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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ भामिनी विलास कराते हुए जो खल, सज्जनोंको ठग लेते हैं उन्हें भी तुम धारण करती हो, तुम्हारा भी विवेक नष्ट हो गया है। टिप्पणी-"विश्वासघात ही सबसे महत्तम पाप है" इस भावको इस अन्योक्ति द्वारा भी व्यक्त किया है । हे काश्यपि ! यह विशेषण उसकी महत्ताका सूचक है अर्थात् कश्यप जैसे महर्षिकी सुता हो, तुम्हें जो पूर्ण विवेकशील होना चाहिये; किन्तु तुम ऐसे विश्वासघातियोंका भार वहन करती हो। कश्यप ऋषिकी १३ पत्नियोंसे, जो कि दक्षप्रजापतिकी कन्याएँ थीं, यह सारी सृष्टि उत्पन्न हुई है अतः कश्यपकी सन्तान होनेसे समग्र पृथ्वी काश्यपी कहलाती है अथवा परशुरामजीने सम्पूर्ण पृथ्वी निःक्षत्रिय करके कश्यप ऋषिको दानमें दे दी थी, तभीसे यह काश्यपी ( कश्यपकी ) कहलाती है। तुलना०-एकः स्वर्णमहीधरां क्षितिमिमा स्वर्णकशृङ्गीं यथा । गामेकां प्रतिपाद्य कश्यपमुनी न स्वात्मने श्लाघते ॥ विवेकके नष्ट होनेरूप अर्थका खलोंका धारण करने रूप अर्थसे समर्थन किया है अतः रसगंगाधरमें इसे काव्यलिङ्ग अलंकारके उदाहरणोंमें रक्खा है । गीति छन्द है ।।६६॥ विद्याका प्रभाव अवर्णनीय हैअन्या जगद्धितमयी मनसः प्रवृत्तिः अन्यैव कापि रचना वचनावलीनाम् । लोकोत्तरा च कृतिराकृतिराहृिद्या विद्यावतां सकलमेव गिरां दवीयः॥६७॥ अन्वय-विद्यावतां, जगद्धितमयी, मनसः, प्रवृत्तिः, अन्या, वचनावलीनां, कापि, रचना, अन्या, एव, कृतिः, लोकोत्तरा च आकृतिः, आतहृद्या, सकलमेव, गिरा, वीयः। For Private and Personal Use Only
SR No.020113
Book TitleBhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
PublisherVishvavidyalay Prakashan
Publication Year1968
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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