर मन्दोष्ण करके
अपामार्ग (चिरचिटे )के पत्तोंका रस भरनेसे पीनेसे विषूचिका, अजीर्ण और विषका नाश सद्योग ( शस्त्राधातादि ) का रक्त बन्द हो जाता है।
___ (८७८९) अमृतादिकाथः (१) . (८७८६) अपामार्गादिक्काथः
(यो. त. । त. ७५ ; यो. र. । सूतिका. ; ग. (वै. म. र. । पटल १३)
नि. । सूतिका. ; वृ. यो. त. । त. १४२) शादी सोपस्याटिपाययेन। अमृतानागरसहचरभद्रोत्कटपश्चमूलजलदमयूरमूलपथ्याभ्यां सिद्धमम्बु दिनत्रयम् ।। _यदि प्रसूता स्त्रीकी पीठ और कमर आदिमें
मृतशीतं मधुसहितं हरति परं मूतिकाशूलम् ॥ शोथ हो तो उसे चिरचिटेकी जड़ और हर्रका
__गिलोय, सोंठ, पियाचांसा, गंधप्रसारिणी, क्वाथ ३ दिन तक पिलाना चाहिये।
| पंचमूल ( वृहत ), नागरमोथा और सुगन्धबाला
समान भाग लेकर स्वाथ बनावें । इसे ठंडा करके (८७८७) अभयादिकाथः
शहद मिलाकर पीनेसे सूतिका रोग नष्ट होता है। (व. मे. । अम्लपित्ता.)
(८७९०) अमृतादिकाथः (२) । अभयापिप्पलीद्राक्षासिताधन्वयवासकम् । ( भा. प्र.। म. खं. २ ; वृ. मा. । वातरक्ता.; मधुना कण्ठदाहन्नमम्लपित्तहरं परम् ॥
व. से. ! वातरक्ता.) ___ हर्र, पीपल, मुनक्का और धमासा समान अमृतानागरधान्यककर्षत्रितयेन पाचनं सिद्धम। भाग लेकर क्वाथ बनावें।
जयति सरक्तं वातं सामं कुष्ठान्यशेषाणि ॥ ___ इसमें मिसरी और शहद मिलाकर पीनेसे गिलोय, सोंठ और धनिया १-१ कर्ष लेकर कण्ठकी दाह और अम्लपित्तका नाश होता है। । क्वाथ बनावें। (८७८८) अमृतादिकषायः । यह क्वाथ वातरक्त, आम और कुष्ठको नष्ट
(ग. नि. । अजीर्णा.) | करता है। पिवेद्विपक्वं त्वमृताकषायं
(८७९१) अमृतादिकाथः (३) कदम्बा नम्बार्जुनक्षकाणाम् ।
(व. से. । अम्लपित्ता.) क्वार्थ सुखोष्णं लवणप्रगाढं
अमृतानागरमुस्तकिरातसमभागसाधितं तोयम् । . विचिकाजीर्णविषापमर्दम् ॥ दारुणं तदम्लपित्तं जयत्यवश्यं नृणां सद्यः॥
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