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अकारादि-रस
(१२३)
शर्करा का नाश होता है। व्यवहारिक मात्रा , (इन्हें ठण्डे पानी के साथ सेवन करने से विरेचन १ माशा।
| होता है।) [३४२] अश्मरीभिद्रसः(र. प्र. सु. अ. ८) [३४५] अश्वचोली रमानुपानम् रसं सिन्दूरनामानं गन्धतैलेन मर्दितम् । ।
(र. रा. सुं. श्वासे) भक्षयेदल्लमात्रं हि अश्मरीरोगघातकम् ।।
शृङ्गवेररसैः साधं वटीमेको प्रयोजयेत् । लोहाकमूलस्वरसं शर्करासंयुतं पिवेत् ॥
उष्णेन वारिणा शूले कासे खासे च यक्ष्मणि ।। रस सिन्दुर को गन्धक के तेल में घोटकर ३
घोडाचोलीति विख्याता नाम्ना नागार्जुनोदिता
मधुना वलित पलिंत जयेत् । रत्ती प्रमाणमें खाने से पथरी रोगका नाश होता है।
शोभाञ्चनरसगोघृताभ्यां जठरशूलं जयेत् । [३४३] अश्मरीभेदको रसः (र. प्र. सु.अ.८)
दध्नाऽजीर्ण शतपत्ररसेन शीतज्वरम् । श्वेताम्बरी तथा श्वेता चाश्वगन्धा पुनर्नवा ।
पुनर्नवारसेन पाण्डं तिलपर्णीरसेन । तासां रसेन संमर्य पारदं दोषवर्जितम् ॥
नेत्राञ्जनेन नेत्ररोगान्, तण्डुलोदकेन विषम् । गन्धकेन द्विमागेन कारयेद्गोलमुत्तमम् ।।
जीरशर्करया ज्वरं बहुदिनसेवनेन सुभगो भवेत्।। स्वेदयेद्याममधं तु भक्षितं चाश्मरीप्रणुत ॥
वचादेवदारुकुष्ठरस्थिगतवातं। मस्तककेशान्सिखाल, श्वेत अपराजिता, असगन्ध, और
रीकृत्य छित्वा निम्बु नीरेण मर्दयेत् । दन्तनिपुनर्नवा । इनके स्वरस से पारद को भावना देकर
मुक्तत्वं भवति गोमूत्रेण पूगलग्नव्यथा हरेत् । शुद्ध करे फिर यह शुद्ध पारद एक भाग और शुद्ध
आर्द्रकरसेन विरेचनं भवेत् । जातीफलेनार्शसा गन्धक दो भाग लेकर कजली करके गोला बनाकर
नाशः। पुत्रजीवरसेन वन्ध्यायाः पुत्रो भवेत् । उसे आधा पहर तक स्वेदन करके रक्खे । यह
शिरीष रसेन सर्पविषनाशः । वचायवानीरसेन पथरी रोग का नाश करता है।
कटीवातम् । आटरूषकरसेन श्वासकासौ॥ [३४४] अश्व कंचुकी रसः(र. रा. सु. श्वासे)
___ अद्रक के रस और गरम पानी के साथ १ गोली पारदं टकणं गन्धं विष व्योषं फलत्रयम्। | खाने से शूल, खांसी, श्वास और यक्ष्मा का नाश तालकश्च समं सर्व जैपालं चापि तत्समम् ॥ होता है। मधु के साथ सेवन करने से वलीपलित मदयेत् भुंगनीरेण भावना तु त्रिसप्तधा। रोगका नाश होता है। सौंजने के रस और गुञ्जामात्रां वटीं कृत्वा छायायां शोषयेत् बुधः॥ गोघृत के साथ जठर शूल मिटता है और दधि ___शुद्ध पारा, सुहागे की खील, शुद्ध गन्धक, | के साथ सेवन करने से अजीर्ण नष्ट होता है। शुद्ध विष, त्रिकुटा, त्रिफला, हरताल, और शुद्ध | कमल के पत्तों के रस के साथ देने से शीतज्वर जमाल गोटा । सब समान भाग लेकर प्रथम पारे और पुनर्नवा के रस के साथ सेवन करने से पाण्ड गन्धककी कजली बनावें और अन्य औषधियों का | का नाश होता है, तिलपर्णी के रस के साथ चूर्ण मिलाकर भांगरे के रस की २१ भावना देकरे आंखों में अंजन करने से नेत्र रोगों का और १-१रती की गोलियां बनाकर छाया में सुखावें । ! चावलों के पानी के साथ देने से विष का नाश
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