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(१६६)
भारत-मैपण्य-रत्नाकर
खस, चन्दन (लाल) पाठा, दास, मुल्हैठी | मोथा, शालपर्णी, दोनों कटेली ( कटेली, कटेला) और पीपल । इनके क्वाथमें शहद डालकर पीनेसे गिलोय और गोखरू । इनका क्वाथ वात ज्वर रक्तपित्तका अवश्य नाश होता है। का नाश करता है। [४८४] उशीरादी कषायः (४) ४८६] उशीरादि काथः (६) ___(वृ. नि. र., वि. च.)
(वृ. नि. र., स्त्री. रो.) उशीरं चन्दनं मुस्तं गुडची धान्यनागरम् । | उशीरगोक्षुरघनः समंगानागकेशरम् । अंभसा कथित पेयं शर्करा मधुयोजितम् । | सपनकं समधुरं पाययेच विचक्षणः ॥ ज्वरे तृतीयके पुंसां तृष्णादाहसमन्विते ॥ खस, गोखरू, नागरमोथा, मजीठ. नागखस, लाल चन्दन, नागरमोथा, गिलोय, ही
लाय, | केसर, पद्माक और सौंफ का कषाय * सेवन धनया और सोठ, इन के क्वाथ म खाड आर | करने से गर्भ की रक्षा होती है। शहद मिला कर पीने से तृष्णा और दाहयुक्त
| [४८७] उशीरादीषडंगकषायः (७) तिजारी ज्वरका नाश होता है। [४८५] उशीरादीकषायः (५)
(वृ. नि. र. ज्व.) (वै. जी. प्र. वि)
उशीरचन्दनोदीच्यद्राक्षामलकपर्पटैः। उशीरकलशीमहौषधकिरातकांभोधरस्थिरा- शृतं शीतं जलं दद्याद्दाहतृड्ज्वरशांतये ॥ पहातका द्वयामृतलतात्रिकटैःकृतम् । कषाय- खस, लाल चन्दन, सुगन्धबाला, दाख, कममुं पिवत्पवनजज्वरय्याकुलःप्रमानदशश- आमला और पित्तपापड़ा, इनसे पकाकर ठंडा तच्छदछदमदग्रसल्लोचने
किया हुआ जल दाह, तृषा और ज्वर का नाश खस, पृश्निपणी, सोंठ, चिरायता, नागर-करता है।
___ अथ उकारादि चूर्णप्रकरणम्। [४८८] उत्पलादि चूर्णम् उशीरं तगरं शुण्ठी ककोलं चन्दनद्वयम् ।
(भा. प्र., ज्वरातिसारे) लवज पिप्पलीमूलं कृष्णला नागकेशरम् ।। उत्पलं दाडिमत्वच पकेशरमेव च । मुस्तामधुककपरं तुगाक्षीरी च पत्रकम् । पीतं तण्डुलतोयेन ज्वशतिसारनाशनम् ॥ कृष्णा गुरुसमं चूर्ण सिता चाटगुणा तथा।
नीलोफर, अनार का छाल और कमलकेसरके रक्तवान्तिश्च तापश्च नाशयेनात्र संशयः॥ चूर्ण को चावलों के पानी के साथ पीने से ज्चरा- ___ खस, तगर, सोंठ, कंकोल, लाल चन्दन, तिसार का नाश होता है।
सफेद चन्दन, लौंग, पीपलामूल, कालीमिर्च, १८९] उशीरादि पूर्णम् (१) इलायची, नागकेसर, नागरमोथा, मुल्हैठी, कपूर, (म. र र पं.)
* यहां मधु भी लिया जाता है।
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