________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
( १६४ )
www.kobatirth.org
[ ४७२] उग्रगंधादियोगः (वृ. नि. र; छर्दि )
भारत-भैषज्य रत्नाकर
उ
अथ उकारादि कषायप्रकरणम्
उग्र गंधारनालेन पीता छर्दि निवारयेत् ॥ बच को कांजी में पीसकर पीने से वमनका नाश होता है। [४७३] उग्रादिक्वाथः (वृ. नि. र; सन्नि . )
उग्रासिंहीया सरानामृताहा शुण्ठीतिक्ांगिका पौष्कराणाम् ।
ब्राह्मी भागतिक्तवासा शठीनां
काथ हन्याजिह्नकं सन्निपातम् ॥ बच, कटैली, धमासा, रास्ना, गिलोय, सोंठ, कुटकी, काकड़ा सींगी, पोखर मूल, ब्राह्मी, भारंगी, चिरायता, बसा और कचूर | इनका क्वाथ जिह्नक सन्निपात का नाश करता है ।
[ ४७४ ] उत्पलषष्टक क्वाथः (भा. प्र. स्वगति.) पृश्निपर्णीला बिल्वधनिकानागरोत्पलैः । ज्वरातिसारयोर्वापि पिवेत्साम्लं शृतं नरः ||
पिठवन, खरेंटी, बेलगिरी, धनिया, मोंठ और नीलोफर इनके क्वाथ में दाड़िम का रस मिलाकर पीने से ज्वरातिसार का नाश होता है। [ ४७५] उत्पलादि क्वाथः (बृ. नि. र., स्त्री. गे .)
नीलोत्पल मृणालं च कोला क्षीरं तथैव च । केसरं पद्मकं चैव तोयेनालोड्य तत्पिबेत् ॥ एवं न पतते गर्भः स च शूलः प्रशाम्यति ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नीलोफर, कमल नाल, बेर, दूध (?) नागकेसर और पद्माक | इन्हें पानी में घोटकर पीने से गर्भपात नहीं होता और गर्भावस्था के शूल नाश होता है।
[ ४७६ ] उत्पलादि गणः
(सु. सं. सू. अ. ३८) उत्पलरक्तोत्पल कुमुद सौगन्धिककुबलपुण्डरीकाणि मधुकचेति ।। उत्पलादिरयं दाहपित्तरक्तविनाशनः । पिपासाविपद्रो गच्छर्दिमूच्छहरो गणः ।। नीलोफर, सौगन्धिक लालकमल, कुमुद, कमल, कुवलय (घौला कमल) पुण्डरीक ( अत्यन्त सफेद कमल) और मुल्हैठी । इन चीजों के योग का नाम उत्पलादि गण है ।
यह दाह और रक्तपित्त का नाश करता है और पिपासा, विप, हृद्रोग, वमन और मूर्छा इनका हरण करनेवाला है।
[ ४७७ ] उदर्वप्रशमनमहाकषायः (च. सं. सू. ४) तिन्दुक पियालबदरखदिरसप्तपर्णाश्वकर्णार्जुनास नारिमेदा इति दशेमान्युदर्दमशमनानि भवन्ति ।
तिन्दुक (तेंदु ) पियाल (चिंगेज़ी वृक्ष) वेर, खैर, सफ़ेद खैर, सतौना, साल, अर्जुन, असना ( पीत शाल) और दुर्गन्ध खदिर । यह दश चीजें उदर्द नाशक है ।
For Private And Personal Use Only