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ककारादि-धृत
(२५७)
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द्विपलान् सलिलद्रोणे घृते पिष्ट्वाऽक्षकाक्षिपेत्।। कुलत्थरसयुक्तं वा पञ्चकोलशृतं घृतम् । पञ्चकोलसप्ताह्वा च वयस्थाहिंगुतुम्बुरु। पाययेत्कफजे कासे हिक्काश्वासे शस्यते ॥ शटी पुष्करमूलार्कमूलं प्रतिविषा वचा॥ ___ कुलथीके क्याथ और पंचकोल (पीपल, पीपकिराततिक्तं मुस्तं च कर्कटाख्यां दुरालभाम् । लामूल, चव, चीता, सोंठ) के कल्कसे सिद्ध घृत नक्तमालमुमे पाटे कटुका शिग्रु तेजनी॥ कफज खांसी और स्वासका नाश करता है। सामवल्क द्विरजनी कटुकी कण्टकारिका। [८४३] कूष्माण्डादि घृतम् (यो. र: अप.) पटोलनिम्बगोजिह्वा कम्बुका मदनो जटा॥
कूष्माण्डकरसे सपिरष्टादशगुणे पचेत् । लवणानि पलांशानि क्षारानचपलोन्मितान् ।
यष्टयाह्रकल्के तत्सिद्धमपस्मारहरं परम् ॥ प्रस्थं चाज्यस्य तत्सिद्धं दीपनं कफवातजित् ॥ हृतप्लीहग्रहणीगुल्मश्वासकासार्शसां हितम्।
मुल्हैठीके कल्क और कुम्हेडे (पेठे) के दस दीर्घज्वराभिभूतानां वरिणाममृतोपमम् ॥
| गुने रससे पका हुवा घृत सेवन करनेसे अपस्मार
का नाश होता है। __ कुलथी, बेर, त्रिफला, दशमूल और जौ १० -१० तोला लेकर ३२ सेर पानीमें पकावें। [८४४] कोलायं घृतम् (१) (यो. र.) . __इस क्वाथ और नीचे लिखे कल्कके साथ | कोललाक्षारसे तद्वत्क्षीराष्टगुणसाधितम् । २ सेर घी पकावें।
कल्कैः षडङ्गदात्विग्द्राक्षाक्षोटफलान्वितम् ॥ कल्क द्रव्य- पंचकोल (पीपल, पीपलामूल, घृतं खजूरमृद्वीकामधुकैः सपरूपकैः । चव, चीता, सोंठ) सतौना, ऋद्धि, हींग, तुंबुरू, | सपिप्पलीकं वैस्वर्यकासश्वासज्वरापहम् ॥ कपूरकचरी, पोखरमूल, आककी जड़, अतीस,बच, बेर और लाखके क्वाथ तथा आठ गुने दूध चिरायता, नागरमोथा, काकड़ासींगी, धमासा, करं- और गोखरू, दारुहल्दी, दालचीनी, दाख और जवा, दो प्रकारके पाठे, कुटकी, सौजना, माल अखरोट, खजूर, मुन्नका, मुल्हैठी, फालसा और कंगनी, बाबची, हल्दी, दारुहल्दी, कुटकी, कटेली, पीपलके कल्कसे सिद्ध घृत स्वरभंग, खांसी, श्वास पटोलपत्र, नीम, बनगोभी, शंख, मैनफल और | और ज्वरका नाश करता है। जटामांसी। प्रत्येक १।-१। तोला, पांचो लवण
[८४५] कोलाचं घृतम् (२) ५-५ तोला । यवक्षार, सज्जीखार और सुहागाकी खील २॥-२॥ तोला।
(वृ. नि. र. । ज्व.) यह घृत दीपन, कफवात नाशक, हृद्रोग, | कोलाग्निमंथत्रिफलाक्काथो दध्ना धृतैः पिबेत् । तिल्ली, ग्रहणी, श्वास, खांसी और बवासीर नाशक | तिल्वकावापमेतद्धि विषमज्वरनाशनम् ॥ है एवं पुराने बुखारमें अमृतके समान है। बेर, अरनी और त्रिफलाके क्वाथ, दही और [८४२] कुलस्थायं धृतम्
लोधके कल्कसे सिद्ध घृत विषम ज्वर का नाश (च. सं. चि. अ. १८; ब. से; श्वासा) करता है।
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