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(८६)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
अनुपानके साथ २-२ रत्तीकी मात्रामें सेवन करने । अरुचिमें त्रिकुटाके साथ सेवन करना चाहिए । से विसूचिका, शूल, मन्दाग्नि, अजीर्ण और संग्र- यह अग्निकुमार रस सर्व रोगनाशक है। हणीका नाश होता है।
[२५०] अग्निकुमाररसः (१८) [२४९] अग्निकुमारोरसः (१७)
(भै. र. र. रा. मुं. ग्रहणी) (र. रा. सुं. अरुयौ) | रसं गन्धं विषं व्योष टङ्कन लौहमस्मकम् । यवक्षारं तथा खर्जी टङ्कणं लवणानि च। अजमोदाहिफेनं च सर्वतुल्यं मृताभ्रकम् ।। त्रिकटुत्रिफलालोहं चूर्ण द्विविधभागकम् ॥ चित्रकस्य कषायेण मर्दयेद्याममात्रकम् । कपूरं च लवङ्गश्च चव्यकं चित्रकं तथा। मरिचाभा वटी खादेदजीणं ग्रहणी तथा ॥ दाडिमाम्लं विशेषेण शृङ्गवेरश्च रेणुकाम् ॥ नाशयेनात्र सन्देहो गुह्यमेतचिकित्सितम् ॥ एतानि समभागानि सूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् ।। रसश्चाग्निकुमारोऽयं दीपयत्याशु पावकम् ॥ पवानीनिम्बुनीरेण दिवसत्रयभावितम् ॥ शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, शुद्ध विष, त्रिकुटा, तथामृतारसेनैव मर्दितं चाम्लवेतसः। सुहागा, लोहभस्म, अजमोद और अफीम, सब चणकाकारमात्रेण दीयते रसउत्तमः ॥ समान भाग, अभ्रक भस्म सबके बराबर। प्रथम अरोचकं वहिविशेषमान्य,
पारद गन्धककी कजली बनाकर पश्चात् सबको १ गुल्मप्रमेहं विनिहन्त्यवश्यम् । पहर तक चित्रकके रसमें घोटकर निःसन्देह काली चुक्रेण युक्तं खलु पक्तिशूलं,
मिर्च बराबर गोलियां बनावे । यह रस अजीर्ण, सूर्योदयात् वृद्धमतीव जातम् ॥ ग्रहणी, और मन्दाग्निका नाश करता है। श्वासकासकफातङ्कनाशनं प्राणवर्द्धनम् ॥ [२५१] अग्निकुमारोरसः (१९) दद्यात् त्रिकटुकश्चैव कफारोचकनाशनम् ॥
(र. र. स. स्थौ अ. १-८) रसो ह्यग्निकुमारोऽयं सर्वरोगप्रणाशनम् ॥
| गन्धकेन द्विकर्षण शुद्धसूतेन तावता । यवक्षार, सज्जी खार, सुहागा, पांचो लवण, | विधाय कजली सूक्ष्मामेकवासरमदनात् ॥ त्रिकुटा, त्रिफला और लोहचूर्ण २-२ भाग । कपूर, कर्षमात्रं विषं दत्वा मदयित्वा दृढं पुनः। चव्य, लौंग, चीता, दाडिम (अनार दाना) सोंठ | हंसपादीरसस्तैवा स्तोकं स्तोकं मुहुर्मुहुः॥ और रेणुका १-१ भाग । सबका बारीक चूर्ण कुडवार्थमितः पश्चागोलं कृत्वा विशोष्य च । करके ३ दिन तक अजवायन और नीबूके रसमें काचकुप्यां विनिक्षिप्य शुल्वनाडी पिधाय च ॥ घोटे फिर गिलोय और अमलवेतके रसमें ३-३ | देवीशास्त्रे पुनः प्रोक्तं विषं कर्ष विचूर्णितम् । दिन घोटकर चनेके बराबर गोलियां बनावे । यह ऊर्धाधो गोलकानां हि काचकृप्यां विनिक्षिपेत् रस अरुचि, मंदाग्नि, गुल्म और प्रमेह का नाश निक्षिपत्कजली मध्ये यतश्चायं मजायते। करता है। चूक्रके (काञ्जी का एक भेद) के साथ | ततश्च द्वयङ्गुलोत्सेधं मृदा कूपी विलिप्य च ॥ सेवन करने से परिणाम शूल, सूर्यावर्त, श्वास, विशोष्य बालुकायन्त्रे यंत्रवर्गप्रकाशिते। खांसी, कफरोग आदिका नाशक है। कफ की अधोमुखीं घटी क्षिवा क्षिपेदुपरि बालकाम् ।।
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