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(२०६)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
___ पित्तज तृषाकी शांतिके लिये खम्भारी, चन्दन, । [६४४] किराततिक्ताविकाथः (१) खस, पधाक, दाख और मुल्हैठीसे पानी पकाकर । (च. सं. चि. ज्वरा.) उसमें खांड डालकर पीना चाहिये । किराततिक्तकं तिक्ता मुस्ता पर्पटकोऽमृता । [६४१] काश्मर्यादिक्वाथ: (३) मन्ति पीतानि चाभ्यासात्पुनरावर्तकं ज्वरम् ।। (वृ. यो. त. ९१ त.)
___ चिरायता, कुटकी, नागरमोथा, पित्तपापड़ा
और गिलोय । इनका क्वाथ बना कर सेवन कर
| नेसे पुनरावर्तक (लोट २ कर आने वाला) ज्वर पित्तोत्तरे तु काश्मर्यद्राक्षारग्वधचन्दनैः॥ । नष्ट होता है।
पित्त प्रधान वातरक्तकी शांतिके लिये थोड़ी [६४५] किराताविकाथः (२) (भा. प्र. ज्वरे) थोड़ी देरमें खम्भारी, दाख, अमलतास और चन्द- किरातविश्वामृतवल्लिसिंहिका नसे पका हुआ दूध पीना चाहिये ।
___ व्याघी कणामूलरसोनसिन्दुकैः । [६४२] कासहरमहाकषायः (च.सं.सू.अ.४)
कृतःकषायो विनिहन्ति सत्वरं द्राक्षामयामल कपिप्पलीदुरालभाशृङ्गीकण्ट
___ ज्वरं समीरात्सकफात्समुत्थितम् ॥ कारिकाधीरपुनर्नवातामलक्य इति दशेमानी जमा
चिरायता, सोंठ, गिलोय, बड़ी कटेली [या
बांसा], कटेली, पीपलामूल, लहसन और संभालु । कासहराणि भवन्ति ।
| इनका क्वाथ वातकफज्वरका अत्यन्त शीघ्र नाश ___ मुनक्का, हैड़, आमला, पीपल, धमासा, काक- | करता है। डासींगी, कटेली, वृश्चीर (पुनर्नवा भेद) पुनर्नवा, [६४६] किरातादि सप्तकः (३) (साटी–विसखपरा) और भूई आमला । इन दस (भा. प्र., ग. नि; बुं.मा, ज्वरे) औषधियों का नाम "कासहर–महाकषाय” है। किराततिक्तकं मुस्तं गुडूची विश्वभेषजम् । [६४३] किरमालादिक्वाथः (वृ.नि.र.ज्वरे) पाठोदीच्यं मृणालश्च भृतं पित्ताधिके पिबेत् ।। किरमालो वचा हिंगु बालकं धान्यकं निशा।
चिरायता, नागरमोथा, गिलोय, सोंठ, पाठा,
| सुगन्धबाला और कमलनाल । इनका कषाय पित्तमुस्तायष्टिस्तथा मार्गी पर्पटः समभागतः॥
प्रधान सन्निपातका नाश करता हैं। अष्टावशेषित काथो मधुना प्रतिपाकतः। ।
[६४७] किरातादिक्वाथः (४) श्लेष्म पित्तज्वरं हंति रोगिणः पथ्यभोजिनः॥
(भा. प्र. ज्वरे) अमलतासका गूदा, वच, हींग, सुगन्धवाला, | किरातकटुकाकणाकुटजकण्टकारीशठीधनिया, हल्दी, नागरमोथा, मुल्हैठी, भारंगी और | फलिद्रकिलिमाभयाकटुककदफलाम्भोधरैः। पित्तपापडा । सब चीजें समान भाग लेकर क्वाथ | विषामलकपुष्करानलकुलीरशृङ्गी षैबनावें । आठवां भाग शेष रहने पर छानकर उसमें महौषधसखैरयं जयति कण्ठकुन्जं गणः॥ शहद डालकर पीने और पथ्य पालन करनेसे कफ- । चिरायता, कुटकी, पीपल, इन्द्रजौ, कटली, पित्तज ज्वरका नाश होता है।
शठी [कपूर कचरी], बहेड़ा, देवदारु, हैड, काली
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