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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३००) भारत-भैषज्य-रत्नाकर जवाखार, पांचों लवण, शुद्ध मीठा तेलिया, त्रिकुटा, भावयेदिनमेकन्तु रसोयं कालकण्टकः । चीता, जीरा और बायबिडंग का चूर्ण मिला। दातव्यः सर्वरोगेषु सन्निपाते विशेषतः॥ ____ इसे १ माशे की मात्रानुसार ज्वर सहित, द्विगुञ्जामाकद्रावैतर्वा वातरोगिणाम् । ज्वर रहित, शूल, रक्त और शोथ युक्त अतिसार, निर्गुण्डीमूलचूर्ण तु माहिषाख्यं च गुग्गुलुम् । निरामातिसार, संग्रहणी और सन्निपातातिसार आदि समांशं मर्दयेदाज्ये तद्वटी कर्षसंमिता। समस्त अतिसारों में प्रयोग करना चाहिए। इससे | अनुयोज्या घृतैनित्यं स्निग्धमुष्णं च भोजनम् ।। अनुपानके बिना भी सफलता प्राप्त हो सकती हैं। मंडलानाशयेत्सर्वान्वातरोगान संशयः। [९९३] कार्यहरलौहम् सन्निपाते पिबेच्चानु रविमूलकषायकम् ॥ (र. रा. मुं., रसे. सा. सं. । रसा.) हीरे की भस्म १ भाग, रससिन्दूर २ भाग, श्वेता पुनर्नवा दन्ती वाजीगन्धा त्रिकत्रयः। अभ्रक भस्म ३ भाग, सोने की भस्म ४ भाग, शतमूलीपलायुक्तैरेभिर्लोहं प्रसाधितम् ॥ तांबे की भस्म ५ भाग, तीक्ष्ण लोह भस्म ६ भाग निहन्ति नियतं कार्यमपि ,गरसैःसह । और मुंड लोह भस्म ७ भाग, लेकर सब को ३ नास्त्यनेन समं लोहं सर्वरोगान्तकं मतम् ॥ | दिन तक अम्लवर्ग के रसों में घोटें । फिर उसमें दीपनं बलवर्णाग्ने र्घष्यदं चोत्तमोत्तमम् ॥ सञ्जीखार, सुहागे की खील और जवाखार तथा श्वेत पुनर्नबा, दन्ती, असगन्ध, त्रिफला, पांचोंनमकोंका चूर्ण १-१ भाग मिलाकर ३ दिन त्रिकुटा, त्रिमद (बायबिडंग, चीता और नागरमोथा) | संभालू के रस में घोटें। इसके पश्चात् सुखाकर शतावर और खरैटी के साथ लोह भस्म सिद्ध करें। उसमें इस समस्त चुण का आठवां भाग शुद्ध (लोह भस्म में इनका समान भाग चूर्ण मिलावें । ) | मीठा तेलिया और इतनी ही सुहागे की खील इसे भांगरेके रसके साथ सेवन करने से कृशता | मिलाकर १ दिन जम्बीरी नींबू के रस में घोटें। अवश्य नष्ट होती है । इसके समान समस्त रोगों यह रस साधारणतः समस्त रोगों में और विशेका नाश करने वाला दूसरा लोह नहीं है। यह । षतः सन्निपात में अद्रक के रसके साथ प्रयोग दीपन, बल, वर्ण और अग्नि वर्द्धक तथा अत्युत्तम | करना चाहिए । वातज रोगों में २-२ रत्ती की मात्रा नुसार घी के साथ सेवन कराना चाहिए। एवं [९९४] कालकंटको रसः दवा खानेके पश्चात् संभाल की जड़का चर्ण और (. नि. र. । वा. व्या.) भैंसिया गूगल बराबर लेकर धीमें घोटकर ११ वज्रसूताहेमार्कतीक्ष्णमुंडं क्रमोत्तरम् । तोले की वटी बनाकर उसे धी के साथ खिलावें। मारितं मर्दयेदम्लवगैण दिवसत्रयम् ॥ इसे सन्निपात में आककी जड़ के कषाय के साथ त्रिक्षारं पश्चलवणं मर्दितस्य समं समम् । देना चाहिए। दवा निगुण्डिकाद्रावैमर्दयेदिवसत्रयम् ॥ | यह रस मंडल कुष्ठ और समस्त वातज शुष्कमेतद्विचूाथ विपं चास्याष्टमांशतः। । रोगों का अवश्य नाश करता है। टणं विषतुल्यांशं दया जम्बीरज वैः ।। । * देखो पृ. १५१ टिप्पणि For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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