________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ककारादि-तैलं
(२५९)
शोधनं रोपणं तैलं पिडकायां प्रशस्यते ॥ यह तेल नेत्रपीडा, शिरशूल, मांस रक्तज
पीपल, मुल्हैठी, कूठ, इलायची, रेणुका,हल्दी, | स्लीपद, आमवात, हृदयकी पीडा, अंडवृद्धि, गलदारुहल्दी, मजीठ, शारिवा, लोध और धायके | गंड, सूजन, बधिरता, उदररोग, खांसी और कफ फूल । इनके कल्क तथा चार गुने पानीसे सिद्ध | रोगोंका नाश करता है। परीक्षा–यदि इस तेलकी तैल फोड़े फुसियोंको शुद्ध करता और घाव को | बूंद दूर्बा घास पर डालते ही वह तत्काल सूख भरता है।
जाय तो तेल उत्तम समझना चाहिये । [८५१] कनकतैलम् (१) (भै. र.। शि. रो.) [८५२] कनकतैलम् (२) (मै. र. क्षुद्र.) कनकार्कबला दूर्वा वासको वैजयन्तिका। मधुकस्य कषायेण तैलस्य कुडवं पचेत् । निर्गुण्डी पूतिका भार्गी निकोठकपुनर्नवा ।। | कल्कैप्रियंगुमञ्जिष्ठा चन्दनोत्पलकेशरैः॥ बदरीविजयापत्रं श्रीफलं घृहती तथा।। कनकं नाम तत्तलं मुखकान्तिकरं परम् । चित्रकच स्नहीमलमग्निमन्थो विडङ्गकम ॥ आभीरुनीलिकाव्यङ्गशोधनं परमर्थितम् ॥ त्रिवृद्भण्डी गोमठी च पत्रमारग्वधस्य च । | मुल्हैठी के कषाय और फूल प्रियंगु, मजीठ, प्रत्येकं द्विपलं चैषां गृह्णीयात्ततक्षणादपि ॥ चन्दन, नीलोफर और केसरके कल्कसे सिद्ध तैल जलदोणे विपक्तव्यं यावत्पादावशेषितम। | मुखकी कान्ति वर्द्धक तथा नीलिका और व्यंग प्रस्थश्च कटुतैलस्य पाचयेत्तीववादिना ॥ (झांई) आदि नाशक है। द्रव्याण्येतानि सर्वाणि कल्कितानि प्रदापयेत् । [८५३] कनकक्षीर तैलम् चक्षुःशूलं शिरःशूलं श्लीपदं मांसरतजम्॥ । (च. सं. चि. अ. ७) आमवातच हृच्छलं वृद्धिं च गलगण्डकम् । | कनकक्षीरीशैलाभार्गीदन्तीफलानि मूलश। शोथं बाधिर्यमुदरं कासं हन्ति न संशयः॥ जातीफलानि प्रवालसर्षपलशुनविडङ्ग करञ्जत्वक् दुर्वायां पतिते बिन्दौ शुष्कतां याति तत्क्षणात सप्तच्छदापल्लवमूलत्वनिम्बचित्रस्फोताः । कनकाख्यमिदं सैलं कफरोगकुलान्तकम् ।। गुझेरण्डवहतीमूलकसुरसाजेकफलानि ॥
धतूरा, आक, बला (खरैटी), दूर्वा (दूबड़ा | कुष्ठं पाठा मुस्तं तुम्बुरु मूर्वा वचा सपग्रन्था। घास), बासा, अरनी, संभाल, करमवा, भारङ्गी, | एडगजकुटजशियूषण भल्लातकक्षवकाः॥ ढेरा वृक्ष, पुनर्नवा (साठी), बेर, भांगके पत्ते, | हरितालमवाक्पुष्पी तुत्थं कम्पिल्लकोऽमृतासंज्ञः बेलगिरी, बडी कटेली, चीता, सेहुंड की जड, सौराष्ट्री कासीसं दात्विक्सर्जिकालवणम् ॥ अरनी, बायबिडङ्ग, निसोत, मजीठ (या सिरस), कल्कोतस्तैलं करवीरकमलकपल्लवकषाये। गोमठी और अमलतासके पत्ते प्रत्येक १०-१० सार्षपमथवा तैलं गोमूत्रचतुर्गुणं साध्यम् ।। तोला । सबको ३२ सेर पानीमें पकावें जब चौथा
स्थाप्यं कटुकालावुनि तत्सिद्धं भाग शेष रह जाय तो उतार कर छान लें। इस
तेनास्यमण्डलान्याशु । क्वाथ और इन्ही चीज़ोंके कल्कके साथ २ सेर | भिन्द्याद्भिपगभ्यंगात् क्रिमीश्व तैल तीवाग्नि पर पकावें।
कण्डूं विनिहन्यात् कुष्ठम् ॥
For Private And Personal Use Only