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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८८) भारत-भैषज्य-रत्नाकर केलेके रसके साथ सेवन करनेसे कफज मूत्रकृच्छ्रका । यह यौवन दाता, रुचि वर्द्धक, तिल्ली, बवानाश होता है। सीर, श्वास, शूल और ज्वर नाशक तथा अग्नि [५५८] एलादिचूर्णम् (५) वर्द्धक, बल और वर्ण कारक, वात नाशक, नेत्रों के (वृ. नि. र. २० । मू. कृ.) लिये हितकारी, हृद्य एवं कंठ और जिह्या शोधक है। एलाश्ममेदकशिलाजतुगोक्षुराणा- [५६०] एलादियोगः (७) मेर्वारुबीजलवणोत्तमकुंकुमानाम् । (यो. र. अश्म; धन्व; मू. कृ.) चूर्णानि तंदुलजले लुलीतांनि पीत्वा | एलाश्मभेदकशिलाजतुपिप्पलीना प्रत्यक्षमृत्युरपि जीवति मूत्रकृच्छी॥ | चूर्णानि तण्डुलजलललितानि पीत्वा । इलायची, पत्थरचटा, शीलाजीत, गोखरू, । यद्वा गुडेन सहितन्यवलेह्य धीभा खोरके बीज, सेंधानमक और केसर । इनके चूर्णको | नासम्ममृत्युरपि जीवती मूत्रकृच्छ्री ॥ चावलों के पानी के साथ पीनेसे अत्यन्त दुःसाध्य । इलायची, पत्थरचटा, शिलाजीत और पीपल मूत्रकृच्छ्रका भी नाश होता है। इनके चूर्णको चावलों के पानी के साथ पीने या [५५९] एलादिचूर्णम् (६) (यो. चि. चूर्ण.) | गुड़के साथ मिलाकर खानेसे मृत्युके निकट पहुंचे लक्ष्मैलाकेशरं गं पत्रं तालीसकं तुगा। हुवे मूत्रकृच्छ्रीको भी आराम हो जाता है। मृद्धीका दाडिम धान्यं जीरके द्वे द्विकर्षिका। | [५६१] एलादिचूर्णम् (८) पिप्पली पिप्पलीमूलं चध्यचित्रकनागरम् । (इ. नि. र. ( बा, रो.) मरिच दीप्यकं चैव वृक्षाम्लं चाम्लवेतसम् ॥ एलाना जलमुस्तानां चूर्ण पीतं समाक्षिकम् । आजमोदाश्वगन्धा च कपिकच्छेति कर्षिका। तृष्णां छर्दिमतीसारं शिशूनां सत्वरं हरेत् ॥ अत्यंतसुविशुद्धायाः शकंरायावतुः पलम् ॥ । इलायची और जल मोथे (अथवा सुगन्धवाला पूर्ण युवाप्रदं पुंसां परमं रुचिवर्द्धनम् । । और नागरमोथा) के चूर्ण को शहदके साथ पिलानेसे प्लीहकोशामया सि श्वासं शूलं च सज्वरम्। | बच्चों की वमन और तृषाका अत्यन्त शीघ्र नाश निहन्ति दीपयत्यनि बलवर्णकरं परम्। होता है। वात रोचनं इथं कण्ठजिहाविशोधनम् ॥ [५६२] एलादिचूर्णम् (९) __ छोटी इलायची, नागकेसर, दालचीनी, तेजपात, (यो. चि. चूर्णा.) सालीसपत्र, वंसलोचन, मुनक्का, अनारदाना, धनिया, | एलाकुंकुमचोचजातिदलयुक् श्रीपुष्पजातीफलम् दोनों जीरे प्रत्येक २॥-२॥ तोला । पीपल, पीप- मस्तक्या करहाटनागरयुतं फेनाहिकृष्णान्वितम् लामूल, चव्य, चीता, सोंठ, कालीमिर्च, अजवायन, एतेषां समभागशीतकरजः स्यादर्धकस्तूरिका वृक्षाम्ल, अमलबेत, अजमोद, आसगन्ध और | दद्यात् क्षौद्रयुतं दिनान्तसमये यामद्वयं स्तंभकद कौंच । प्रत्येक २॥ २॥ तोला । अत्यन्त स्वच्छ इलायची, केसर, चोच (दालचीनी) जावित्री, चीनी २० तोला लेकर यथा विधि चूर्ण बनावें। तेजपात, लौंग, जायफल, रुमि मस्तगी, अकरकरा, For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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