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(१६)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
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(क्तप्रदरका नाश होता है।
[४३] अरडूसी स्वरसः
(वृ० नि० र० । मसू० चि०) वृषपत्ररसं दद्यात्पानार्थ मधुसंयुतम् ।
| कफजायां मसूर्यातु कठिनायां विशेषतः ॥
वांसे के पत्तोंका रस मधु मिलाकर पिलानेसे कफज मसूरिका (शीतला) को नाश करता है। | विशेषकर कठिना शीतला में उपयोगी है।
अथ चूर्ण-प्रकरणम्।
चूर्ण-व्याख्या अत्यन्तशुष्कं यद्व्यं सुपिष्टं वस्त्रगालितम्
चूर्ण तच्च रजः क्षोदस्तस्य पर्याय उच्यते अर्थात्-अत्यन्त शुष्क द्रव्यको पीसकर कपड़ेमें छान लिया जाय तो उसको चूर्ण, रज और क्षोद कहते हैं।
यदि एकाधिक औषधियोंका मिश्रित चूर्ण बनाना हो तो प्रत्येक औषधिका पृथक् पृथक् चूर्ण करनेके बाद तोल करके सबको यथा आवश्यक परिमाणमें मिलाना चाहिये क्योंकि सब औषधियों को मिलाकर एक साथ कूटनेसे किसी दवाका छानस अधिक और किसीका कम निकलनेके कारण उनके परिमाण में अन्तर पड़ जाता है।
चूर्णकी मात्रा कर्षश्चूर्णस्य कल्कस्य गुटिकानाश्च सर्वशः
द्रव शुत्क्या स लेढप्यः पातव्यश्च चतुर्द्रवः अर्थात्-चूर्ण, कल्क और गुटिका आदि की मात्रा १। तोला है । यदि इन्हें द्रव पदार्थ में मिलाकर चाटना होतो वह (द्रवपदार्थ) २॥ तोला, और यदि पीना होतो द्रवपदार्थ चूर्णादिसे ४ गुना लेना चाहिये । यह शास्त्रोक्त मात्रा है परंतु आजकल प्रायः चूर्ण लगभग ३ मासे की मात्रा में सेवन किये जाते हैं । चूर्ण दो मास पश्चात हीन वीर्य हो जाते हैं:
मासद्वयात्तथा चूर्ण हीनवीर्यत्वमाप्नुयात् । अतएव दो मास से अधिक पुराने चूर्ण इस्तेमाल करने ठीक नहीं ।
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