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(३१६)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
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के साथ १६ रत्ती की मात्रानुसार सेवन करने से । कपूर ८ भाग, इन्द्रजौ, त्रायमाणा, अजमोद, उदरस्थ कृमि, संग्रहणी, बवासीर, शोथ, गुल्म, | बायबिडंग, शुद्ध शिंगरफ़, शुद्ध मीठातेलिया और तिल्ली और उदर रोगों का नाश होता तथा अग्नि | केशर १-१ भाग लेकर चूर्ण करके १ दिन भांगरे प्रदीप्त होती है।
के रस में अच्छी तरह घोटें फिर ढाकके बीज (१ [१०३७ कृमिकाष्ठानलो रसः। भाग) मिलाकर मूसाकन्नी और ब्राह्मी के रस में
(र. सा. सं. । कृमि.) | घोटकर ३-३ रत्ती की गोलियां बनावें । विशुद्ध पारदं गन्धं वङ्गं तालं वराटकम्। इन्हें धतरे के साथ सेवन कराने से ७ प्रकार मनःशिला कृष्णकाचं सोमराजी विडङ्गकम् ॥ के कृमि नष्ट होते हैं। दन्तीबीजश्च जैपालं शिला टङ्कण चित्रकम् ।
| [१०३९] कृमिकुठारः (२) (यो. र. कृमि.) कर्षमात्रन्तु प्रत्येकं वज्रीक्षीरेण मईयेत् ॥
| विश्वं रामठसेन्धवाग्निमरिचं पथ्यावचागुग्गुलुकलायसहशीं कृत्वा वटिकां भक्षयेत्ततः। कृमिकाष्ठानलो नाम रसोयं परिनिर्मितः।
झेलं रात्रिविडङ्गकुष्ठलशुनं गन्धः कुबेराक्षकः ।
इन्द्रोद्भूतपलाशबीजखदिराजाजीकणादीप्यकं श्लैष्मिके श्लेष्मपित्ते च श्लेष्मवाते च शस्यते॥
सौवर्च मधुना गुटी कृमिकुठाराहा रुजाजन्तुनुद शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, वङ्ग भस्म, हरताल
सोंठ, हींग, सेंधा, चीता, कालीमिर्च, हैड़, भस्म, कौंडी भस्म, शुद्ध मनसिल, काले रंग का कांच (भस्म), बाबची, बायबिडंग दन्ती के बीज,
बच, गूगल, बीजाबोल (मुरमुकी) हल्दी, बायबिडंग, जमालगोटा, शुद्ध शिलाजीत, सुहागे की खील
कूठ, ल्हसन, शुद्ध गन्धक, करजवा, इन्द्रजौ, ढाकके और चीता ११-१। तोला लेकर थोहर के दूध में
बीज, खैर, जीरा, पीपल, अजवायन और सौंचल घोट कर मटरके समान गोलियां बनावें ।
(काला) नमक बराबर २ लेकर चूर्ण करके शहद इसके सेवन से कफज, कफपित्तज और कफ के साथ गोलियां बनावें । वातज क्रिमियों का नाश होता है । ___इनके सेवन से कृमि नष्ट होते हैं । [१०३८] कृमिकुठारो रसः (१) [१०४०] कृमिघ्न रसः ___(र. रा. सुं. । कृमि.)
(र. र. स. । अ. २०) करं चाष्टभागं च कुटजश्चैक भागकः। | रसस्य निष्कमादाय गन्धकं तत्समं कुरु। तत्समानं त्रायमाणमजमोदाविडङ्गकम् ।। | तानं देहि तदर्ध च पश्चाङ्गशाकवारिणा ।। हिङ्गलं विषभागं च तत्समानं च केशरम् । । मर्यादेकदिन रात्रौ क्षिपेत्तत्रैव यत्नतः। सर्व दृढं च संमद्ये भृङ्गाराजरसैर्दिनम् ॥ क्षीरिणीवाथमादाय तथा कुरु दिनान्तरे ॥ पालशबीजसंमिश्रमुन्दरीरसभावितम् । दत्वा लघुपुटं पश्च जयपालान्विमर्दयेत् । ब्राझीरसं ततो दत्वा सिद्धत् कृमिकुठारकः॥ देहि गुंजाद्वयं चास्य साज्यं शूलच्छिदे तथा ।। यल्लमात्रा वटीं कृत्वा दद्याद्धेमसमन्विताम् । शुद्ध पारा ५ माशा, शुद्ध गन्धक ५ माशा कुर्यास्कृमिविनाशं च एवं सप्तविध दृढम् ॥ । और ताम्र भस्म २।। माशा लेकर १ दिन शाक
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