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अन्योक्तिविलासः
दिग्गजोंसे है । ऐसी पौराणिक प्रसिद्धि है कि आठ दिग्गज आठों दिशाओंसे पृथ्वीको थामे हुए हैं । इनके नाम ये हैं
ऐरावतः पुण्डरीको वामनः कुमुदोऽञ्जनः । पुष्पदन्तः सार्वभौमः सुप्रतीकाश्च दिग्गजाः ॥ तुलना कीजिए
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( अमर )
पृथ्वि स्थिरा भव, भुजङ्गम धारयैनां
त्वं कूर्मराज तदिदं द्वितयं दधीथाः । दिक्कुञ्जराः कुरुत तत्त्रितये दिघोष
देवः करोति हरकार्मुकमाततज्यम् ।।
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इस पद्यमें अन्योक्ति अलंकार तो है ही, समर्थनीय अर्थका समर्थन हो जानेसे काव्यलिङ्ग, विशेषणोंके साभिप्राय होनेसे परिकराङ्कुर और प्रस्तुत मृगपतिके वर्णन द्वारा अप्रस्तुत विद्वद्धौरेयके वर्णन-बोधसे अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार भी है । इस प्रकार इन अलंकारोंका संकर हो गया है । जिसका लक्षण है — "नीरक्षीरन्यायेनास्फुटभेदालङ्कारमेलने सङ्करः—– कुवलया० ।
यह शिखरिणी छन्द हैं—“रसै रुद्रैरिछन्ना यमनसभलागः शिखरिणी" - वृत्तरत्नाकर । इसमें ६।११ पर विराम होता है ।
यह पंडितराजकी अत्यन्त दर्पोक्ति है । इसके लिये शिखरिणी उपयुक्त छन्द है, जैसा कि -
" शिखरिण्याः समारोहात् सहजैवौजसः स्थितिः " ( क्षेमेन्द्र ) इस पद्यको पण्डितराजने अपने रसगङ्गाधर में अप्रस्तुतप्रशंसाके उदाहरण में रखा है ॥ १ ॥
विपन्न होने पर भी संस्कार तो नहीं बदलते
पुरा सरसि मानसे विकचसारसालिस्खलत्परागसुरभीकृते पयसि यस्य यातं वयः ।