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ककारादि-क्वाथ
(२०३)
महा कषाय" है।
[६१८] कण्डुन महाकषायः । मुहुर्मुहुरो भुक्त्वा छर्दि जयति दुस्तराम् ।। (च. सू. अ. ४)
___ करंजवे की गिरी को जरा भून कर (भुल चन्दननलदकृतमालनक्तमालनिम्बकुट- भुला कर) टुकड़े टुकड़े करके बार२ खानेसे दुस्सा जसर्षपमधुकदारुहरिद्रामुस्तानीति ध्य वमन का नाश होता है। दशेमानि कण्डुनानि भवन्ति ॥
| [६२२] करंजादिकषायः (च. द. अग्नि) ____ चन्दन, जटामांसी, अमलतास, करञ्जवा, । करंज निंबशिखरीगुडच्यर्जकवत्सकैः। नीम, कुड़ा, सरसों, मुल्हैठी, दारु हल्दी और नागर-पीतः कषायोवमनाद् घोरां हन्याद्विचिकाम् ।। मोथा । इन दस चीज़ोंके योग का नाम " कंडून ! करंजवा,, नींब, चिरचिटा, गिलोय, तुलसी
और कुड़ेका क्वाथ पीने से वमन होकर दुस्साध्य [६१९] कदलीयोगः
विसूचिका (हैज़े) का नाश होता है। (वृ. नि. र. । बं. से. स्त्री. रो; यो. र. सोम.)
[६२३] कर्णप्रक्षालनम्(वृ. नि. र. । कर्ण रो.) कदलीनां फलं पक्वं धात्रीफलरसं मधु।। कर्णप्रक्षालने शस्तं कवोष्णं सुरभीजलम्। शर्करासहित खादेत्सोमधारणमुत्तमम् ॥ | पथ्यामलकमंजिष्ठालोध्रतिदुकवास्तु वा ॥
केले के पक्के फलों में आमले का रस, शहद | कान धोने के लिये मन्दोष्ण गोमूत्र एवं हैड, और खांड मिला कर सेवन करने से सोम रोग नष्ट | आमला, मजीठ, लोध, कुचला और बथुवा, इन के होता है।
क्वाथ हित कर हैं। [६२०] कपिकच्छ्वादिक्वाथः [६२४] कलिङ्गयवषट्कम् (वृ. नि. र. । वा. व्या.)
(बृ. नि. र; ग. नि; अति. यो. त. । त. २१) कपिकच्छुबलैरंडमाषनागरसाधितम् । सहरीतकी प्रतिविषां रुचकं ससैंधवं पिबेत्क्वार्थ नासारंध्रेण मानवः ॥ सवचं सहिंगु सकलिङ्गयुतम् । पक्षाघातं निहत्याशु शिरोरोग हनुग्रहम् ।। इति तत्कलिंगयवषट्कमिदं अदित संधिवातं च मन्यास्तम्भं सुदारुणम् ।। रुधिरातिसारगदशूलहरम् ।। ___कैच के बीज, खरैटी, एरंड, उडद और । हैड, अतीस, कालानमक, वचा, हींग और सोंठ के क्वाथ में सेंधा नमक मिलाकर नासिका | इन्द्रयव इन छः चीजो का क्वाथ रक्तातिसार और द्वारा पीने से पक्षाघात, शिररोग, हनुग्रह, अर्दित, शूल का नाश करता है। सन्धिवात और दुस्साध्य मन्यास्तम्भ का शीघ्र | [६२५] कलिङ्गादि क्वाथः (१) नाश होता है।
(वृ. नि. र. । अति.) [६२१] करंजबीजादि योगः कलिङ्गातिविषा हिंगुपथ्या सौवर्चलं वचा ।
(वृ. नि. र. । छर्दि.) | शूलस्तंभ विबंधप्नं पेयं दीपनपाचनम् ।। ईषत् भृष्टं करंजस्य चीजं खण्डीकृतं पुनः । इन्द्रयव, अतीस, हींग, हैड़, कालानमक और
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