________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ककारादि-रसप्रकरणम्
(२९९)
अस्य वल्लकमथो सितयाक्तं
गुटिका बदराकारा कारयेद्भक्षयेत्सदा। सेवितं हरति मेहगदोधान्। शोफपांडुहरः सोयं रसः कामेश्वरो ह्ययम् ।। वीर्य्यदाढयकरणे कमनीयं
शुद्ध पारा ५ तोला, शुद्ध गन्धक ५ तोला, द्रावणं निधुवने वनितानाम् ॥ चीता १५ तोला, हैड़ १५ तोला, नागरमोथा, शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक और धतूरेके बीज | इलायची और तेजपात २॥-२॥ तोला, त्रिकुटा, समान भाग लेकर काली करके धतूरेके तेलमें घोटें। पीपलामूल और शुद्ध मीठा तेलिया ५-५ तोला,
इसे ३ रत्ती की मात्रानुसार मिश्रीके साथ | नागकेसर १। तोला और रेणुका २॥ तोला लेकर मिलाकर सेवन करनेसे प्रमेह नष्ट और वीर्य पुष्ट पूर्ण करके २५० तोला पुराने गुड़में मिलाकर होता है। यह कमनीय और कामिनी-विद्रावक है। पकावें (या गुड़की चाशनी में इन सब का चूर्ण [९९०] कामिनीविद्रावणो रस मिलावें) फिर इसे अदरकके रस और धीमें १-१ (भै. र. । वीर्यस्त.)
पहर घोटकर बेरके बराबर गोलियां बनावें।। आकारकरभः शुण्ठी लवङ्ग कुंकुम कणा। इसके सेवन से सूजन और पांडु का नाश जातीफलश्च तत्कोपं चन्दनं कार्षिकं पृथक् ॥ होता है। हिङ्गुलं गन्धकं शाणं फणिफेनं पलोन्मितम् । |
[९९२] कारुण्यसागरो रसः गुञ्जात्रयमिता कुर्यात्संमद्य वटिकां भिषक् ॥
___ (रसे. सा. सं.। ज्वराति.) पयसा परिपीतोऽयं शुक्रस्तम्भकरो रसः।
| भस्मसूताद् द्विधा गन्धं तथा द्विस्वं मृताभ्रकम्
। विद्रावणःकामिनीनां वशीकरण एव च ॥
दिनं सार्षपतैलेन पिष्ट्वा यामं विपाचयेत् ।। अकरकरा, सोंठ, लौंग, केसर, पीपल, जाय- |
| रसैमार्कवमूलोत्थैः पिष्ट्वा यामं विपाचयेत् । फल, जावित्री और चन्दन प्रत्येक ११-१। तोला । |
त्रिक्षारपञ्चलवणविषव्योषाग्निजीरकैः ॥ शुद्ध शिंगरफ और शुद्ध गन्धक ३.-३ माशा और अफीम ५ तोला लेकर खरल करके ३-३ रत्तीकी | सविडङ्गैस्तुल्यभागैरय कारुण्यसागरः। गोलियां बनावें।
माषमात्रं ददीतास्य भिषक् सर्बातिसारके ।। इन्हे दूधके साथ सेवन करनेसे शुक्रस्तम्भ सज्वरे विज्वरे वापि सशूले शोणितोद्भवे । होता है। यह कामिनीविद्रावक और वशीकरण है। | निरामे शोथयुक्ते वा ग्रहण्यां सामिपातिके ॥ [९९१] कामेश्वरो रसः (वृ. नि. र.। पाण्डु) अनुपानं विनाप्येष कार्यसिद्धिं करिष्यति ॥ पलं सूतं पलं गन्धं वह्निः पथ्या त्रयं त्रयम् । रस सिन्दूर १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग मुस्तैलापत्रकानां च मितं चापलं पलम् । और अभ्रक भस्म ४ भाग, लेकर १ दिन पर्यन्त त्र्यूषणं पिप्पलीमूलं विषं चैव पलं पलम् । सरसों के तेलमें घोटकर सरसों के तेल में १ पहर नागकेसरकर्षेक रेणुकापलं तथा ॥ पकावें । फिर इसी प्रकार १ दिन भांगरे की जड़के पुरातनगुडेनैव तुलार्धन प्रपाचयेत् । रस में खरल करके १ पहर तक पकावें । इसके मर्दयेचाकद्रावैर्यामैकं तद् घृतेन च । । पश्चात् उसमें १-१ भाग सजीखार, सुहागे की खील,
For Private And Personal Use Only