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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) भारत-भैषज्य रत्नाकर [७९६] कुटजावलेहः (६) ५-५ तोला चूर्ण और १ सेर घी मिलावें । (शा. ध. म. खं. ८; व. से. अतिसा; व. से... जब ठंडा हो जाय तो उसमें १ सेर शहद अर्शो; वृ. मा. अर्शी; ग. नि. लेहा. ५; मिलाकर रक्खें । वृ. यो. त. त.६४; भै.र; धन्व. अर्श.) इसको सेवन करने और औषधियों के पच कुटजत्वक्तुलां द्रोणे जलस्य विपचेत्सुधीः। जाने पर पथ्य भोजन करनेसे बवासीर, अतिसार, कषायं पादशेषं च गृह्णीयाद्वस्त्रगालितम् ॥ अरुचि, संग्रहणी, पांडु, रक्तपित्त, शोष, कृशता त्रिंशत्पलं गुडस्यात्र दत्वा च विपचेत्पुनः।। और प्रवाहिका (पेचिश) का नाश होता है। सांद्रत्वमागतं ज्ञात्वा चूर्णानीमानि दापयेत् ॥ अनुपान-बकरीकी छाछ, दूध, दही या घी रसांजनं मोचरसं त्रिकटु त्रिफलां तथा। अथवा पानी । लालुं चित्रकं पाठां विल्वमिन्द्रयवं वचाम् ॥ भल्लातकं प्रतिविषां विडंगानि च वालकम् । [७९७] कुटजावलेहः (७) प्रत्येकं पलसमानं घृतस्य कुडवं तथा॥ (शा. ध. म. खं. ८) सिद्धशीते ततो दद्यान्मधुनः कुडवं तथा। कुटजत्वक्तुलामाद्रां द्रोणनीर विपाचयेत् । जयेदेषोऽवलेहस्तु सर्वाण्यर्शा स वेगतः॥ पादशेष शृतं नीत्वा चूर्णान्येतानि दापयेत् ॥ दर्नामप्रभवान्रोगानतीसारमरोचकम् । लजालुर्धातकी बिल्वं पाठा मोचरसस्तथा। ग्रहणी पांडुरोगं च रक्तपित्तं च कामलाम् ॥ | मुस्तं प्रतिविषा चैव प्रत्येकं स्यात्पलं पलम् ।। अम्लपित्तं तथा शोषं काश्यं चैव प्रवाहिकाम् । ततस्तु विपद्भ्यो यावद्दर्वीप्रलेपनम् । अनुपाने प्रयोक्तव्यमाजं तकं पयो दधि ॥ जलेन च्छादुग्धेन पीतो मंडेन वा जयेत् । घृतं जलं वाजीणे च पथ्यभोजी भवेन्नरः ॥ सर्वातिसाराधोरांस्तु नानावर्णान्सवेदनान् ।। __ कुड़ेकी ६। सेर छालको ३२ सेर पानीमें असृग्दरं समस्तं च सर्वशासि प्रवाहिकाम् ॥ पकावें जब चौथा भाग रह जाय तो कपड़ेमें छान कुड़ेकी गीली छाल ६। सेर लेकर ३२ सेर कर उसमें १ सेर १४ छटांक गुड मिलाकर दुबारा पानीमें पकावें । जब चौथा भाग शेष रह जाय तो पकावे और गाढ़ा होनेपर रसौत, मोचरस, सोंठ, छानकर उसमें लज्जावन्ती, धायके फूल, बेलगिरी, कालीमिर्च, पीपल, हैड़, बहेड़ा, आमला, लज्जावंती, पाठा, मोचरस, नागरमोथा और अतीसका ५--५ चीता, पाठा, बेलगिरी, इन्द्रजौ, बच, भिलावा, तोला चर्ण मिलाकर उस समय तक पकावें जब अतीस, बायबिडंग और सुगन्धबाला प्रत्येकका तक कि करछीको न लगने लगे। १. वृ. मा; ग. नि. भै. र; में मोचरस, इसको पानी, बकरीके दूध या मांडके साथ लजालु और बालकका अभाव है। सेवन करनेसे कष्टसाध्य, वेदना युक्त और रंग बिरंगे २. व. से. अर्शोधिकारोक्त में लज्जालु, अतिसार. रक्तप्रदर, बवासीर और प्रवाहिका(पचिश) पाठा, बालककी जगह मुस्ता, लोध, कैथ और घाय है। का नाश होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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