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नामकरण
इस ग्रन्थका नाम भामिनीविलास क्यों रक्खा ? इसका उत्तर यही है कि पण्डितराजको जो असह्य पत्नीवियोग हुआ, वही इस ग्रन्थके निर्माण में हेतु बना । धर्मपत्नीकी असामयिक मृत्युसे वे इतने व्याकुल हो गये कि उन्हें नई कविता हो न सूझती थी और उन्होंने अपने अन्य ग्रन्थोंके उदाहरण रूपमें आये हुए पद्योंका ही संकलन कर डाला, इसीको इस रूपमें व्यक्त करते हैं
भामिनी - विलास
काव्यात्मना मनसि पर्यणमन् पुरा मे
पीयूष सारसरसास्तव ये विलासाः । सानन्तरेण रमणीरमणीयशीले
तोहरा सुकविता
भविता कथं नः ॥
अर्थात् रमणी - रमणीयशीला भामिनीके अमृततुल्य रसवाही जिन विलासों (शृंगारचेष्टाओं ) से कविताकी प्रवृत्ति पहिले हुआ करती थी वह अब कैसे हो ?
सा मां विहाय कथमद्य विलासिनि द्याम्
( करुणविलास १० )
यहाँ यह भी स्मरणीय है कि कुछ लोगोंने कल्पना की है लवङ्गी नामकी जिस यवनीपर पण्डितराज आसक्त थे उसकी मृत्यु होनेपर उसीकी स्मृतिमें यह ग्रन्थ पण्डितराजने लिखा । यह कोरी कल्पना ही है । पण्डितराजका पूरा करुणविलास इसका साक्षी है कि उनकी विवाहिता धर्मपत्नीके स्वर्गवास हो जानेपर ही यह लिखा गया है, किसी भोगपत्नीके नहीं । भृत्वा पदस्खलन भीतिवशात्करं मे
यारूढवत्यसि शिलाश कलं विवाहे ।
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आरोहसीति हृदयं शतधा प्रयाति ।।
( करुण वि० ५ )