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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) भारत-भैषज्य-रत्नाकर - - केवल अतीसका चूर्ण अथवा--अतीस, काक- । मोथा और चिरायता, सब समान भाग लेकर चूर्ण डासींगी और पीपल के चूर्ण को शहदके साथ | बनाकर इस में सब के बराबर गुड़ मिलावे । इसे चटानेसे बालकोंकी खांसी ज्वर और छर्दि का नाश प्रतिदिन १। तोला खावे और इसके पचने पर होता है। छाछ पिये। [५८] अतिविषादि चूर्णम् (३) [६१] अपामार्गादि कल्कः (यो० र० स्नायुका०) (वृ० नि० र० अर्श भा० ४ शा. ध.) अतिविषमुस्तकमाविश्वौषध अपामार्गस्य बीजानां कल्कस्तण्डुलवारिणा। पिप्पलीविभीतानाम् । पीतो रक्तार्शसां नाशं कुरुते नास्ति संशयः॥ चूर्ण तन्तुकृमिघ्नं पुंसामुष्णेन __अपामार्ग के बीजोंका कल्क चावलों के पानी वारिणा पीतम् ।। के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर का नाश अतीस, नागरमोथा, भारङ्गी, सोंठ, पीपल और | होता है । इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। बहेडा इनका चूर्ण गरम पानी के साथ सेवन करनेसे [६२] अभयादि चूर्णम् स्नायुक (नहरवा ) नष्ट होता है। (वृ० नि० र० भा० ४ अति०) [२९] अनन्तादि चूर्णम् अभयातिविषा हिंगु सौवर्चलकटुत्रयम् । (वृ० नि० र०, बृ० यो० त०) एतच्चूर्ण सुतप्ताम्भःपीतं श्लेष्मातिसारजित ।। हैड़, अतीस, हींग, काला नमक, त्रिकुटा । अनन्तं वालकं मुस्तं नागरं कटुरोहिणीम्। । सब चीजें समान भाग लेकर चूर्ण को गरम पानी सुखाम्बुना प्रागुदयात्पिबेदक्षसमं रवेः॥ | | के साथ सेवन करने से कफज अतिसार का नाश एतत् सर्वज्वरान् हन्ति दीपयत्याशु चानलम्।। होता है। अनन्तमूल, सुंगधवाला, नागर मोथा, सोंठ [६३] अभयादि योगः और कुटकी इनका ११ तोला चूर्ण प्रातःकाल कुछ (वृ० नि० र० भा० ५ गु० चि०) गरम (मन्दोष्ण) पानी के साथ सेवन करनेसे सब अभया सैन्धवं तकं भोजनान्ते पिवेदनु । प्रकारके ज्वरों का नाश होता है और अग्नि दीप्त त्रिफला सुवर्चलाक्षारं तुल्यं गुञ्जकैकं भक्षयेत्।। होती है। त्रिदोषोत्थं हरेद् गुल्मं त्रिफला सश्चलं तथा । [६०] अपामार्ग बीजादि चूर्णम् । उष्णे तक्रे पिबत्कर्ष मुण्डीमूलं च वारिणा ।। (वृ० नि० र० । अर्श०) हैड़ और सैंधा नमक का चूर्ण छाछ में मिला अपामार्गस्य वीजानि वह्निः शुण्ठी हरीतकी। कर भोजन के बाद पीने से अथवा त्रिफला और मुस्ताभूनिम्बतुल्यांशं सर्वतुल्यं गुडं भवेत्॥ हुलहुल का क्षार ये दोनों समान भाग मिला कर कर्षकं भक्षयेच्चानु जीर्णान्ते तक्रभोजनम् । इस में से १-१ रत्ती भर खाने से अथवा त्रिफला __ अपामार्गके बीज, चीता, सोंठ, हैड, नागर- : और कालानमक के चूर्ण को गरम छाछ के साथ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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