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(१४६)
भारत-भैषग्य-रत्नाकर
अग्निबलानुसार मात्रा में सेवन करना चाहिये। धारणशक्ति बढ़ती है । यह प्रयोग जितने मास तक
इस रसायन को पूर्वकाल में वशिष्ठ, कश्यप, | सेवन किया जाता है उतने ही सौ वर्ष की आयु अङ्गिरा आदि ऋषियोंने सेवन किया था और उसके । प्राप्त होती है । पथ्य---औषधि पच जाने पर मूंग प्रभाव से श्रम, व्याधि, जरा आदि रहित अत्यन्त | और आमले के लवण रहित किञ्चित घृत युक्त बलवान होकर यथेच्छ समय तक तपस्या करते | यूषके साथ घृत युक्त भात खाना चाहिये । रहे थे। इसके प्रभावसे ही उन्होंने तप, ब्रह्मचर्य,
[४१८] अन्यत्र ध्यान और शान्तियुक्त आयु प्राप्त की थी । यथोक्त नियमों को पालन करने से ग्राम्य जनों को भी | विडङ्गतण्डुलानां द्रोणं पिष्टपचनेपिष्टवादइससे सिद्धि प्राप्त हो सकती है।
स्वेधविगतकषायं स्विन्नमवतार्य दृषदि [४१७] आयुर्वर्द्धकप्रयोगः पिष्टमायसे दृढे कुम्भे मधुदकोत्तरं प्रावृषि
(सु. सं. चि. अ. २६) भस्मराशवन्तर्गृहे चतुरो मासान्निदध्यान् । तत्रविडङ्गतण्डुलचूर्णमाहृत्य यष्टीमधुयुक्तं
वर्षाभिगमे चेद्धृत्योपसंस्कृतशरीः सहस्त्रयथावलं शीततोयेनोपयुञ्जीत शीततोयं | सम्पाताभिहुतं कृत्वा प्रातः प्रातर्यथावलमचानुपिबेदेवमहरहर्मासं तदेव मधुयुक्तं भल्लातक पयुञ्जीत ॥ जीर्णे मुद्गामलकयुषेणालवक्वाथेन वा मधुद्राक्षाकाथयुक्तं वा मध्याम- | णेनाल्पस्नेहेन घृतवन्तमोदनमश्नीयात् । लकरसाभ्यां वा गुडुचीक्काथेन वा । एवमे- | पशुशय्यायां शयीत् । तस्य मासा सर्वाः ते पञ्च प्रयोगा भवन्ति । जीर्णेमुद्गामलक
| ड्रेभ्यः कृमयो निष्कामन्ति तानणुतैलेनाम्ययषणालवणेनाल्पस्नेहेन घृतवन्तमोदनमश्नी | क्तस्य वंशविदलेनापहरेत् ॥ द्वितीयेपिपीयात । एतेखल्वासि क्षपयन्ति कमीनप- लिकास्तृतीये यूकास्तथैवापहरेत् चतुर्थे घ्नन्ति ग्रहणधारणशक्ति जनयन्ति । मासे मासे | दन्तनखरोमाण्यवशीयन्ते पञ्चमे प्रशस्तगुण प्रयोगे वर्षशतमायुषोऽभिवृद्धिर्भवति ॥ लक्षणानि जायन्ते । अमानुषं चादित्यप्रका___वायबिडंग और मुल्लैटी का चूर्ण समान भाग | शवपुरधिगच्छति ॥ दूराच्छ्रवणानि दर्शमिलाकर अग्निबलानुसार मात्रा से ठंडे पानी के साथ | नानि चास्य भवन्ति । रजस्तमसीचापोध खाकर ऊपर से ठंडा पानी पियें । इसी प्रकार प्रति- | सत्वमधितिष्ठति ॥ श्रुतिनिगाधपूर्वोत्पादी दिन १ मास तक इसे सेवन करें । अथवा उपरोक्त | गजबलोऽश्वयवःपुनर्युवाष्टौ वर्षशतान्याचूर्ण में शहद मिलाकर मिलावे के क्वाथ या| युरवाप्नोति । तस्याणुतलमभ्यंगार्थे अज. मुनक्का के काथ अथवा आमले के रस के साथ | कर्णकषायमुत्सादनार्थे सोशीरं कूपोदकं वा गिलोय के रसके साथ १ मास तक सेवन | स्नानार्थे चन्दनमुपलेपनार्थे भल्लातककरें। इस प्रकार यह पांच प्रयोग हुवे । इनमें से | विधानवदाहारः परिहारश्च ॥ चाहे जो सेवन किया जा सकता है। इसके सेवन १६ सेर वायबिडंग लेकर उसे पीसलें और से बवासीर और कृमि रोग का नाश होता है एवं । फिर उसे बायबिडंग के कषाय में स्वेदन करें।
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