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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भामिनीविलासे मत्स्य राघव यदि बात ही बातमें समुद्रसे झगड़ा कर ले तो फिर क्रीड़ा करने कहाँ जाय ? टिप्पणी-महान व्यक्तिके लिये आश्रय भी महान् ही होना चाहिये, किसी साधारणसी बातपर यदि महान् ( गुणी ) व्यक्तिने सार्वभौमका आश्रय छोड़ दिया तो अन्यत्र उसके लिये जीवन ही दूभर हो जायगा, इसी भावको इस अन्योक्ति द्वारा व्यक्त किया गया है। राघवमत्स्य वह विशालकाय मत्स्य है जिसके खेलही खेलमें उलट-पलट करने से समुद्र में ऐसी लहरें उठने लगती हैं कि दिग्गजोंको समुद्रमन्थनका भ्रम होता है । बड़े-बड़े तिमिगिलादिको समूचा निगलनेवाला वह राघव यदि समुद्रसे रूठ जाय तो भला उसके लिये दूसरा स्थान ही कहाँ हो सकता है ? मत्स्योंके भेद इस प्रकार हैं-रोहित, मद्गुर, शाल, राजीव, शकुल, तिमि और तिमिगिल । तिमिनामक महामत्स्यको निगलनेवाला तिमिगिल और 'तिमिगिलगिलोप्यस्ति तद्गिलोप्यस्ति राघवः के अनुसार तिमिगिलको भी निगल जानेवाला एक महामत्स्य होता है तिमिगिलगिल, और उसको भी निगलनेवाला राघव सबसे बड़ा मत्स्य है । 'खेलति'के स्थानमें "वेल्लति'' पाठ भी है जो अपेक्षाकृत अच्छा प्रतीत होता है। राघव इतना बड़ा मत्स्य है कि उसके साधारण उलटने-पुलटनेपर समुद्र में ऐसी लहरें उठने लगती हैं जिससे दिग्गजोंको समुद्रमन्थनकी भ्रान्ति होने लगती है । यह अतिशयोक्ति अलंकार है । रसगंगाधर में यह पद्य भी अप्रस्तुतप्रशंसाके उदाहरणोंमें पढ़ा गया है किन्तु उसमें पाठभेद है "हरिद्दन्तावलाः"के स्थानपर "हरियूथाधिपाः", "तुङ्गतिमि०''के स्थानपर "तुङ्गतिमिङ्गिलाङ्गगिलनव्यापारकौतूहलः", और "केलिकलह" के स्थानपर "केलिरभस-" पाठ है । रसगंगाधरके पाठकी अपेक्षा प्रस्तुत पाठ परिमार्जित है। ऐसा प्रतीत होता है कि कविकी पूर्व रचना वही थी जिसे भामिनीविलासमें रखते समय उन्होंने For Private and Personal Use Only
SR No.020113
Book TitleBhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
PublisherVishvavidyalay Prakashan
Publication Year1968
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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