SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भामिनी-क्लिासे अनन्तर ही कामोद्दीप्ति विशेष होती है और मानिनी अधिक वियोग न सहकर अपना मानभंग करनेको विवश होती है। इतनोंका उपकार करनेवाले चन्द्रमाके उदयकालमें ही इतने विशाल आकाशको छोड़कर ठीक चन्द्रमाके सामने तुमने मेघाडम्बर खड़ा कर दिया। इन सबको आशाओंपर तुषारपात करना क्या तुम्हें उचित है ? ___इससे यह व्यक्त होता है कि अपने ऐश्वर्यमदसे उन्मत्त होकर किसीके प्रभावको दबा देना या किसीका आशाच्छेद करना अनुचित है। इसमें अन्योक्तिके सिवा प्रत्येक विशेषण साभिप्राय होनेसे परिकर अलंकार भी है। रसगंगाधरमें इस पद्यको असूया नामक संचारिभावके उदाहरणरूपमें पढ़ा गया है । असूयाका लक्षण है "परोत्कर्षादिजन्यः परनिन्दाकारणीभूतश्चित्तवृत्तिविशेषः" यह शार्दूलविक्रीडित छन्द है-"सूर्याश्वम स जस्तताः सगुरवः शार्दूलविक्रीडितम् ।" इसमें १२ और ७ में विराम होता है । शार्दूलविक्रीडितका तो अर्थ ही है "सिंहकासा पराक्रम" । अतः इस छन्दका प्रयोग ऐसे ही स्थानपर होता है जहाँ तेजस्विता परिलक्षित हो। शार्दू लक्रीडितं धत्ते तेजो जीवितमूर्जितम् ॥३॥ (क्षेमेन्द्र) सच्चे मित्रको पहिचानें अयि दलदरविन्द स्यन्दमानं मरन्दं तव किमपि लिहन्तो मञ्जु गुञ्जन्तु भृङ्गाः । दिशि दिशि निरपेक्षस्तावकीनं विवृण्वन् परिमलमयमन्यो बान्धवो गन्धवाहः ॥४॥ अन्वय--अयि दलदरविन्द ! तव, किमपि, स्यन्दमानं, मरन्द, लिहन्तः, भृङ्गाः, मञ्ज, गुञ्जन्तु, निरपेक्षः, दिशि दिशि, तावकीनं, परिमलं, विवृण्वन , अयं, गन्धवाहः, अन्य, एव, बान्धवः । For Private and Personal Use Only
SR No.020113
Book TitleBhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
PublisherVishvavidyalay Prakashan
Publication Year1968
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy