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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-स मिलाकर भली भांति खरल करें और फिर लाल । इसके अतिरिक्त यह रस २० प्रकारके प्रमेह कपासके फूलोंके रसकी तीन भावना देकर सुखा- | को नष्ट करता है, उग्र राजयक्ष्मा पर सहसा विजय कर कपर मिट्टी की हुई आतशी शीशी में भरें तथा । प्राप्त कर लेता है तथा आनाह, ग्रहणी, गृहवाषा, बालकायन्त्र में क्रमवर्द्धित अग्नि पर तीन दिन पाक | पाण्डु, अर्श, रक्तपित्त, और उदर व्याधिको अवश्य करें। (चन्द्रोदय बनाने की विधिसे पकाना चाहिए)। | नष्ट कर देता है। तदनन्तर रसको निकालकर उसमें उसका सोलहवां | इसके सेवनसे ओज, कान्ति, बल, हर्ष बुद्धि भाग शुद्ध हलाहल (मूल-विष विशेष) मिलाकर और जठराग्निकी अत्यन्त वृद्धि होती है, दृष्टि, दन्त, कालीमिर्च, कपर, त्वकक्षीरी (बंसलोचन), जावत्री, | नासा और श्रवण शक्ति बढ़ती है तथा देह दृढ़ हो लौंग और कस्तुरी की भावना' देकर सुरक्षित रक्खें। जाती है । भूमितल पर कोई ऐसा रोग नहीं जिसे मात्रा-१ माशा। यह राजाओं द्वारा सम्मानित भौर रमणियों का इसे प्रातः और सायंकाल पानमें खाकर थोड़ी | प्रेमपात्र रस नष्ट न कर दे। मिश्री मिला हुवा गोदुग्ध पियें और फिर उत्तम (२८९) अनङ्गसुन्दरोरसः (१) नागरवेलके पानमें (आधी रत्ती)कपूर रखकर खावें। (र. रा. सु., रसा.) यह सम्पूर्ण रोगों को नए करने के लिए शुद्धसूतं समं गन्धं व्यहं कल्हारजैवैः। प्रख्यात रस है । इसके सेवन कालमें यथेष्ट पथ्या- मर्दितं बालुकायंत्रे याम संपुटके पचेत् ॥ हार करना चाहिए। रक्तागस्त्याद्रवैर्भाव दिनमेकं सिताम्बुजैः। इसे सेवन करने से मनुष्य अनेकों युवतियों के यथेष्टं भक्षयेचानु कामयेत् कामिनी शतम् ॥ साथ रमण करे तब भी उसका शुक्र क्षय न होकर शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक ४-४ तोले लेकर बढ़ता ही है। दोनों की कज्जली करके कल्हार (कुछ सफेद और __ इसके प्रभावसे नपुंसक पुरुषकी नपुंसकता | कुछ लाल ऐंसे कमल)के रसमें ३ दिन खरल करे, दर हो जाती है और ६० वर्षसे अधिक आयुके फिर संपुट में रख बालका यंत्र में एक प्रहर पकावे वृद्ध का शिथिल शिश्न भी दृढ़ हो जाता है। फिर एक दिन लाल अगथिया और सफेद कमलके अधिक कहने से क्या लाभ, जिस के पास यह | रसमें घोट कर सुखाकर रक्खे इसे बलाबलके रस होगा उसे कामदेव अपने बाणका निशाना अनुसार सेवन करने से सौ स्त्रियोंसे रमण करनेकी भवश्य बनाएगा और वह कामिनियों का सदा शक्ति प्राप्त हो जाती है। प्रिय रहेगा। [२९०] अनङ्गसुन्दरोरसः (२) (र. मं.) १ऐसा प्रतीत होता है कि यहां काली पलद्वयं यं शुद्ध पारदं गन्धर्क तथा। मिर्च आदि पदार्थों का चूर्ण रसके समान भाग | मृतहेम्नस्तु कर्षकं पलैक मृतताम्रकम् ॥ मिलाना प्रयोग कर्ताको अभीष्ट है । यदि ऐसा नहीं किया जाय तो बंसलोचन की भावना मृततारं चतुनिष्कं मर्च पञ्चामृतैर्दिनम् । व्यवहार विरुद्ध है तथा १ माशा मात्रा में | रुद्ध्वा तु वै पुटे पश्चादिनैकं तु समुद्धरेत् ।। माधीरतीहलाहल विष आता है जो अधिक है। पिष्टा पश्चामृतैः कुर्याइटिका बदराकतिम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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