SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-रस (९७) - अकालपलितं हन्यादाभवातं गुदामयम् । । पीपल ३ भाग, हरीतकी (हर्र) ४ भाग, बहेड़ा ५ नस रोगोऽस्ति यं चापि न निहन्ति क्षणादिदम ॥ भाग, अडूसा ६ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी करीरकाञ्जिकादीनि ककारादीनि वर्जयेत् ॥ कजली बना और फिर उसमें अन्य औषधियों का ___निसोत, चीता, निर्गुण्डी, थूहर, मुण्डी की जड | चूर्ण मिलाकर बबूलकी छालके क्वाथकी २१ भावना प्रत्येक ४०-४० तोला लेकर सबको कूटकर ३२ सेर देकर रक्खे । इसे शहदके साथ देनेसे खांसीका जलमें पकावे । जब ८ सेर पानी रह जाय तो उसे नाश होता है। मात्रा--३ माशे । छान कर पुनः पकावे और गाढा हो जाने पर [२७५] अग्निरसः (२) (र. प्र. सु. । अ. ८) उतार कर ठंडा करके उसमें बायबिडंग १५ सूतं द्विधा गन्धकभागयुग्मं तोले, त्रिकुटा ३॥ तोला, त्रिफला २५ तोले ___ कुर्याञ्च खल्वेन तु कज्जली हि । शिलाजीत ५ तोला, मन्सिल या वैकङ्कत तस्याःसमं तीक्ष्णकचूर्णमेव ( सुवावृक्ष ) से भस्म किया हुवा तीक्ष्ण लोह ___ सम्मर्दयेत्खलु रसेन च कन्यकायाः ॥ ६० तोला, घी, शहद, और चीनी प्रत्येक ! आच्छाद्य पत्रेण रुबूद्भवेन १२० तोला मिलावे । यह अग्निमुख लोह अत्युत्तम ___ यामार्धकेनाप्यथ उष्णता भवेत् । अर्शनाशक औषध है। इसके सेवनसे मन्दाग्नि धान्यस्य राशी विनिवेश्य सप्त शीत्र ही कालाग्निके समान (अत्यन्त तीव्र) होजाती | दिनानि सम्म ततो दृढं हि ॥ है । इमे सेवन करनेवाला रोगी पत्थर भी पचा वस्त्रेण संगाल्य ततो हि यत्नाडालता है । यह रस पाण्डु, शोथ, कुष्ट, तिल्ली, | । तच्चूर्णकं वारितरं हि सत्यम् । उदररोग, अकालमें बालोंका पकना, आमवात और व्योषं चतुर्जातवरालवङ्गं गुद रोगोंका नाश करता है। ऐसा कोई रोग नहीं ___ जातीफलैलं च समांशकानि ॥ जिसे यह नष्ट न कर दें। इसके सेवन कालमें करीर, ! सञ्चूये सर्व समभागतीक्ष्णं कांजी आदि 'ककारादि पदार्थोंका सेवन न करना क्षौद्रेण लीढं खलु निष्कमात्रकम् । चाहिए। रसोऽग्निनामा क्षयकासजूर्ती[२७४] अग्निरसः (१) (र. र. स.। अ. १३)/ विनाशयत्येव न संशयोऽस्ति । रसगन्धकपिप्पल्यो हरीतक्यक्षवासकम् । __शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग षडुत्तरगुणं चूर्ण बब्बूलकाथभावितम् ॥ लेकर कजली बनावे और फिर उसमें ३ भाग एकविंशतिवाराणि शोषयित्वा विचूर्णयेत् । लोहभस्म मिलाकर घीकुमारी के रसमें घोटे । और भक्षयेन्मधुना हन्ति कासमग्निरसो छयम् ।। सबका एक गोला बनाकर अरण्ड के पत्तों में लपेट शुद्ध पारद, १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग, कर आधा पहर तक (अग्नि पर) गरम करके अनाज के ढेरमें दबा दे । सातदिन पश्चात् उसे १ कालशाक, कुष्माण्ड, कर्कटी, कर्कन्धु, कर्कोटक, कुलिंग, करमर्द, करीर, कतक. कशेरु | निकाल कर खूब घोट कर कपड़े छानले यह और काजी। | लोहकी वारितर भस्म है । त्रिकुटा, तेजपात, दाल For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy