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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२९६) भारत-भैषज्य-रत्नाकर। फिर उसे बालकायन्त्र मे ४ पहर तक मंदाग्नि पर। इसे सूर्योदय के समय से प्रारम्भ करके १-१ पकावें (अग्नितेज न होने पावे ) जव स्वांग शीतल | पहरके अन्तर से १-१ रत्ती के हिसाब से दिन हो जाय तो शीशी में से औषधि को निकाल कर में ४ मात्रा पान के साथ सेवन करें। सुरक्षित रक्खे। इस का रंग शिंगरफ के समान पथ्य-दिन को लवण रहित दूध भात लाल होगा। । खावें और रात को इच्छानुसार दूध पियें । इसे धी और शहद में मिलाकर दूध के साथ ||९८२] कामदेवरसः (३) सेवन करना चाहिये एवं प्रातःकाल काली ईख, । (र. र. स. । अ. २७) खांड, दाख, खजूर और मुल्हठी खानी चाहिये। हेमपादयुतः सूतो मर्दितः शाल्मलीरसैः । इस के सेवन से अत्यन्त काम-वृद्धि होती | कदलीकंदनिर्यासे क्षीरेक्षरसगोघृते ॥ है। संभालू के रस के साथ सेवन करने से वातज | माक्षिके चासकृत्स्विनः शाल्मलीक्षीरगोक्षुरैः । पीडा अत्यन्त शीघ्र शान्त होती है एवं शरीर नवीन शर्करामलकद्राक्षामुशलीमाषमाक्षिकैः ।। हो जाता है। इसे अर्द्धशेष ( पकाते पकाते आधा | युक्तो रंभाफलं दत्त्वा कामदेव इति स्मृतः। शेष रहा हुवा ) दूध के साथ सेवन करने से वंध्या | मेवनालिका | सेवनार्ध्वलिङ्गः स्याद् द्रावयेद्वनिताशतम् ।। स्त्री को भी चिरञ्जीव पुत्रोत्पादन की शक्ति प्राप्त सोनेकी भस्म ( या वर्क) १ भाग, पारद होती है। (रससिंदुर) ४ भाग। दोनों को सेंभल के रस में इस के सेवन काल में उपवन, चन्द्रमा की घोटकर ( गोला बना कर दोलायन्त्र विधि से ) चांदनी और कामनियों का उपभोग करना चाहिए। | निम्न लिखित रसों में पृथक् पृथक् स्वेदन करें:[९८१] कामदेवः (२) (१) केली की जड़ का रस, (२) दूध, (र. रा. सुं. । वाजी. क.) ईख का रस और गाय का घी तीनों समान मात्रामें सूतो माषमितःखदोषरहितस्तत्तूर्यभागो बलि- मिले हवे (३) शहद (४) सेंमल का रस, दूध स्तन्मानन्तु भुजङ्गफेनमुदित क्षुद्राफलस्खाम्बुना। और गोखरू का क्वाथ तीनों समान मात्रा में एतद्रगोलकमाकलय्य विपचेत्क्षुद्राफले हेमगे। मिले हवे । लावैरष्टमितभवेदितिरसः श्रीकामदेवाभिधः॥ उपरोक्त द्रव्यों में स्वेदन करने के पश्चात् मात्रासर्योदये चैका गुञ्जा यामचतुष्टये। पीस कर सुरक्षित रखें। गुञ्जाचतुष्टयं देयं नागवल्लीदलान्वितम् ॥ | इसे खांड, आमला, दाख, मूसली और उड़द दुग्धौदनमलवणां रात्रौ क्षीरं यथेच्छया ॥ के चूण तथा शहद के साथ खाकर ऊपर से केले __शुद्ध पारद १ माषा, शुद्ध गन्धक चौथाई की फली खाने से अत्यन्त कामशक्ति प्राप्त होती है। माषा और अफीम चौथाई माषा लेकर (कन्जली ||९८३] कामधेनुरसः (१) करके) कटेलीके फलोके रसमें घोटकर गोली बनाकर (भै. र. । शुक्र, मे.) कटेली के फल में तथा धतूरे के फल में रखकर ८ | सिन्दुरमभ्रं नागश्च कर्पूरहेममाक्षिकम् । कुक्कुट पुट दें। खपेरें रजतश्चापि मर्दयेत्कमलाम्भसा ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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