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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ नामकरण इस ग्रन्थका नाम भामिनीविलास क्यों रक्खा ? इसका उत्तर यही है कि पण्डितराजको जो असह्य पत्नीवियोग हुआ, वही इस ग्रन्थके निर्माण में हेतु बना । धर्मपत्नीकी असामयिक मृत्युसे वे इतने व्याकुल हो गये कि उन्हें नई कविता हो न सूझती थी और उन्होंने अपने अन्य ग्रन्थोंके उदाहरण रूपमें आये हुए पद्योंका ही संकलन कर डाला, इसीको इस रूपमें व्यक्त करते हैं भामिनी - विलास काव्यात्मना मनसि पर्यणमन् पुरा मे पीयूष सारसरसास्तव ये विलासाः । सानन्तरेण रमणीरमणीयशीले तोहरा सुकविता भविता कथं नः ॥ अर्थात् रमणी - रमणीयशीला भामिनीके अमृततुल्य रसवाही जिन विलासों (शृंगारचेष्टाओं ) से कविताकी प्रवृत्ति पहिले हुआ करती थी वह अब कैसे हो ? सा मां विहाय कथमद्य विलासिनि द्याम् ( करुणविलास १० ) यहाँ यह भी स्मरणीय है कि कुछ लोगोंने कल्पना की है लवङ्गी नामकी जिस यवनीपर पण्डितराज आसक्त थे उसकी मृत्यु होनेपर उसीकी स्मृतिमें यह ग्रन्थ पण्डितराजने लिखा । यह कोरी कल्पना ही है । पण्डितराजका पूरा करुणविलास इसका साक्षी है कि उनकी विवाहिता धर्मपत्नीके स्वर्गवास हो जानेपर ही यह लिखा गया है, किसी भोगपत्नीके नहीं । भृत्वा पदस्खलन भीतिवशात्करं मे यारूढवत्यसि शिलाश कलं विवाहे । For Private and Personal Use Only आरोहसीति हृदयं शतधा प्रयाति ।। ( करुण वि० ५ )
SR No.020113
Book TitleBhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
PublisherVishvavidyalay Prakashan
Publication Year1968
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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