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अकारादि-रस
(१०९)
मृतं समुत्थापयतीदमभ्रं
तक लकड़ियों की खूब तीव्र आंच दे । स्वांगशीतल मध्वादिलीढं बलकल्प्यमात्रम् ।। होने पर ऊपर की हांडी में लगे हुए हिंगुल संखिया पाव भर निश्चंद्र अभ्रक (उक्त प्रकार से निचंद्र | के सार को जुदा निकाल ले और अभ्रक भस्मको किया हुआ) आधी छटांक काली संखिया, (काली | घृत कुमारी के रस में घोट कर टिकिया बना ले। संखिया के न होने पर लाल पीली भी ले सकते हैं) | जब टिकिया सूख जाएं तब उन को संपुट में फेंक आधी छटांक हिंगुल, इन तीनों चीजों को कुमार्या- दे । इसका नाम मृतोत्थापन अभ्रक भस्म है सव आदिके साथ दोपहर घोटकर लुगदी को संपुट | अर्थात् सन्निपात, हैजा (विसूचिका) सर्पदंशन में रखकर मुद्रा बन्द कर दे । फिर कुक्कुट पुट में । | आदि किसी कारण से मनुष्य के प्राण जाते हों तो दो सेर बन के उपले सुलगा दे जब निर्धूम अंगार। उस आसन्नमृत्यु रोगी को आधी रत्ती से दो रत्ती हो जाय तब उनके ऊपर सम्पुट को रख दे, तक बलाबल देखकर मधु आदि किसी अनुपान के परन्तु यह स्मरण रहे कि संपुट को अंगारों के साथ देने से रोगी अवश्य बच जायगा। यदि इसके बीच में न रखें नहीं तो संखिया और हिंगुल उड़
देने पर भी रोगी के आसार कच्चे दीखे तो "इयं जायेंगे । स्वांग शीतल होने पर पूर्व की तरह फिर
शतघ्नी यदि कुण्ठिता स्यान्नितान्तमन्तं कुरुते कृताउतना ही हिंगुल और संखिया डालकर आसव के
| न्तः” इस वक्ष्यमाण वचन का यहां भी अनुसन्धान साथ मर्दन करे । जव इस प्रकार लगभग बीस
कर ले । और जो डमरू यन्त्र की ऊपर की हांडी
में हिंगुल संखिया का सार भाग निकलता है पुट के हो जाय तब उस लुगदी को डमरू यन्त्र में रख कर चार पहर की अग्नि देकर संखिया
उसका भी मृतोत्थापन लोह विधि में कहे हुए मल्लहिंगुल को उड़ा ले । स्वांगशीतल होने पर डमरू सिन्दूर के विधान से मल्लसिंदूर बना ले जिस से यन्त्र को खोल डाले, ऊपर की हांडी में लगे हये | यह भी मृतोत्थापन और पौष्टिक बने । हीरे के समान चमकते हुए हिंगुल संखिया के । [३०७] सरवप्रधानमभ्रकभस्म सार को खुर्च कर निकाल ले, और नीचे की हांडी,
(रसा. सा.) में जो अभ्रक भस्म मिले उसको फिर पूर्व की तरह सेटोन्मितं व्योम तदर्धमानं आधी भाधी छटांक हिंगुल संखिया डालकर आसव ___ सुटङ्कणं तवयमावपेत । के साथ मर्दन करे । फिर लगभग २० पुट के हो हण्डयांतलच्छिद्रयुजिप्रगादं जाने पर डमरू यन्त्र द्वारा संखिया हिंगुल के सार मल्लं पिधायात्रषिवायमुद्राम् ॥ को पूर्व की तरह निकाल ले। यदि कोई वैद्य कषायकर्यामथकोष्ठिकायां संखिया हिंगुल ज्यादा खर्च करना नहीं चाहे तो ___ दृष्ट्वाभ्रहण्डोमिवसंहसन्त्याम् । डमरूयन्त्र से निकले हुए हिंगुल संखिया के सार निधायहण्डीमथकोष्ठयधस्ताद को ही आधी २ छटांक डालकर पूर्वोक्त क्रिया करे। काचाभसत्त्वंपततीत्थमभ्रात् ॥ इस प्रकार अभ्रक में सौ पुट दे । सौ पुट के बाद । नामापिनास्मिन्ननुचन्द्रिकानां उस लुगदी को डमरू मन्त्र में रखकर चार पहर । सवप्रधानबहसवयोगात् ।
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