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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-चूर्ण (१७) - अकारादि चूर्ण प्रकरणम् यवानिका पञ्चगुणा पद्गुणा च हरीतकी । [४४] अग्निकरं चूर्णम् चित्रकः सप्तगुणितः कुष्ठं चाष्टगुणं भवेत् ॥ (व्यास० यो० सं०) एतद् वातहरं चूर्ण पीतमात्रं प्रसन्नया। शर्करा दाडिमं पथ्या रुचकं गिरिमल्लिका। पिबेद्दध्ना मस्तुना वा सुरया कोष्णवारिणा ॥ एषामग्निकर चूर्णमतिसारहरं परम् ॥ सोदावर्तमजीणं च प्लीहानमुदरं तथा। चीनी, अनारदाना, हैड़, काला नमक, कूड़े- अङ्गानि यस्य शीर्यन्ते विष वा येन भक्षितम् ॥ कीछाल । इनका चूर्ण अग्नि दीपक और अतिसार अर्शोहरो दीपनश्च शूलनो गुल्मनाशनः । नाशक है। | कासं श्वासं निहन्त्याशु तथैव क्षयनाशनः ॥ [४५] अमिमुखं चूर्णम् (१) चूर्णो ह्यग्निमुखो नाम्ना न कचित्प्रतिहन्यते । (बं० से; अजी० चि०) हींग १ भाग, बच २ भाग, पीपल ३ भाग, चित्रकहबुषाग्रन्धिकपिप्पली सोंठ ४ भाग, अजवायन ५ भाग, हरड़ ६ भाग, __ सौवर्चलाजमोदाभिः। चित्ता ७ भाग और कूठ ८ भाग,इनका चूर्ण बनाकर धान्यशटीयवपुष्करक्षाराजाजितिन्तिडीकैश्च ।। मात्रानुसार प्रसन्ना सुरा के साथ पीने से वायु का चव्ययवानीदाडिममृद्वीकैलाम्लवेतसैश्च समैः। नाश होता है । तथा इसे दही, मस्तु, सुरा अथवा अग्निमुखोऽयं चूर्णः काञ्जिकेन मस्तुना सीधुना। उप्ण जलके साथ सेवन करनेसे उदावर्त, अजीर्ण, पीतोऽन्यतमेन नृभिगुल्मारुचि- | तिल्ली, ऐसा उदररोग जिसमें अङ्ग विशीर्ण पन्हिसादशूलानि । हो जाते हों तथा विषदोष का नाश होता है। यह दुर्नामप्लीहोदरकफवातगदान्विनाशयति । चूर्ण बवासीर नाशक, दीपक, शूलहर, गुल्म चीत, हाऊबेर, पीपलामूल, पीपल, काला नमक, | नाशक, खांसी, श्वास नाशक और क्षय को हरने अजमोद, धनिया, कपूरकचरी, इन्द्रयव, पोखरमूल, वाला है। यह अग्निमुख चूर्ण कहीं भी निष्फल यवक्षार, सफेद जीरा, तितडीक, चव, अजवायन, नहीं होता। अनारदाना, मुनक्का, इलायची और अमलवेत, सब [४७] अग्रिमुख लवणम् समान भाग। इस अग्निमुख चूर्ण को कांजी वा (यो० र० । उ० चि०) मस्तु के साथ पीने से गुल्म, अरुचि, अग्निमांद्य, चित्रकत्रिवृतादन्तीत्रिफलारुचकैः समः। शूल, बवासीर, तिल्ली और कफज तथा वातज | यावन्त्येतानि चूर्णानि तावन्मात्रन्तु सैन्धवम् ।। रोगोंका नाश होता है। भावयित्वा स्नुहीक्षीरैःस्नुक्काण्डे प्रक्षिपेत्ततः। [४६] अग्निमुखं चूर्णम् (२) मृत्पङ्केनानुलिप्याथ प्रक्षिपेजातवेदसि ॥ (बं० से;च. प्र०,वृ. मा; यो० र० । अजी०चि०) सुदग्धं च ततो ज्ञात्वा शनैवैद्यः समुद्धरेत । हिंगुभागो भवेदेको वचा च द्विगुणा भवेत् । तक्रेण पीतं तच्चूर्ण यकृत्प्लीहोदरापहम् ।। पिप्पली त्रिगुणा ज्ञेया शृङ्गबेरं चतुर्गुणम् ॥ । एतदग्निमुखं नाम्ना लवणं वन्हिवर्धनम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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