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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ककारादि-रस (२९७) ततो गुजामिताः कृत्वा वटयश्छायाप्रशोषिताः।। इसके सेवनसे रक्तविकार और मण्डल कुष्ठका एकैको दापयेदासां कसेरुखरसेन च ॥ नाश होता है। प्रमेहान विंशति हन्ति शुक्रमेहं विशेषतः।। अनुपान-गूगल, त्रिफला और गन्धकका चूर्ण ज्वरं जीर्णश्च यक्ष्माणं कामधेन्वभिधो रसः॥ | तथा इन सबके बराबर अरण्डका तेल लेकर सब रस सिंदूर, अभ्रक भस्म, सीसा भस्म, कपूर, को मिलाकर ८ माशे लें। सोनामक्खी भस्म, खपरिया भस्म और चांदी भस्म ९८५] कामकलाख्यो रसः बराबर २ लेकर कमल के रस में खरल करके (र. र. । वाजी; र. र; रसा.) १-१ रत्ती की गोलियां बनाकर छाया में सुखावें । मतमताभ्रक स्वर्ण वाजिगन्धामृतारसैः। इसमेंसे प्रति दिन १-१ गोली कसेरु के मुशलीकदलीकन्दद्वैस्तं मईयेद्दिनम् ।। स्वरस के साथ सेवन करने से वीस प्रकार के प्रमेह | रुदा लध्वग्निना पायंमद्ये पूर्वोक्तद्रवेः। और विशेषतः शुक्रमेह, जीर्णज्वर और राजयक्ष्मा पुटन्देयं पुनर्मद्यमेवमष्टपुटैः पचेत् ॥ का नाश होता है। शाल्मलीजातनिर्यासैश्चतुषिश्च भक्षयेत् । [९८४] कामधेनुरसः (२) गोक्षी मर्कटीषीजं पलाद्धं पाययेदनु ।। (र. रा. सुं. । कण्ठे) रसःकामकलाख्योऽयं रमते स्त्रीसहस्रधा। शुद्धं सूतं द्विधा गन्धं लोहपात्रे क्षणं पचेत् । सर्वाङ्गोद्वर्तनं कुर्यात्सयवैः शाल्मलीरसैः ।। शीतलं चूर्णयेत्खल्ले बद्ध्वा वस्त्रे चतुर्गुणे ॥ ____रससिंदूर, अभ्रक भस्म और सोने की भस्म, आरनाले घटातस्थं दोलायन्त्रे चतुर्गुणे। समान भाग लेकर असगन्ध, गिलोय, मूसली और पाचयेच्छोषयेत्पश्चादशांशं वत्सनागकम् ॥ केलेकी जड़ के रसमें १-१ दिन घोटकर लघुपुटमें क्षिप्त्वा सर्व व्यहं भाव्यं तैले वाकुचिसंभवे । | पकावें । फिर निकाल कर उपरोक्त चीज़ोंके रसमें कामधेनुरिति ख्यातो रसोयं मण्डलापहः ॥ | घोटकर उसी प्रकार पुट दें। इस तरह ८ पुट दें। गुग्गुलत्रिफला गन्धं सममेरण्डतैलकम् । । | इसे ४ माशे मोचरसमें मिला कर कौंच के द्विनिष्कमनुपानं स्याद्रक्तमण्डलकुष्ठजित् ॥ | बीजों के चूर्ण और २॥ तोला गायके दूधके साथ प्रथम शुद्ध गन्धक में उससे आधा शुद्ध | सेवन करनेसे अत्यन्त कामशक्ति बढ़ती है। पारद मिलाकर लोहे के पात्रमें गरम करें जब । इस प्रयोग के साथ सेंभल के रस में जौ का गन्धक पिघल जाय तो उसे जरा देर पकावें फिर | चूर्ण मिलाकर समस्त शरीर पर उसकी मालिश ठंडा होने पर खरल में घोटकर कजली करें एवं | करनी चाहिये। उसे चार तह किए हुवे कपड़े में बांध कर चार [९८६] कामाग्निसन्दीपन: गुनी कांजी में दोला यन्त्र की विधि से पका ।फिर (म. र. । ध्व. मं.) सुखाकर उसमें दसवां भाग शुद्ध मीठे तेलिये का | पलपरिमितशुद्धं सूतकं गन्धतुल्यं चूर्ण मिलाकर ३ दिन तक बाबची के तेलमें घोटें।। दरदकुनटितुल्यं मावितं शृङ्गवेरैः। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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