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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अन्योक्तिविलासः दिग्गजोंसे है । ऐसी पौराणिक प्रसिद्धि है कि आठ दिग्गज आठों दिशाओंसे पृथ्वीको थामे हुए हैं । इनके नाम ये हैं ऐरावतः पुण्डरीको वामनः कुमुदोऽञ्जनः । पुष्पदन्तः सार्वभौमः सुप्रतीकाश्च दिग्गजाः ॥ तुलना कीजिए Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( अमर ) पृथ्वि स्थिरा भव, भुजङ्गम धारयैनां त्वं कूर्मराज तदिदं द्वितयं दधीथाः । दिक्कुञ्जराः कुरुत तत्त्रितये दिघोष देवः करोति हरकार्मुकमाततज्यम् ।। For Private and Personal Use Only इस पद्यमें अन्योक्ति अलंकार तो है ही, समर्थनीय अर्थका समर्थन हो जानेसे काव्यलिङ्ग, विशेषणोंके साभिप्राय होनेसे परिकराङ्कुर और प्रस्तुत मृगपतिके वर्णन द्वारा अप्रस्तुत विद्वद्धौरेयके वर्णन-बोधसे अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार भी है । इस प्रकार इन अलंकारोंका संकर हो गया है । जिसका लक्षण है — "नीरक्षीरन्यायेनास्फुटभेदालङ्कारमेलने सङ्करः—– कुवलया० । यह शिखरिणी छन्द हैं—“रसै रुद्रैरिछन्ना यमनसभलागः शिखरिणी" - वृत्तरत्नाकर । इसमें ६।११ पर विराम होता है । यह पंडितराजकी अत्यन्त दर्पोक्ति है । इसके लिये शिखरिणी उपयुक्त छन्द है, जैसा कि - " शिखरिण्याः समारोहात् सहजैवौजसः स्थितिः " ( क्षेमेन्द्र ) इस पद्यको पण्डितराजने अपने रसगङ्गाधर में अप्रस्तुतप्रशंसाके उदाहरण में रखा है ॥ १ ॥ विपन्न होने पर भी संस्कार तो नहीं बदलते पुरा सरसि मानसे विकचसारसालिस्खलत्परागसुरभीकृते पयसि यस्य यातं वयः ।
SR No.020113
Book TitleBhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
PublisherVishvavidyalay Prakashan
Publication Year1968
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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