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अकारादि-स
(१२१)
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___पारे (रससिन्दूर) को चौलाई, विसखपरा, , व्यषणं लागली दन्ती पीलुकं चित्रकं तथा। पान, धीकुमार, खरैटी, और गोमूत्र की भावना देकर | प्रत्येकं द्विपलं योज्यं यवक्षारं च टङ्ककम् ॥ (पानमें लपेटकर उसके ऊपर मिट्टी का दो अंगुल उभौ पञ्च पलो योज्यौ सैन्धवं पलपञ्चकम् । मोटा लेप करके सुखाकर) एक (लघु) पुट दे। द्वात्रिंशत्पलगोमूत्रं स्नुही क्षीरं च तत्समम् ।। इसके सेवन से अर्बुद का नाश होता है। मृमिना पचेत्स्थाल्या सर्व यावत्सुपिडितम् ॥ [३३६] अथाऽशःकुठारो रसः माष द्वयं सदा खादेद्रसोधर्शः कुठारकः । (रसा. सा. अर्श)
तक्रेण दाडिमाम्भोःभि पक्कान्देन वाऽथ तत् ॥ पारदाद् द्विगुणो गन्धस्ततुल्यौ व्योमतीक्ष्णको। ___शुद्ध पारा ५ तोला, गन्धक १० तोला, ताम्र पिल्वमज्जाशिवाऽग्रित्रिकटुदन्त्यो रसोन्मिताः॥ भस्म और लोह भस्म १५-१५ तोला । त्रिकुटा, टकणं सैंधवं यावक्षारा भागाश्च पश्चशः। कलिहारी, दन्ती, पीलू, चीता, १०-१० तोला, द्वात्रिंशद्राग गोमत्रं तावद्धागा स्नुही भवेत् ॥ जवाखार और सुहागे की खील प्रत्येक २५-२५ पक्त्वा मन्दाग्निना सर्व द्विमाषप्रमिता वटी। तोला सेंधानोंन २५ तोला, गोमूत्र २ सेर, थूहर प्रत्येहं सेषनीया स्यादों वनकुठारिका॥ का दूध २ सेर, प्रथम पारे गन्धककी कज्जली ____ एक छटांक शुद्ध पारद, आधपाव गन्धक, ।
बनावे फिर उसमें अन्य औषधियोंका चूर्ण मिलाकर आधपाव अभ्रक भस्म और फौलादलोह भस्म, | पात्र में भर मन्दाग्नि पर पकावे । नब गाढा होजाय बेलगिरि, बड़ी हरड, चित्रक, सोंठ, मिरच, पीपल, | तब दो दो माशे को गालया बनाव । एक एक शुद्ध जमाल गोटा, एक एक छटांक, सुहागे की गोली नित्य छाछ, अनार के रस या जिमीकन्द के खील (लावा ), सेंधा नोन, जवाखार पांच पांच । रसके साथ खाने से बवासीर का नाश होता है। छटांक । बत्तीस छटांक गोमूत्र, बत्तीस छटांक थूहर [३३८] अर्शकुठारो रसः (२) का दूध, इन औषधियों में से कूटने योग्य औष
(र. रा. सु. अर्श) धियों को कूटकर कपरछन करले, फिर सब चीजों श्रेष्ठा दन्त्यग्नियुग्मत्रिकटु को लोहे की कड़ाही में मन्दी मन्दी आंच से पकावे ।
कहलिनीपीलुकुम्भं विपक्कम् । जब गाढ़ा होजाय तब सब को खरल में घोटकर प्रस्थे मूत्रस्य सस्नुपयसि दो दो माशे की गोलियां बनाले । एक गोली को
रसपलं द्वेपले गन्धकस्य ॥ प्रातः काल गरम जल के साथ सेवन किया करे लोहस्य त्रीणि ताम्राकुडवमय करे तो बवासीर के मस्से नष्ट हो जायँ ।
___ रजः क्षारयोवापि पश्च। [३३७] अर्शःकुठारो रसः (१) क्षिप्त्वा स्थाल्या पचेत्तु (र. र. स., यो. त. का. धे.)
___ ज्वलतिदहनतश्चूर्णमर्शः कुठार ॥ शुद्धसूतं पलैकन्तु द्विपलं शुद्धगन्धकम् । । त्रिफला, दन्ती और भिलावा, चीता, त्रिकुटा, मृतं तानं मृतं लोहं प्रत्येकन्तु पलत्रयम् ॥ कलियारी, पीलू और जमालगोटा १-१ भाग । १ पाठान्तर-अभ्र
। १ शेर गोमूत्र और १ सेर थूहर का दूध, शुद्ध पारा
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