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(१८८)
भारत-भैषज्य-रत्नाकर
केलेके रसके साथ सेवन करनेसे कफज मूत्रकृच्छ्रका । यह यौवन दाता, रुचि वर्द्धक, तिल्ली, बवानाश होता है।
सीर, श्वास, शूल और ज्वर नाशक तथा अग्नि [५५८] एलादिचूर्णम् (५) वर्द्धक, बल और वर्ण कारक, वात नाशक, नेत्रों के (वृ. नि. र. २० । मू. कृ.)
लिये हितकारी, हृद्य एवं कंठ और जिह्या शोधक है। एलाश्ममेदकशिलाजतुगोक्षुराणा- [५६०] एलादियोगः (७) मेर्वारुबीजलवणोत्तमकुंकुमानाम् ।
(यो. र. अश्म; धन्व; मू. कृ.) चूर्णानि तंदुलजले लुलीतांनि पीत्वा | एलाश्मभेदकशिलाजतुपिप्पलीना
प्रत्यक्षमृत्युरपि जीवति मूत्रकृच्छी॥ | चूर्णानि तण्डुलजलललितानि पीत्वा ।
इलायची, पत्थरचटा, शीलाजीत, गोखरू, । यद्वा गुडेन सहितन्यवलेह्य धीभा खोरके बीज, सेंधानमक और केसर । इनके चूर्णको | नासम्ममृत्युरपि जीवती मूत्रकृच्छ्री ॥ चावलों के पानी के साथ पीनेसे अत्यन्त दुःसाध्य । इलायची, पत्थरचटा, शिलाजीत और पीपल मूत्रकृच्छ्रका भी नाश होता है।
इनके चूर्णको चावलों के पानी के साथ पीने या [५५९] एलादिचूर्णम् (६) (यो. चि. चूर्ण.) | गुड़के साथ मिलाकर खानेसे मृत्युके निकट पहुंचे लक्ष्मैलाकेशरं गं पत्रं तालीसकं तुगा। हुवे मूत्रकृच्छ्रीको भी आराम हो जाता है। मृद्धीका दाडिम धान्यं जीरके द्वे द्विकर्षिका। | [५६१] एलादिचूर्णम् (८) पिप्पली पिप्पलीमूलं चध्यचित्रकनागरम् । (इ. नि. र. ( बा, रो.) मरिच दीप्यकं चैव वृक्षाम्लं चाम्लवेतसम् ॥ एलाना जलमुस्तानां चूर्ण पीतं समाक्षिकम् । आजमोदाश्वगन्धा च कपिकच्छेति कर्षिका। तृष्णां छर्दिमतीसारं शिशूनां सत्वरं हरेत् ॥ अत्यंतसुविशुद्धायाः शकंरायावतुः पलम् ॥ । इलायची और जल मोथे (अथवा सुगन्धवाला पूर्ण युवाप्रदं पुंसां परमं रुचिवर्द्धनम् । । और नागरमोथा) के चूर्ण को शहदके साथ पिलानेसे प्लीहकोशामया सि श्वासं शूलं च सज्वरम्। | बच्चों की वमन और तृषाका अत्यन्त शीघ्र नाश निहन्ति दीपयत्यनि बलवर्णकरं परम्। होता है। वात रोचनं इथं कण्ठजिहाविशोधनम् ॥ [५६२] एलादिचूर्णम् (९) __ छोटी इलायची, नागकेसर, दालचीनी, तेजपात, (यो. चि. चूर्णा.) सालीसपत्र, वंसलोचन, मुनक्का, अनारदाना, धनिया, | एलाकुंकुमचोचजातिदलयुक् श्रीपुष्पजातीफलम् दोनों जीरे प्रत्येक २॥-२॥ तोला । पीपल, पीप- मस्तक्या करहाटनागरयुतं फेनाहिकृष्णान्वितम् लामूल, चव्य, चीता, सोंठ, कालीमिर्च, अजवायन, एतेषां समभागशीतकरजः स्यादर्धकस्तूरिका वृक्षाम्ल, अमलबेत, अजमोद, आसगन्ध और | दद्यात् क्षौद्रयुतं दिनान्तसमये यामद्वयं स्तंभकद कौंच । प्रत्येक २॥ २॥ तोला । अत्यन्त स्वच्छ इलायची, केसर, चोच (दालचीनी) जावित्री, चीनी २० तोला लेकर यथा विधि चूर्ण बनावें। तेजपात, लौंग, जायफल, रुमि मस्तगी, अकरकरा,
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