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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०६) भारत-भैषज्य रत्नाकर ___ पित्तज तृषाकी शांतिके लिये खम्भारी, चन्दन, । [६४४] किराततिक्ताविकाथः (१) खस, पधाक, दाख और मुल्हैठीसे पानी पकाकर । (च. सं. चि. ज्वरा.) उसमें खांड डालकर पीना चाहिये । किराततिक्तकं तिक्ता मुस्ता पर्पटकोऽमृता । [६४१] काश्मर्यादिक्वाथ: (३) मन्ति पीतानि चाभ्यासात्पुनरावर्तकं ज्वरम् ।। (वृ. यो. त. ९१ त.) ___ चिरायता, कुटकी, नागरमोथा, पित्तपापड़ा और गिलोय । इनका क्वाथ बना कर सेवन कर | नेसे पुनरावर्तक (लोट २ कर आने वाला) ज्वर पित्तोत्तरे तु काश्मर्यद्राक्षारग्वधचन्दनैः॥ । नष्ट होता है। पित्त प्रधान वातरक्तकी शांतिके लिये थोड़ी [६४५] किराताविकाथः (२) (भा. प्र. ज्वरे) थोड़ी देरमें खम्भारी, दाख, अमलतास और चन्द- किरातविश्वामृतवल्लिसिंहिका नसे पका हुआ दूध पीना चाहिये । ___ व्याघी कणामूलरसोनसिन्दुकैः । [६४२] कासहरमहाकषायः (च.सं.सू.अ.४) कृतःकषायो विनिहन्ति सत्वरं द्राक्षामयामल कपिप्पलीदुरालभाशृङ्गीकण्ट ___ ज्वरं समीरात्सकफात्समुत्थितम् ॥ कारिकाधीरपुनर्नवातामलक्य इति दशेमानी जमा चिरायता, सोंठ, गिलोय, बड़ी कटेली [या बांसा], कटेली, पीपलामूल, लहसन और संभालु । कासहराणि भवन्ति । | इनका क्वाथ वातकफज्वरका अत्यन्त शीघ्र नाश ___ मुनक्का, हैड़, आमला, पीपल, धमासा, काक- | करता है। डासींगी, कटेली, वृश्चीर (पुनर्नवा भेद) पुनर्नवा, [६४६] किरातादि सप्तकः (३) (साटी–विसखपरा) और भूई आमला । इन दस (भा. प्र., ग. नि; बुं.मा, ज्वरे) औषधियों का नाम "कासहर–महाकषाय” है। किराततिक्तकं मुस्तं गुडूची विश्वभेषजम् । [६४३] किरमालादिक्वाथः (वृ.नि.र.ज्वरे) पाठोदीच्यं मृणालश्च भृतं पित्ताधिके पिबेत् ।। किरमालो वचा हिंगु बालकं धान्यकं निशा। चिरायता, नागरमोथा, गिलोय, सोंठ, पाठा, | सुगन्धबाला और कमलनाल । इनका कषाय पित्तमुस्तायष्टिस्तथा मार्गी पर्पटः समभागतः॥ प्रधान सन्निपातका नाश करता हैं। अष्टावशेषित काथो मधुना प्रतिपाकतः। । [६४७] किरातादिक्वाथः (४) श्लेष्म पित्तज्वरं हंति रोगिणः पथ्यभोजिनः॥ (भा. प्र. ज्वरे) अमलतासका गूदा, वच, हींग, सुगन्धवाला, | किरातकटुकाकणाकुटजकण्टकारीशठीधनिया, हल्दी, नागरमोथा, मुल्हैठी, भारंगी और | फलिद्रकिलिमाभयाकटुककदफलाम्भोधरैः। पित्तपापडा । सब चीजें समान भाग लेकर क्वाथ | विषामलकपुष्करानलकुलीरशृङ्गी षैबनावें । आठवां भाग शेष रहने पर छानकर उसमें महौषधसखैरयं जयति कण्ठकुन्जं गणः॥ शहद डालकर पीने और पथ्य पालन करनेसे कफ- । चिरायता, कुटकी, पीपल, इन्द्रजौ, कटली, पित्तज ज्वरका नाश होता है। शठी [कपूर कचरी], बहेड़ा, देवदारु, हैड, काली For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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