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(१४)
भारत-भैषज्य-रत्नाकर
अतीस, हैड़, धमासा, दारुहल्दी, बच और चच्य। चिरायता, देवदारु, दशमूल, सोंठ, नागरमोथा, ये दस औषधियां बवासीर नाशक है। कुटकी, इन्द्रयव, धनियां और गजपीपल । इनका [३२] अरल्वादि क्वाथः काथ तंद्रा, प्रलाप, खांसी, अरुचि, दाह, मोह, श्वास, (वृ० नि० २० । ज्वराति०)
और सन्निपात ज्वर नाशक है। अरल्वतिविषामुस्ताशुण्ठीबिल्वं सदाडिमम् ।
[३५] अर्शमें तक्रप्रयोगः सर्वज्वरहरो क्वाथः सर्वातीसारनाशनः ।।
(च० सं० । चि० अ०६)
त्वचं चित्रकमूलस्य पिष्ट्वा कुम्भं प्रलेपयेत् । ___ अरलु, (सोनापाठा), अतीस, नागरमोथा, सोंठ,
तक्रं वा दधि वा तत्र जातमर्शोहरं पिबेत् ॥ बेलगिरी और अनारदाना । यह क्वाथ सब प्रकारके
चातश्लेष्मार्शसां तक्रात परं नास्तीह भेषजम् । ज्वर और अतिसार (दस्तों) को नष्ट करता है ।
तत् प्रयोज्यं यथादोषं सस्नेहं रूक्षमेव वा ॥ [३३] अष्टादशांग क्वाथः (१)
सप्ताहं वा दशाहं वा पक्षं मासमथापि वा। (भाव० प्र०, यो. र., वृ. मा., यो० चिं., च. द.,
बलकालविशेषज्ञो भिपक् तक्रं प्रयोजयेत् ॥ बं. से० । सन्नि । वृ० यो० त० । त० ५९)
चीतेकी जड़की छालको पीसकर घड़ेमें लेप दशमूली शठी शृङ्गी पौष्करं सदुरालभम् । करके उसमें दही जमादे, उस दही को या उससे भार्गी कुटजबीजश्च पटोलं कटुरोहिणी ॥ बनाये हुए तक्र (मट्टे) को पीनेसे बवासीरका नाश अष्टादशाङ्ग इत्येष सन्निपातज्वरापहः ।
होता है। वायु और कफकी बवासीर में तकसे कासहृद्ग्रहपार्शर्तिश्वासहिक्कावमीहरः ॥
अच्छी और कोई दवा नहीं है । छाछ (तक) को
दोषोंके अनुसार बिना धी निकाले या घी निकाल. दशमूल, कपूर कचरी, काकड़ासिंगी, पोखर- |
कर (वातज में बिना धी निकाले और कफज में मूल, धमासा, भारङ्गी, इन्द्रयव, पटोलपत्र और
घी निकालकर) सात दिन, दस दिन, पन्द्रह कुटकी। यह अष्टादशाङ्ग क्वाथ सन्निपात ज्वर,
दिन, अथवा एक मास लक बल और कालके जाखांसी, हृद्ग्रह, पसलीशूल, श्वास, हिचकी और ननेवाला वैद्य सेवन करावे । वमनका नाश करता है।
[३६] अर्शनाशकयोगः [३४] अष्टादशांग काथः (२)
__ (च० सं० । चि० अ० ९) (भा० प्र०, वृ० मा०, धन्व०; २० २०, च० द०
| दुःस्पर्शकेन बिल्वेन यमान्या नागरेण वा । सन्नि । वृ० यो० त० । त० ५९)ोवियता पाठान्त्यर्शसां रुजम् ॥ भूनिम्बदारुदशमूलमहौषधाब्द
प्रागुक्तान् यमके भृष्टान्सक्तुभिश्चावचूर्णितान् । तिक्तेन्द्रबीजधनिके भकणाकषायः। करञ्जपल्लवान् दद्याद् वातवर्धोऽनुलोमनान् ॥ तन्द्राप्रलापकसनारुचिदाहमोह
मदिरां वा सलवणां शीधुं सौवीरकं तथा । श्वासत्रिदोषजनितज्वरनाशनःस्यात् ॥ गुडनागरसंयुक्तं पिबेद्वा पौर्वभक्तिकम् ॥
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