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(२०२)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
[६१०] कण्टकपंचमूलम्
कटेली, गिलोय, देवदारु, यांसा और सोंठ (सु. सं. सु. ३८ अ.) के क्वाथ में पीपल का चूर्ण डाल कर पीने से करमर्दत्रिकण्टकसैरीयकशतावरी । कफवर का नाश होता है।
गृध्रनख्य इति कण्टकसंज्ञः ॥ [६१४] कण्टकार्यादिक्वाथः (४) करौंदा, गोखरु, पियाबांसा, शतावर और । (वृ. नि. र. ज्वरे) नखी । इन पांच द्रव्यों का नाम कण्टक पंचमूल है। बृहती पौष्कर भार्गी शठी शृङ्गी दुरालभा । [६११] कण्टकार्यादिक्वाथः (१) पक्त्वा पानं प्रशंसन्ति श्लेष्मा तेनोपशाम्यति ॥ (वृ. नि. र. कासे)
कटेली, पोखरमूल, भारंगी, कपुर कचरी, कण्टकारीयुगं द्राक्षावासाकचेरवालकैः। काकड़ासिंगी और धमासा । यह काथ कफ का नागरेण च पिप्पल्यांकथितं सलिलं पिबेत ॥ नाश करने के लिये अत्युत्तम है। शर्करामधुसंयुक्तं पित्तकासहरं परम् ॥ [६१५] कण्टकार्यादि क्वाथः (५) दोनों कटेली, मुनक्का, बासा,कचूर, सुगन्धबाला,
___ (वृ. नि. र. अम्ल.) सोंठ और पीपल । इन के क्वाथ में शहद और
कण्ट कार्यमृतावासाकषायं मधुसंयुतम् । मिश्री मिला कर पीने से पित्तज खांसी में अत्यधिक
| अम्लपित्तं जयेत्पीत्वा श्वास कासं वर्मि ज्वरम् ॥ लाभ पहुंचता है।
कटेली, गिलोय और बांसे का क्वाथ शहद
डालकर पीने से अम्लपित्त, श्वास, खांसी, वमन [६१२] कण्टकार्यादिक्वाधः (२) | और ज्वर का नाश होता है।
(भा. प्र. ज्वरे) । [६१६] कण्टकार्यादिपाचनम् (६) कण्टकार्यमृता भार्गी विश्वेन्द्रयववासकम् ।
(वृ. नि. र. ज्वरे.) भूनिम्बचन्दनं मुस्तं पटोलं कटुरोहिणी॥ कण्टकारिद्वयं शुंठी धान्यकं सुरदारु च । विपाच्य पाययेक्वाथं पीत श्लेष्मज्वरापहम् । एभिःशृतं पाचनं स्यात सर्वचरनिवारणम् ॥ दाहष्णारुचिच्छदिकासशूलनिवारणम् ॥ दोनों कटेली, सोंठ, धनिया और देवदारु । ___ कटेली, गिलोय, भारंगी, सोंठ, इन्द्रजौ, बासा, यह पाचन समस्त ज्वरों के लिये हितकारक है। चिरायता, चन्दन, नागरमोथा, पटोलपत्र और [६१७] कण्ठ्य महाकषायः(च. सू. अ. ४) कुटकी। इन का क्वाथ बना कर पीने से पित्तश्लेष्म सारिवे क्षुमूलमधुकपिप्पलीद्राक्षाविदारी ज्वर, दाह, तृष्णा, अरुचि, छर्दि, खांसी और शूल कैटर्यहंसपदीवृहतीकण्टकारिका इति का नाश होता है।
दशेमानि कण्ठयानि भवन्ति ॥ [६१३] कण्टकार्यादिक्वाथः (३) । ___ सारिवा, ईख की जड़, मुल्हैठी, पीपल, दाख,
(वृ. नि. र. ज्वरे) - विदारीकन्द, कायफल, हंसपादी, बड़ी कटेली और कण्टकार्यमृतादारुवृषविश्वासमाश्रितः । छोटी कटेली इन दश चीजों का नाम " कण्ठय क्वाथः कणारजोयुक्तः सद्यः श्लेष्मज्वरापहः॥ | महा कषाय " है।
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