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(२६०)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
कल्क द्रव्य-स्वर्ण क्षीरी (सत्यानाशी), मन- । तुम्बुरु भृङ्गयष्टया कन्दुकं कटुरोहिणी। सिल, भारंगी, दन्तीकी जड और फल, जायफल, | शटी दार्वी त्रिवृत्पद्मग्रन्थिकागुरुपुष्करम् ॥ चमेली, सरसों, ल्हसन, बायबिडंग, करंजवे की | कपूर कटफलं मांसी मुरैलाटरुषाभया । छाल, नीम, चीता, आस्फोता (हाफरमालीति वंगे) | एतेषां कार्षिकैःकल्कैर्नाम्ना कन्दर्प उच्यते ॥ गुञ्जा, अरण्ड मूल, बडी कटेली, मूली, तुलसी,
अष्टादशविधं कुष्ठं ग्रन्थिमजगतं तथा। अर्जक (तुलसी भेद) के फल, कूठ, पाठा, नागर
हस्तपादांगुलीसन्धिगलितं सर्वसन्धिषु ।। मोथा, तुम्बुरु, मूर्वा, बच, पीपलामूल, पांड,
अधिकानि च मांसानि यस्य गात्रे भविष्यति । इन्द्रजौ, सैंजिना, त्रिकुटा, भिलावा, नकछीकनी,
नासाकर्णास्य वैकल्यं भेकाकारवपुस्त्वचम् ॥ हरताल,चिरचिटा, तूतिया, कमीला, गिलोय,सौराष्ट्री (फिटकरी या गोपीचन्दन), कसीस, दारुहल्दीकी
श्वेतं रक्तं तथा कुष्ठं नानावणं विपादिकम् । छाल, सज्जी और सेंधालवण।
पामादिस्फोटकानीलीकृमिवृद्धिं तथैव च ॥ इन चीज़ोंके कल्क और कनेरकी जड तथा कीटदद्रु मसूरी च किटिभं रक्तमण्डलम् । पत्तोंके क्वाथ एवं चार गुने गोमूत्रके साथ सरसों | कुष्ठमौदुम्बरं पचं महापद्मं तथैव च। का तेल पकाकर कडवी तूम्बीमें भरकर रख दें। | गलगण्डाबुदं हन्याद्गण्डमालां भगन्दरम् । इसकी मालिशसे मुखका मंडल कुष्ठ, क्रिमि, कंडु वात पित्तजञ्चैव श्लेष्म सानिपातिकम् ।। (खुजली) और कुष्ठ शीघ्र नष्ट होता है। एकोल्वणं द्वय ल्वणश्च कुष्ठं हन्यान संशयः। [८५४] कन्दर्पसारतलम् (भै. र. कुष्ठे) सतौना, काला निसोत, गिलोय, नीम, सिरस, सप्तपर्णस्तथा काली गुडूची पिचुमर्दकम् । महातिक्ता (बकायन वा यवतिक्ता), अरनी, कड़वी शिरीषश्च महातिक्ता जया तुम्बी मृगादनी। तोरी, इन्द्रायण और हल्दी । प्रत्येक वस्तु ५०-५० निशादशपलान् भागान जलद्रोणे विपाचयेत। तोला ३२ सेर जल में काथ बनावें । इस क्वाथ, तैलप्रस्थं समादाय गोमूत्रश्च चतुर्गुणम् ॥ । ८ सेर गो मूत्र और अमलतास, भांगरा, अरनी, आरग्वधो भृङ्गराजो जया धुस्तूररात्रयः। धतुरा, हल्दी, भंग, चीता, खजूर, गोबर, आक ऐन्द्राशनाग्निखजूंरं गोमयार्कस्नुहीच्छदम् ।। | और सेहुण्ड (सेंड) के पत्तोंके २-२ सेर स्वरस तैलतुल्यं प्रदातव्यं खरसश्च पृथक् पृथक् ।। एवं निम्न लिखित कल्कके साथ यथा विधि २ सेर महाकालवचाबाह्मीतुम्ब्यग्निगृहपुत्रिकाः।।। तैल पकावें। कुचेलाकुलकारात्रिर्मेघनामा च ग्रन्थिका । ___ कल्क द्रव्य-----इन्द्रायन, बच, ब्राह्मी, कड़वी शम्पाकमकक्षीरश्च कासुन्देश्वरमूलकम् ॥ | तुम्बी, चीता, घीकुमार, कुचला, मनसिल, हल्दी, आचुजिङ्गीमहातिक्ता विशालाच्छविपत्रकम् । नागरमोथा, पीपलामूल, अमलतास, आकका दूध, प्रतिकास्फोतमूर्वा च सप्तपर्णशिरीषकम् ॥ कसौंदी, ईश्वरमूल (शिवलिंगी), आचु, मजीठ, महाकुटजं पिचुमर्दश्च महानिम्बं तथैव च । नीम, इन्द्रायन, विछवा (विछातीतिबंगे) करंजवा, गुइची चन्द्ररेखा च सोमराट् चक्रमर्दकम् ॥ आस्फोतक, मूर्वा, सतौना, सिरस, इन्द्रजौ, नीम ,
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