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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भामिनी-विलासे धूमज्योतिः सलिलमरुतां सन्निपातः क्वः मेघ:-कालिदास । अथवा न समुद्रसे जल लेकर बरसा देनेमें कोई बड़ा कौशल ही है । न किसीके प्रति उसे विशेष अनुराग ही है जिसके लिए वह बरसता हो, न कोई उसका सहायक ही है, फिर भी वह जल बरसाकर संतप्त प्राणियोंके संतापको दूर करता है । इसी प्रकार सज्जनको भी न तो किसी प्रकारकी प्रत्यपकारकी चाह रहती है; क्योंकि वह दान केवल इसीलिये करता है कि उसे दान करना चाहिये । तुलना०-दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे । (गीता)। न वह अपना कौशल दिखाना चाहता है । समदर्शी होनेसे न किसीपर विशेष अनुराग ही उसका रहता है और न उसे किसी संग ( सहायक ) की आवश्यकता रहती है; किन्तु फिर भी वह लोगोंका उपकार करता है; क्योंकि वह महान् होता है और यह उसका स्वाभाविक गुण है। इस पद्यमें उन्नत यह विशेषण साभिप्राय है अर्थात् मेघ उन्नत ( ऊँचा या महान् ) है इसलिये अकारण उपकारी है अतः परिकर अलङ्कार है । अपेक्षा आदि कारण न होने पर भी जल बरसाना रूप कार्य होनेसे विभावना अलङ्कार भी है-क्रियायाः प्रतिषेधेऽपि फलव्यक्तिविभावना । अतः दोनों की संसृष्टि है । अनुष्टुप् छन्द है-इसके प्रत्येक पादमें ८,८ अक्षर होते हैं। प्रत्येक पादमें षष्ठ अक्षर सदा गुरु और पंचम अक्षर सदा लघु होता है तथा दूसरे और चौथे पादमें सप्तम भी ह्रस्व होता है । शेष अक्षरों में कोई नियम नहीं रहता। इसे इलोक भी कहते हैं॥३७॥ गुणी व्यक्तिका महत्त्व गुणवान्के आदरसे ही बढ़ता हैसमुत्पत्तिः स्वच्छे सरसि हरिहस्ते निवसनं निवासः पद्मायाः सुरहृदयहारी परिमलः । गुणैरेतैरन्यैरपि च ललितस्याम्बुज तव द्विजोत्तंसे हंसे यदि रतिरतीवोन्नतिरियम्।। For Private and Personal Use Only
SR No.020113
Book TitleBhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
PublisherVishvavidyalay Prakashan
Publication Year1968
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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