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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१०) भारत-भैषज्य रत्नाकर एकरात्र मृदुसंपुटेन वा सिद्धिमेति कुमुदेश्वरो | .. रसः।। | (१०२५) कुष्ठकुठारो रसः वल्लमस्य मरिचैघृतान्वितै राजयक्ष्म (र० र० स०। अ० २०) परिशान्तये पिबेत्। सूतभस्मसमं गन्धं मृतायस्तामगुग्गुलुः। त्रिफला विषमुष्टी च चित्रकश्च शिलाजतु।। (१०२३ अ) कुलवधू इत्येवं चूर्णितं कुर्यात्प्रत्येकं निष्कषोडशम्। (र० सा० सं०। सन्नि०) चतुःषष्टि करंजस्य बीजचूर्ण प्रकल्पयेत्।। शद्धसतं मतं तानं मतं नागं मनः शिला। चतुःषष्टि मृतं तामं मध्वाज्याभ्यां तुत्थकं तस्य तुल्यांशं दिनमेकं विमर्दयेत्।। । विलोडयेत्। द्रवैश्चोत्तरवारुण्या चणमात्रा वटीकृता। स्निग्धभाण्डगतं खादेद्विनिष्कं सन्निपातं निहन्त्याशु नस्यमात्रेण दारुणम्।। ___ सर्वकुष्ठजित्।। एषा कुलवधूर्नाम जले घृष्ट्वा प्रयोजयेत्।। | रसः कुष्ठकुठारोऽयं गलत्कुष्ठनिकृन्तनः। सोना भस्म, रस सिन्दूर, गन्धक, मोती भस्म, पथ्यं त्रिमधुरं देयं तदभावे गुडौदनम्।। पारा, सुहागा, चांदी भस्म और सोना मक्खी भस्म पातालगरुडीमूलं मधुपुष्पी च धान्यकम्। बराबर बराबर ले कर खरल करके कांजी में घोट कर |सितया भक्षयेत्कर्षमतितापप्रणुत्तये।। गोला बनावें और उस पर कपर मिट्टी करके सुखाकर लियानागबलामूलं मध्वाज्यैवातितापनुत्।। लवणयन्त्र में एक रात पकावें अथवा लघु पुट लगादें। इसे २-३ रत्ती की मात्रानुसार मरिच के चूर्ण और __ रस सिन्दूर, गन्धक, लोह भस्म, ताम्र भस्म, घृत के साथ सेवन करने से राजयक्ष्मा का नाश होता है। | गूगल, त्रिफला, कुचला, चीता और शिलाजीत, इनमें से प्रत्येक वस्तु का चूर्ण १-१पल, करंजवेकी गिरी का (१०२४) कुष्ठकालानलो रसः चूर्ण ४ पल और ताम्र भस्म ४ पल लेकर सबको शहद (रसे० चि० म०। अ० ९). | और घी में मिलाकर चिकने बर्तन में भरकर रखदें। - इसे २ निष्क* (८ माशे) की मात्रानुसार सेवन करने गन्धं रस टङ्कणताम्रलौह भस्मीकृतं | से गलत्कुष्ठ और अन्य सब प्रकार के कुष्ठों का नाश मागधिकासमेतम्। | होता है। पञ्चाङ्गनिम्बेन फलत्रिकेन विभावितं | पथ्य-घी, शहद और मिश्री एवं इसके अभाव में राजतरोस्तथैव।। | गुडयुक्त भात। __यदि इसके सेवन से अत्यधिक ताप हो तो पाताल नियोजयेद्वल्लयुग्ममानकं कुष्ठेषु सर्वेषु गरुड़ी (कड़वी तोरी का भेद) की जड़, चोर होली और च रोगसंघे।। धनिये का चूर्ण १ कर्ष परिमाण लेकर मिश्री मिलाकर खिलावें। अथवा अत्यन्त ताप की शान्ति के लिये गन्धक, पारा, सुहागा, ताम्र भस्म और लोह भस्म नागबला की जड़ का चूर्ण शहद और घी में मिलाकर तथा मरिच का चूर्ण बराबर बराबर लेकर नीम के चटावें। पंचाङ्ग, त्रिफला और अमलतास के रसकी भावना दें। इसे सब प्रकार के कुष्ठों में २ वल्ल (४-६ रत्ती) की मात्रानुसार सेवन कराना चाहिये। तु मधुरमिति पाठान्तरम् *मात्रा अधिक प्रतीत होती है। (अनु०) For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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