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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ककारादि-रसप्रकरणम् ( ३०१) ग्रहदोषांश्च निखिलान् स्तन्यस्या- । और ठंडा होने पर उसमें मिश्री और शहद मिलावें। ग्रहणं तथा।। कामलामतिसारञ्च कृशतां वह्निवकृतम्। (१०२२) कुमुदेश्वरो रसः रसःकुमारकल्याणो नाशयेन्नात्र संशयः।। (यो० र०। रा० य०) रस सिन्दर, मोती भस्म, स्वर्ण भस्म, अभ्रक | पारदं शोधितं गन्धमभकं च समं समम्। भस्म, लोह भस्म और सोनामक्खी भस्म बराबर | तदध दरदं विद्यात्तदर्धा च मनः शिलाम।। बराबर लेकर घीकमार के रस में घोट कर मंग के सर्वाधं मृतलोहं च खल्वमध्ये विनिक्षिपेत्। समान गोलियां बनावें। द्विःसप्तभावना देयाः शतावर्या रसेन च।। __ इन्हें बालक की अवस्थानुसार १ या आधी गोली| ततः सिद्धो भवत्येष कमदेश्वरसंज्ञकः। की मात्रा में मिश्री युक्त दूध के साथ सेवन कराने से | सितया मरिचेनाथ गजाद्वित्रिप्रमाणतः।। ज्वर, श्वास, वमन, पारिगर्भिक, ग्रह दोष, स्तन्य भक्षयेत्प्रातरुत्थाय पूजयित्वेष्टदेवताम्। ग्रहण न करना (दूध न पीना), कामला, अतिसार, यक्ष्माणमग्रं हन्त्येव वातपित्तकफामयान्।। दुबलापन और पाचन विकार आदि रोग नष्ट होते हैं। ज्वरादीनखिलान्रोगान्यथा दैत्याञ्जनार्दनः। सतताभ्यासयोगेन वलीपलितनाशनः।। (१०२१) कुमुदेश्वरो रसः (र० सा० सं०। तृष्णा०) पारा, गन्धक और अभ्रक भस्म १-१ भाग, शंगरफ इन सब से आधा, मनसिल शंगरफ से आधी मृतताम्रस्य भागौ द्वौ भागैकं और इन सब से आधी लोह भस्म लेकर सब को एकत्र वङ्गभस्मकम। यष्टिमधुरसैर्भाव्यं शुष्कं माषार्द्धकं इसे प्रातः काल इष्टदेव की पूजा करके मिश्री और 'शुभम्।। | मरिच के चर्ण के साथ २-३ रत्ती की मात्रानसार सेवन सेव्यञ्चैवानुपानेन वक्ष्यमाणेन बुद्धिमान्। करने से यक्ष्मा और ज्वरादि वातज, पित्तज, तथा चन्दनं शारिवा मुस्तं क्षुद्रलानागकेशरम्।। कफज रोग, नष्ट होते हैं। एवं इन के निरन्तर अभ्यास सर्वतल्या तथा लाजा पचेत्षोडशिकैलैः। से वली पलित का नाश होता है। अर्द्धशेषं हरेत्क्वाथं सिताक्षौद्रयुतन्तु तत्।। १०२३) कमदेश्वरो रसः छर्दैि तृष्णां निहन्त्याशु रसोऽयं (र० रा० सुं०। क्षय०) कुमुदेश्वरः।। हेमभस्मरसभस्मगन्धकं मौक्तिकन्त ताम्र भस्म २ भाग और वंग भस्म १ भाग लेकर रसटङ्कणं तथा मुलैठी के रस की भावना देकर सुखावें। तारकं गरुडसर्वतुल्यकं काचिकेन परिमर्च इसे आधे माशे की मात्रानुसार नीचे लिखे अनुपान के साथ सेवन करने से छर्दि और तृष्णा का अत्यन्त गोलकम्।। शीघ्र नाश होता है। मृत्स्नया च परिवेष्ट्य शोषितं भाण्डके अनपान-चन्दन, शारिवा (उष्बा) मोथा, छोटी लवणगे थ पाचयेत्। इलायची, और नागकेसर समान भाग तथा सबके बराबर धान की खील लेकर १६ गुने पानी में पकावें।। यहां शंगरफ आधा भाग और मनसिल पूर्वोक्त सबसे जब आधा पानी शेष रह जाए तो उतार कर छान लें। पहले भी ले सकते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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