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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-रस (८५) विलिप्य स्थालिकामध्ये ततोऽन्यस्थालिकोदरे॥ अग्निमांद्य, ज्वर, वातजरोग, शोथयुक्त पाण्डु रोग, पलार्धममृतं क्षिप्त्वा रसस्थाली च तन्मुखे। । कफरोग, तिल्ली, गुल्म, गुदपीडा, सर्वाङ्ग शूल, न्युजां दत्त्वा दृढं रुद्ध चुल्ल्यामारोप्य यत्नतः लूला, लंगड़ापन और स्त्रियोंके रक्तगुल्मादि असाध्य यामं प्रज्वालयेदग्नि विचूर्ण्य तदनन्तरम। रोगों को इस प्रकार नष्ट कर देता है जिस प्रकार करण्ड के विनिक्षिप्य स्थापयेदतियत्नतः ।। विष्णु भगवान पापों को। रसोह्यग्निकुमाराख्यो दिष्टो मन्थानभैरवैः। । [२४७] अग्निकुमारोरसः (१५) हन्यादत्यग्निमान्धं ज्वररुजमखिलं (र. र. स. अ. अ.) वातजातं क्षयार्तिम् । दग्धां कपर्दिका पिष्ट्वा त्र्यूषणं टङ्कनं विषम् । शोफाढ्यं पाण्डुरोगं गन्धकं शुद्धसतं च तुल्यं जम्बीरजैवैः ।। ___ कफजनितगदान्प्लीहगुल्मं गुदातिम् ॥ । मर्दयेद् भक्षयेद्वल्लं मरिचाज्यं लिहेदनु । सर्वाङ्गीणं च शूलं जठरभवरुज निहन्ति ग्रहणीरोगं पथ्यं तक्रोदनं हितम् ।। ___ खंजतां पङ्गुलत्वम् । कौड़ी भस्म, त्रिकुटा, शुद्ध सुहागा, शुद्ध सर्वा श्वासाध्यरोगान्हरिरिवशुद्धदुरितं वच्छनाग, गन्धक और शुद्ध पारा, सब समान रक्तगुल्मं बधूनाम् ॥ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें पारा और गन्धक समान भाग लेकर कज्जली | फिर उसमें अन्य औषधियोंका चूर्ण मिलाकर करके उसमें उसका चौथा भांग शुद्ध वच्छनाग | सबको जम्बीरी नींबू के रस में घोटकर रखे । तथा सीपी भस्म १६ वां भाग मिलाकर ३ दिन | यह ग्रहणी रोगका नाश करता है। मात्राः-२-३ तक हंसपादी के रसमें मर्दन करे, फिर एक गोला | रत्ती । अनुपान काली मिर्च का चूर्ण और धी। बनाकर तेज धूपमें मुखावे और फिर १ दिन रात पथ्यः-छाछ और भात ।। मृदु, मध्य और तीवाग्नि पर वालुका यन्त्र में | [२४८] अग्निकुमारो रसः (१६) (र.चि.) पकाकर ठण्डा होने पर निकालकर उसमें समान टङ्कणं रसगन्धौ च समं भारात्रयं विषात। भाग शुद्ध वच्छनागका चूर्ण मिलाकर अद्रक के कपर्दशंखौ त्रिनवौ वसुभागं मरीचकम् ।। के रसकी भावना देकर घोटे, फिर उस लुगदी को दिन जम्भाम्भसा पिष्टं भवेदग्निकुमारकः ॥ एक हाण्डी के बीचमें लेप करदे और दूसरी हाण्डी विसचीशूलवातादियहिमांये द्विगुञ्जकः॥ में २॥ तोला शुद्ध बच्छनागका चूर्ण डालकर उसके अजीर्ण संग्रहण्या वा प्रयोज्योऽयं निजौषधैः ।। ऊपर पहली हांडी उलटी करके रखदे और सुहागेकी खील, शुद्ध पारद और शुद्ध गन्धक सन्धिको अच्छी तरह बन्द करदे । इस यन्त्रको १-१ भाग, शुद्ध वच्छनाग ३ भाग, कौड़ी भस्म फिर चूल्हे पर चढ़ाकर १ पहर तक आग जलावे ३ भाग, शंख भस्म ९ भाग, काली मिर्चका चूर्ण पश्चात् स्वांग शीतल होने पर दवाको निकालकर | ८ भाग। प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें पीसकर रक्खे। इस अग्निकुमार रस का आविष्कार और फिर उसमें अन्य औषधियों का चूर्ण मिलाकर श्री मन्थानभैरवने किया था। यह रस अत्यन्त । एक दिन जम्बीरी नींबूके रसमें धोटे । इसे रोगोचित For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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